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रंगभरी एकादशी: भगवान शिव और माता गौरी खेलेंगे होली, जानें इस दिन का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
बनारस की गली गली में रंगभरी एकादशी धूमधाम से मनाई जाती है। वाराणसी में एकादशी के दिन से ही होली की शुरुआत मानी जाती है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी का पर्व मनाया जाता है और इसे आमलकी एकादशी भी कहते हैं। ये दिन भगवान शिव की नगरी काशी के लिए बहुत खास होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन महादेव और माता पार्वती अपने गणों के साथ रंग खेलते हैं। भगवान शिव और माता गौरी के वैवाहिक जीवन के लिए भी ये दिन बहुत खास माना जाता है।
रंगभरी एकादशी की तिथि
इस वर्ष रंगभरी एकादशी का त्योहार 6 मार्च को मनाया जाएगा।
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रंगभरी एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 मार्च 2020 को दोपहर 1 बजकर 18 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 6 मार्च 2020 को सुबह 11 बजकर 47 मिनट तक
पारण का समय: 7 मार्च 2020 को सुबह 6 बजकर 40 मिनट से 9 बजकर 1 मिनट तक
रंगभरी एकादशी का महत्व
रंगभरी एकादशी के मौके पर बाबा विश्वनाथ का खास श्रृंगार किया जाता है। उन्हें दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है। काशी के बाबा विश्वनाथ जी के साथ गौरी माता का गौना कराया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवों के देव महादेव रंगभरी एकादशी के दिन ही माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस मौके पर भगवान शिव की सेना ने रंग गुलाल के साथ खुशियां मनाई थीं। ये परंपरा अब भी जारी है और हर साल इस दिन काशी में रंग गुलाल खेला जाता है। साथ ही बाबा विश्वनाथ के साथ माता गौरी का गौना कराया जाता है। यहां हर गली में हर हर महादेव की गूंज सुनाई देती है और हवा में अबीर दिखाई देता है। ये भी मान्यता है कि इस दिन बाबा के साथ होली खेलने से हर मनोकामना पूरी होती है।
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इस दिन को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। इस मौके पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इसके साथ ही आंवले के पेड़ को भी पूजा जाता है। आंवले को भगवान विष्णु का पसंदीदा फल माना जाता है। इस दिन व्रत करना काफी महत्व रखता है। माना जाता है इस दिन व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
रंगभरी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नानादि कर लें और फिर व्रत का संकल्प लें। अपने घर में बने मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर रखें। अब आप घी का दीपक जलाएं। अब शिव-पार्वती की प्रतिमा को मौसमी फल, बेल पत्र, कुमकुम, रोली, पंच मेवा और अक्षत अर्पित करें। आप माता गौरी को शृंगारदान भेंट करें। इसके बाद भगवान को रंग-गुलाल अर्पित करें। अब घी का दीपक और कपूर से आरती उतारें। अब भगवान को भोग लगा दें और फिर घर के सभी सदस्यों को प्रसाद बांटें।
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