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Sankashti Chaturthi November 2022: इस विधि से करें गणधिप गणेश संकष्टी की पूजा
संकष्टी चतुर्थी एक ऐसा दिन है जो भगवान श्री गणेश को समर्पित है। हर महीने की चतुर्थी को एक अलग नाम से जाना जाता है। इस बार नवंबर की संकष्टी, कृष्ण पक्ष के चौथे दिन, भगवान गणेश "गणधीपा" नाम धारण करेंगे। संकष्टी चतुर्थी के दिन, 'संकष्ट गणपति पूजा' की जाती है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक हर व्रत के पीछे कोई कारण होता है। जिसे उस व्रत की कथा में अच्छे से समझाया गया है। गणेश जी की लगभग 13 व्रत कथाएं हैं, हर महीने के लिए एक।
दक्षिण भारतीय या अमावसंत कैलेंडर के मुताबिक, चतुर्थी कार्तिक के महीने में आती है। अमावस्यंत में मराठी, गुजराती, तेलुगु और कन्नड़ पंचांग शामिल हैं। पूर्णिमांत कैलेंडर के मुताबिक, जो उत्तर भारतीय पंचांग है, संकष्टी मार्गशीर्ष महीने में आती है। तमिल और मलयाली और बंगाली कैलेंडर में, यह थुला-वृश्चिका मसम, अल्पासी मसम-कार्तिगई मसम, और कार्तिक-अग्रहन महीने में आता है।
भगवान गणेश के व्रत दो तरह से होते हैं, विनायक चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी। विनायक चतुर्थी व्रत शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है, जबकि संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष को मनाई जाती है। इन दोनों में संकष्टी चतुर्थी ज्यादा लोकप्रिय है। कार्तिक माह की संकष्टी को गणधिप संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। जिसमें महागणपति भगवान गणेश और शिव पीठ की पूजा की जाती है।
गणधिप गणेश संकष्टी 2022: तिथि, मुहूर्त
गणधिप संकष्टी गणेश चतुर्थी 12 नवंबर 2022 को मनाई जाएगी। लेकिन हिंदू पंचाग के मुताबि चतुर्थी तिथि 11 नवंबर 2022 को रात 8 बजकर 17 मिनट से 12 नवंबर 2022 को रात 10 बजतक 25 मिनट तक रहेगी। चंद्रमा 12 नवंबर को रात 8 बजकर 21 मिनट पर नजर आएगा।
गणधिप
गणेश
संकष्टी
पूजा
विधि
णेश संकष्टी चतुर्थी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर भगवान गणेश का स्मरण करें। इसके बाद नहाकर साफ कपड़े पहन लें। इस दिन आप चांद्रोदय यानि चांद दिखने तक उपवास रखेंगे। लाल रंग के कपड़े पहनकर भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करें। पूजा करने के लिए सबसे पहले एक चौकी बना लें। इस पर भगवान गणेश की मूर्ति के सामने एक दीया जलाएं। मूर्ति को नए कपड़े से ढक दें। साथ ही मूर्ति पर जनेऊ और दूर्वा घास चढ़ाएं। अब भगवान गणेश को लाल फूल, हल्दी, कुमकुम, चंदन, अगरबत्ती और धूप चढ़ाएं। आप चाहे तो गणेश जी का मनपसंद भोग मोदक बनाकर उन्हें चढ़ा सकते हैं। या कोई भी शुद्ध मिठाई बनाकर उन्हें अर्पित करें। इसके बाद भगवान गणेश की आरती करें। और शाम को चांद देखने के बाद अपना व्रत खोल लें।
गणधिप
गणेश
संकष्टी
व्रत
कथा
पुराणों के मुताबिक, एक बार, अयोध्या के राजा दशरथ ने जंगल में दृष्टिहीन दंपत्ति के पुत्र को गलती से अपने धनूष से मार डाला। जिसके बाद दृष्टिहीन दंपत्ति ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि वह भी अपने बेटे से अलग होने का दर्द भोगेंगे। जो एक दिन सच हो गया। और राजा दशर को अपने बड़े बेटे भगवान राम को 14 साल क वनवास पर जाना पड़ा। जहां रावण ने सीता माता का अपहरण कर लिया। जिन्हें बचाने के लिए भगवान राम को समुद्र पार कर लंका जाना था। जिसके लिए भगवान राम ने सुग्रीव की मदद ली। जैसे ही सुग्रीव की सेना ने सीता माता की खोज शुरू की। हनुमान जी ने भी लंका में सीता माता की खोज के लिए समुद्र पार करने से पहले इस व्रत का पालन किया था। जिसके बाद संपति ( जटायु के बड़े भाई ) ने अपनी दिव्य दृष्टि से समुद्र के पार रावण के राज्य के बारे में बताया।
गणधिप गणेश संकष्टी का महत्व
मंगलवार भगवान गणेश को समर्पित हैं। चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की पूजा के लिए अच्छा माना जाता है। 'संक्षाति' का अर्थ है बहुत बड़ी परेशानी और 'हरण' का अर्थ है "इसे दूर करने वाला"। इसी कारण भगवान गणेश की इस दिन पूजा-अर्चना की जाती है। क्योंकि वो अपने भक्तों को सभी खतरों से लड़ने और पार पाने में मदद करते हैं। भगवान गणेश को प्रथम पूज्य भी माना जाता है। जिस कारण हर शुभ मौके पर सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है।
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