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जानिए, पौराणिक काल की ये महिलाएं शादीशुदा होकर भी कैसी थी कुंआरी ?
रामायणकाल और महाभारतकाल की ऐसी पांच महिलाओं का पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता हैं, जो शादीशुदा होने के बावजूद भी एक अस्पर्श कन्या के तरह कुंआरी मानी गई। हालांकि ये सारी महिलाओं ने विवाहित जीव
अहिल्या से लेकर मंदोतरी और कुंती से लेकर तारा। रामायणकाल और महाभारतकाल की ऐसी पांच महिलाओं का पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता हैं, जो शादीशुदा होने के बावजूद भी एक अस्पर्श कन्या के तरह कुंआरी मानी गई।
हालांकि ये सारी महिलाओं ने विवाहित जीवन भोगा था, इसके बाद भी इन्हें पूरी जिंदगी वर्जिन यानी कुंआरी ही माना गया। सवाल यह उठता हैं कि आखिर क्यूं इन्हें कुंआरी माना जाता था। ये ही हम आज आपको अपने इस आर्टिकल में बताएगें। आइए पढ़ते है इन पंचकन्याओं के बारे में।
अहिल्या
अहिल्या पद्मपुराण के अनुसार ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या इतनी सुंदर थी, कि इंद्र देव ने ऋषि गौतम का वेश धारण कर उनके साथ समय व्यतीत किया। इस कारण उन्हीं के पति ऋषि गौतम ने उन्हें ताउम्र पत्थर बने रहने का श्राप दे दिया। अहिल्या अपने पति के प्रति काफी ईमानदार थी। इसलिए गलती न होने के कारण भी उन्होंने ऋषि का श्राप स्वीकार करके पूरे जीवन पत्थर बनकर गुजार दिया। जब ऋषि का गुस्सा शांत हुआ और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने अहिल्या को आर्शीवाद दिया कि भगवान श्रीराम के चरणों को छूकर वो इस श्राप से मुक्त हो जाएंगी। इसके बाद राम ने उनकी पवित्र कहा और इसके बाद से वो एक कुंआरी कन्या ही कहलाई गई।
तारा
तारा सुग्रीव के भाई बाली की पत्नी थी। कहा जाता है कि तारा का जन्म समुंद्र मंथन के दौरान हुआ था। भगवान विष्णु ने उसका हाथ बाली को दे दिया था। वे बहुत बुद्धिमती होने के साथ ही पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणियों की भाषा समझने का हुनर रखती थी। जब एक बार बाली असुरों के साथ युद्ध के लिए गया हुआ था और न लौटने पर सभी ने उसे मारा हुआ समझ लिया था।
इसके बाद सुग्रीव ने उस राज्य को बाली की पत्नी तारा को अपने अधीन ले लिया था। जब बाली वापस लौटा तो न सिर्फ अपनी पत्नी बल्कि राज्य को वापस लेकर सुग्रीव को राज्य से बाहर निकाल दिया। जब सुग्रीव भगवान श्रीराम के शरण में गए तो श्रीराम और सुग्रीव के बीच युद्ध हुआ तो तारा समझ गई कि सुग्रीव अकेला नहीं है कि वो बाली को युद्ध के लिए ललकारें।
उसने बाली को समझाने की कोशिश की लेकिन बाली गुस्से में तारा को छोड़कर चला गया। उसके बाद जब श्रीराम ने युद्ध के दौरान बाली का वध कर दिया तो मरते हुए भी बाली ने सुग्रीव को तारा के विचारों को सम्मान देने के लिए कहा क्योंकि तारा अपने पति का हर स्थिति में भला चाहती थी। इसलिए उसे हमेशा पवित्र ही माना गया।
मंदोतरी
अद्भूत सौंदर्य और बुद्धिमान मंदोतरी की शादी रावण से हुई थी। कहा जाता हैं कि मंदोतरी रावण को हर सही और गलत में फर्क बताती थी लेकिन रावण कभी मंदोतरी की बातों को गम्भीरता से नहीं मानता था। रावण के मुत्यु के बाद भगवान राम ने विभिषण से मंदोतरी को आश्रय देने के लिए कहा था।
अपने गुणों के कारण मंदोतरी पूरे जीवन एक कन्या की तरह कुंआरी मानी गई।
कुंती
ऋषि दुर्वास ने पाडंवों की माता कुंती को मंत्र दिया था कि वो जब कभी भी इन मंत्रों का जाप करेगी तो उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। जब उसने सूर्य देवता के मंत्र का उच्चारण किया तो करण की उत्पति हुई। जिसे उन्होंने त्याग दिया।
इसके बाद पांडु से शादी हुई जिसे श्राप मिला कि अगर वो किसी भी महिला को छुएगां तो उसकी मुत्यु हो जाएगी। इसलिए पांडु वंश को आगे बढ़ाने के लिए युधिष्ठिर का धर्म देवता, भीम का वायु देव और अर्जुन का जन्म इंद्र देव से हुआ। यहीं कारण है कि विभिन्न देवताओं से पुत्र प्राप्त होने के बाद भी कुंती को कुंआरी माना जाता हैं।
द्रौपदी
द्रौपदी के पांच पतियों का सौभाग्य प्राप्त था। द्रोपदी का जन्म आग से हुआ था। उसे भगवान शिव का वरदान था कि उसे पांच पतियों की पत्नी बनने का सौभाग्य मिला था। कहा जाता है द्रौपदी का जन्म अग्नि से हुआ था। अग्नि को सबसे पवित्र माना जाता हैं। उसी तरह दूसरे पति के पास जाने से पहले पुन: कौमार्य और शुद्धता प्राप्त करने के लिए द्रौपदी आग पर चलती थी।
ऐसे नियम बहुविवाही पतियों के समक्ष कभी नहीं रखे गए थे। सभी पांडवों की दूसरी पत्नियां थी परन्तु वे पत्नियां अपने माता पिता के साथ रहती थी तथा पांडवों को अपनी इन पत्नियों से मिलने के लिए दूसरे शहर की यात्रा करनी पड़ती थी। वे चार साल में एक बार अपनी पत्नियों से मिलाने जाते थे जब द्रौपदी अन्य भाईयों के साथ अंतरंग होती थी।