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इस दरगाह में हिंदू रखते हैं रोजा, तो वहीं मुसलमान है शुद्ध शाकाहारी, पढ़िए....
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत एकता का प्रतीक एक ऐसा देश है, जहां हर धर्म के लोग एक साथ रहते है। आए दिन इस देश में ऐसी घटनाएं होती रहती है जो हमें गर्वानवित करती है। आज हम आपको एक ऐसी सच्ची कहानी बताएंगे जो भारत के इतिहास में एक ऐसी एकता का प्रतीक है, जिसको जानने के बाद आपका दिल खुशी से चहक उठेगा। आज हम एक ऐसी दरगाह के बारे में बताने जा रहे जहां मुस्लिमों को शाकाहार होने का पाठ पढ़ाया जाता है तो वहीं हिंदू रमजान में तीस दिन के रोजे रखते है। चौकिए मत आगे पढ़िए....
शेख
सैयद
फतिहुद्दीन
बलखि
अलमारुफ
ताराशाह
चिश्ती
साबरी
की
दरगाह
रमजान
के
महीने
में
मुसलमान
तीस
दिन
के
रोजे
रखते
है,
और
जैसा
कि
सब
जानते
है
कि
मुसलमानों
का
मुख्य
भोजन
मांसाहार
होता
है,
पर
आगरा
की
ख्वाजा
शेख
सैयद
फतिहुद्दीन
बलखि
अलमारुफ
ताराशाह
चिश्ती
साबरी
(दरगाह
मरकज
साबरी)
की
मजार
इससे
बिल्कुल
अलग
है।
यहां
इबादत
करने
वाले
मुस्लिमों
को
शुद्ध
शाकाहारी
होने
का
पाठ
पढ़ाया
जाता
है
तो
वहीं
हिंदू,
मुसलमानों
से
ज्यादा
इबादत
करते
है
और
रोजे
रखते
हैं।
हिंदू
बनाते
है
शाकाहारी
अफ्तार
रमजान
के
मौके
पर
तीसो
दिन
यहां
पर
मुस्लिमों
से
ज्यादा
हिंदुओ
की
संख्या
दिखाई
पड़ती
है।
अफ्तार(रोजा
खोलने
का
खाना)
से
लेकर
रोज
का
खाना
तक
हिंदुओ
के
द्वारा
ही
बनाया
जाता
है।
आपको
बता
दे
कि
अफ्तार
भी
पूरी
तरह
से
शुद्ध
शाकाहारी
ही
बनाया
जाता
है।
अगर
आपको
मोहब्बत
की
ये
चौकााने
वाली
मिसाल
देखनी
है
तो
एक
बार
आगरा
के
ख्वाजा
शेख
सैयद
फतिहुद्दीन
बलखि
अलमारुफ
ताराशाह
चिश्ती
साबरी
की
मजार
जरूर
जाएं।
यहां
ज्यादातर
हिंदू
रखते
हैं
रोजा
और
पढ़ते
है
नमाज
दरगाह
पर
आने
वाले
बहुत
से
हिंदू
रोजा
रखते
हैं
और
नमाज
भी
पढ़ते
हैं।
हालांकि,
सभी
नमाज
नहीं
पढ़
पाते
हैं,
लेकिन
बहुत
से
ऐसे
हिंदू
है
जो
यहां
पर
रोजे
के
साथ
नमाज
भी
अदा
करते
है।
मान्यता
है
कि
बाबा
को
मांसाहार
से
सख्त
नफरत
थी
और
मुस्लिमों
से
ज्यादा
उनके
हिंदू
अनुयाई
थे
यही
कारण
है
कि
ये
प्रथा
आज
भी
चली
आ
रही
है।