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गणगौर पर्व 2019, सोलह दिन तक गौरी-ईसर की होगी पूजा, जाने महत्‍व, पूजन विधि और कथा

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Gangaur Puja: सौभाग्य को बनाएं रखता है गणगौर का व्रत और पूजा विधि | Boldsky

गणगौर त्‍योहार मुख्यत: राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं मनाती हैं। विवाहिता महिलाएं पति की लम्‍बी आयु और कुशल वैवाहिक जीवन के ल‍िए और अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर पाने के लिये गणगौर पूजा करती हैं। हालांकि गणगौर का पर्व होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाता है लेकिन इस पर्व की मुख्य पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही की जाती है।

इस पूरे 16 दिन तक महिलाएं भगवान शिव और पार्वती का व्रत और पूजन करती हैं। आइये जानते हैं क्यों होती है गणगौर पूजा? क्या है मान्यता और क्या है पौराणिक कथा?

गणगौर की महता

गणगौर की महता

गणगौर, होल‍िका दहन के दूसरे दिन यानी धुलंडी वाले दिन ही प्रारम्‍भ हो जाता है। चैत्र कृष्‍ण प्रतिपदा से यह त्‍योहार पूरे सोलह दिन तक चैत्र शुक्‍ल तृतीया तक मनाया जाता है। इस बार 21 मार्च से 8 अप्रेल तक ये त्‍योहार बनाया जाएगा। राजस्थान में कन्याएं पूरे सौलह दिन गणगौर पूजन कर मां पार्वती को प्रसन्न करती हैं। जिन कन्याओं का विवाह होता हैं उन्हें भी प्रथम वर्ष सौलह दिन गणगौर पूजन अत्यंत आवश्यक माना गया हैं।

स्त्रियां व कन्याएं तालाब से मिट्टी लाकर ईसर-गणगौर (शिव-पार्वती) की मूर्तियां बनाती हैं। इसके बाद 16 दिन तक चलने वाली इस पूजा के ल‍िए प्रत्‍येक दिन पूजा के लिए हरी दूर्वा, पुष्प, और तालाब का जल लेने के लिए महिलाएं और लड़कियां टोली बनाकर लोकगीत गाते हुए कलश भरकर सिर पर लाती हैं और इस कलश या जल से भरे लोटे को दूर्वा और फूल से सजाती है और इस पानी से ईसर और गणगौर का पूजन करती हैं। प्रात: और सायंकाल पूजन किया जाता है।

कैसे मनाया जाता है

कैसे मनाया जाता है

- चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए।

- इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।

- जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता, तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए।

- गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वर्द्विनी और अम्बिक. मां गौरी के सभी रुपों की पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा करनी चाहिए।

-इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को दिन में केवल एक बार ही दूध पीकर इस व्रत को करना चाहिए।

- गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं।

- सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है.

- इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है और भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है।

- कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भरनी चाहिए।

- चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं।

- चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।

- इसी दिन शाम को एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।

- विसर्जन के बाद इसी दिन शाम को उपवास भी खोला जाता है। इस व्रत को करने से उपवासक के घर में संतान, सुख और समृ्द्धि की वृ्द्धि होती है।

गणगौर की पौराणिक कथा

गणगौर की पौराणिक कथा

एक बार की बात है कि भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के ल‍िए गए थे, उनके साथ में नारद मुनि भी थे। चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये उनके आने की खबर पाकर सभी उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी। लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पंहुच गयी। माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। जब उच्च घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर हाज़िर हुई तो माता के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचा तब भगवान शंकर ने पार्वती जी कहा, अपना सारा आशीर्वाद तो इन गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आयी है उस पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पंहुची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। मान्यता है कि यह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था तब से लेकर आज तक स्त्रियां इस दिन गण यानि की भगवान शिव और गौर यानि की माता पार्वती की पूजा करती हैं।

कब तक है गणगौर पूजा

कब तक है गणगौर पूजा

गणगौर फेस्टिवल, चैत्र मास की शुक्ल तृतीया से ही शुरु हो जाती है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार इस बार 21 मार्च से 8 अप्रेल तक ये त्‍योहार मनाया जाएगा। 7 अप्रेल यानी चैत्र मास की शुक्ल द्वितीय को गणगौर सिंजारा है।

English summary

Gangaur Festival 2019 and its significance

Gangaur festival is celebrated for Gauri, the wife of Lord Shiva. This is a festival of marital fidelity and harvest.
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