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'सत्य और अहिंसा' के पुजारी भगवान महावीर की जयंती आज

By Rupa Shah
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महावीर जयंती जैन समुदाय के प्रमुख त्योहारों में से एक है और इस पर्व का उनके लिए विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महावीर जी का जन्म हुआ था। प्रत्येक वर्ष चैत्र के शुक्ल त्रयोदशी को यह पर्व जैन धर्म के लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते है। इस बार यह 2616 वां महावीर जयंती है जो 29 मार्च को मनाया जाएगा।

भगवान महावीर अहिंसा, त्याग और तपस्या का सन्देश देने वाले जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे। इस पवित्र पर्व के दिन देश के अलग अलग हिस्सों के जैन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है, मंदिरों को सजाया जाता है और कई स्थानों पर अहिंसा का प्रचार करने के लिए रैलियां निकाली जाती है।

आज इस पावन मौके पर अपने इस लेख के माध्यम से आपको भगवान महावीर के जन्म से लेकर उनके आदर्शों के बारे में बताएंगे।

 महावीर जयंती 2018:

कब हुआ महावीर का जन्म?
भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), बिहार के क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था और यह वर्धमान के नाम से जाने जाते थे। इनकी माता का नाम रानी त्रिशला था और इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था। कहतें है वर्धमान की माता को इनके जन्म से पहले 16 विशेष सपने दिखाई दिए थे।

जैन ग्रंथों के अनुसार, 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के मोक्ष प्राप्त करने के 188 वर्ष बाद वर्धमान का जन्म हुआ था। ऐसा मानना है कि जब संसार में हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव बढ़ गया तब वर्धमान का जन्म लोगों को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ने के लिए हुआ था।कहतें है वह बचपन से ही बड़े तेजस्वी और साहसी थे इसलिए लोग उन्हें महावीर कहकर बुलाने लगे।

महावीर जीतेन्द्र के नाम से भी जाने जातें है ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने तमाम मानव इन्द्रियों को अपने बस यानी काबू में कर लिया था।

 महावीर जयंती 2018

कलिंग की राजकुमारी यशोदा से हुआ विवाह
भगवान महावीर सांसारिक बंधनों में बंधना नहीं चाहते थे, इसलिए वे विवाह के लिए तैयार नहीं थे किन्तु माता पिता के दबाव में आकर उन्हें कलिंग की राजकुमारी यशोदा के साथ विवाह करना पड़ा। श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा से ही हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ। वहीं दूसरी ओर दिगंबर परंपरा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे।

जब भगवान महावीर ने त्याग दिया गृहस्थ जीवन
कहते है विवाह के पश्चात भी भगवान महावीर का गृहस्थ जीवन में मन नहीं लगता था, वे तो अहिंसा के मार्ग पर चल कर सत्य को ढूंढ़ना चाहते थे इसलिए जब वे ३० वर्ष के थे उन्होंने सभी सांसारिक सुख, मोह-माया को त्याग दिया और दीक्षा ले लिया।

दीक्षा लेने के पश्चात महावीर ने साढ़े 12 सालों तक कठोर तपस्‍या की फिर वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई। श्रद्धा, भक्ति और तपस्‍या से भगवान महावीर ने जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित किया।

भगवान महावीर ने कार्तिक मास की अमावस्‍या को दीपावली के दिन पावापुरी में निर्वाण को प्राप्‍त किया।

“अहिंसा परमोधर्मा”

महावीर अहिंसा के पुजारी थे उन्होंने कहा था कि अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। संसार में सभी को इस सिद्धांत को अपनाने की जरूरत है, क्योंकि यही यहीं से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। उनका कहना था कि हर प्राणी के प्रति दया का भाव रखो क्योंकि दया ही अहिंसा है।

उनका मानना था कि मनुष्य को कभी भी असत्य का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए। भगवान महावीर ने ब्रह्राचर्य के बारे में बताया है कि उत्तम तपस्या,ज्ञान ,संयम और विनय ब्रह्राचर्य की जड़ है।

English summary

Mahavir Jayanti: All About Jain Festival, Significance And Celebrations

As per the English calendar the Jain Festival is celebrated on the 13th day of the month Chaitra, which is between the months of March or April.
Story first published: Thursday, March 29, 2018, 10:52 [IST]
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