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जब पांडवों ने मिलकर खाया अपने मृत पिता के शरीर का मांस
आज हम महाभारत से जुड़ी एक ऐसी रोचक घटना का ज़िक्र करने जा रहे हैं जिस से शायद बहुत काम लोग ही वाक़िफ़ होंगे और मुश्किल ही उन्होंने पहले कभी इस बारे में सुना या पढ़ा होगा। यूं तो आपने हमारे ग्रंथों से जुड़ी कई कहानियां और किस्से सुने होंगे लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनसे आप अनजान हैं और जिसे सुनकर आप रोमांचित हो उठेंगे। क्या आप जानते हैं कि पांडवों ने अपने पिता के मृत्यु के पश्चात उनके शरीर का मांस खाया था। आखिर ऐसी कौन सी वजह थी जो पांडू पुत्रों को अपने ही पिता के शरीर के अंगों को खाना पड़ा। आज इस लेख में हम आपको इस कहानी से जुड़ा सत्य बताएंगे। तो आइए जानते हैं आख़िर क्या है इसका रहस्य।
कौन थे पांडू
ऋषि व्यास और अम्बालिका के पुत्र पांडू हस्तिनापुर के महाराज थे। उनके जेष्ठ भ्राता धृतराष्ट्र के नेत्रहीन होने के कारण पांडू को हस्तिनापुर का राजपाट संभालने के लिए दे दिया गया था। उनका विवाह रानी कुंती और रानी माद्री से हुआ था।
श्राप के कारण निःसंतान थे पांडू
प्रचलित कथा के अनुसार एक बार पांडू अपनी दोनों रानियों कुंती और माद्री के साथ वन में घूमने के लिए गए थे। वहां उन्होंने शिकार करने का मन बनाया। तभी उन्होंने मृग के भ्रम में बाण चला दिया जो सीधा जाकर एक ऋषि को लगा। कहते हैं जब ऋषि को पांडू का बाण लगा तब वह अपनी पत्नी के साथ सम्भोग कर रहा था इसलिए क्रोध में आकर उसने पांडू को श्राप दे दिया की यदि वह अपनी दोनों पत्नियों या किसी भी अन्य स्त्री के साथ सम्भोग करेगा तो उसी क्षण उसकी मृत्यु हो जाएगी।
कुंती और माद्री को वरदान से प्राप्त हुए पांडव
कहा जाता है कि रानी कुंती के विवाह से पूर्व ऋषि दुर्वासा ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें मंत्र वरदान स्वरुप दिया था। उस मंत्र से रानी कुंती किसी भी देवी देवता का आह्वान कर सकती थीं और उनसे संतान प्राप्ति की कामना कर सकती थीं। यह बात उन्होंने रानी माद्री को बतायी और दोनों ने मिलकर उस मंत्र से भगवान के सामने प्रार्थना कर उनसे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा जिसके पश्चात उन्हें पांच पुत्र युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की प्राप्ति हुई। इन पांचों में से युधिष्ठर, भीम और अर्जुन कुंती के पुत्र थे तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री थी।
अपने काम वेग पर नियंत्रण न रख सके पांडू
ऋषि के श्राप के पश्चात पांडू ने राजपाट सब त्याग दिया और अपनी रानियों के साथ वन में रहने लगे।
एक दिन पांडू अपनी पत्नी माद्री के साथ वन में घूम रहे थे तब वे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाए और माद्री के साथ सम्भोग कर लिया। उसी क्षण वह मृत्यु को प्राप्त हो गए।
जब पांडवों ने खाया मृत पिता के शरीर के अंगों को
माना जाता है कि पांडू बहुत ही ज्ञानी थे किन्तु उनके पुत्रों में उनके जैसा ज्ञान और कौशल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि वे उनके वरदान से प्राप्त हुई संतानें थी न की उनके शरीर से। अपने पुत्रों को भी पांडू अपनी ही तरह बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने पांडवों को आज्ञा दी थी कि उनके मृत्यु के पश्चात पांचों भाई उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों को मिल बांट कर खा लें ताकि वे भी अपने पिता के समान परम ज्ञानी बन जाएं।
लेकिन इस बात के पीछे दो कहानियां प्रचलित है जिन में से एक कथा के अनुसार अपने पिता की आज्ञा का पालन कर उनकी मृत्यु के बाद पांडवों ने मिलकर उनके अंगों को खाया था। वहीं दूसरी ओर माना जाता है कि पांचों भाइयों में से केवल सहदेव ने पांडू की बात मान कर उनके मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये थे। कहते हैं जैसे ही सहदेव ने पहला हिस्सा खाया उसे इतिहास का ज्ञान हो गया, दूसरे हिस्से में उसे वर्तमान और तीसरा हिस्से से उसे भविष्य के बारे में सारी जानकारी हासिल हो गई।
सहदेव को मिला श्री कृष्ण से श्राप
हम सब जानते है कि भगवान कृष्ण को महाभारत के युद्ध के बारे में पहले से पता था किन्तु अपने पिता के मस्तिष्क के हिस्से को खाने के पश्चात सहदेव को भी इस बात का ज्ञान हो गया था। तब मुरली मनोहर ने सहदेव को श्राप दे दिया कि अगर उसने भविष्य की किसी भी बात का खुलासा किया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।