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कंस के अन्यायों के अंत और अच्छाई की जीत का प्रतीक है कंस वध, जानें इस उत्सव का दिन, कथा, महत्व एवं पूजन विधि
कंस वध, एक ऐसी पौराणिक घटना है जो ना केवल बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है बल्कि उस उम्मीद को भी दर्शाता है जिसमें अंधकारमय समय का अंत लिखा होता है। कंस वध के दिन भगवान् श्री कृष्ण ने कंस की हत्या कर उसके पापों और दुष्कर्मों से आम जनों को मुक्ति दिलाई थी। इस दिन भगवान् श्री कृष्ण की विशेष पूजा कर, अधर्म पर धर्म की जीत और समाज में न्याय की स्थापना का उत्सव मनाया जाता है। इस लेख के माध्यम से जानिए इस साल कंस वध की तिथि,पौराणिक कथा, महत्व और पूजा की विधि।
कंस वध 2021 तिथि
कंस वध की घटना कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के दसवें दिन मनायी जाती है। यह दीपावली के बाद आता है। इस वर्ष कंस वध 13 नवंबर को मनाया जायेगा।
कंस वध से जुड़ी कथा
भगवान् श्री कृष्ण के भक्तों के लिए कंस वध ना केवल धार्मिक रूप से बल्कि नैतिक रूप से भी काफी महत्व रखती है। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को बंदीगृह में डालकर स्वयं को शूरसेन जनपद का महाराज घोषित किया और अपने तानाशाह की शुरुआत की। कंस अपनी चचेरी बहन देवकी से अपार प्रेम करता था। वासुदेव के साथ जब देवकी जी का विवाह हुआ तब एक आकाशवाणी के जरिये कंस को यह ज्ञात हुआ कि देवकी की आठवीं संतान ही कंस के अंत का कारण बनेगी। अपनी मौत के डर से कंस ने देवकी और वासुदेव को भी बंदीगृह में डलवा दिया और एक एक करके उनकी सभी संतानों की हत्या करवा दी गयी। देवकी ने आठवीं संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण को जन्म दिया। श्री कृष्ण को लेकर वासुदेव नंदनगरी पहुंचे और माता यशोदा की संतान से बदल दिया। श्री कृष्ण के बाल रूप से ही कंस ने उनका अंत करने की बहुत कोशिशें की, कई राक्षसों का सहारा लिया परन्तु वह असफल रहा। कुछ वर्षों बाद, एक दिन उसने साजिश के तहत कृष्ण और बलराम को अपने दरबार में आमंत्रित किया। जहां श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव को कारागार से मुक्त कराया और उग्रसेन को दोबारा राजपाठ सौंपा।
कंस वध का महत्व
कंस ने अपने जीवन काल में राक्षसों की सेना द्वारा भय और आतंक फैलाने का ही काम किया था। उसका अंत करके भगवान् श्री कृष्ण ने ना केवल उसके पापों का अंत किया बल्कि सम्पूर्ण मथुरा नगरी में न्याय की स्थापना की। साथ ही वर्षों से अंधकारमय जीवन जी रहे लोगों को भी मुक्ति दिलाई। इसलिए यह पर्व नैतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण बन जाता है।
पूजा विधि
कंस वध की पूर्व संध्या को भगवान् कृष्ण और राधा रानी की विशेष उपासना व पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही विशेष पकवान बनाकर ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए भोग लगाये जाते है। साथ ही कंस की एक प्रतिमा या पुतला बनाकर उसे आग लगाकर नष्ट किया जाता है जो उसके वध और पापों के अंत को प्रदर्शित करता है।
कंस वध की पूर्व संध्या पर विशाल शोभायात्रा भी निकाली जाती है और बड़ी तादाद में भक्तजन एकत्र होकर ‘हरे कृष्णा हरे रामा' का उच्चारण करते हैं। मथुरा में विशेष आयोजनों, शोभा यात्राओं और कंस वध की लीला का भी आयोजन होता है।