Just In
- 7 min ago Rash Under Breast: ब्रेस्ट के नीचे रैशेज ने कर दिया हाल बुरा, इन घरेलू इलाज से छुटकारा पाए
- 1 hr ago Mahavir Jayanti 2024: कब मनाया जाएगा जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व महावीर जयंती, जानें इसका इतिहास
- 2 hrs ago LokSabha Chunav 2024 : सही करो मतदान तो, हो उत्तम सरकार... इन संदेशों से लोगों को वोटिंग के लिए करें प्रेरित
- 3 hrs ago नारियल पानी Vs नींबू पानी, गर्मियों में हाइड्रेड रहने के लिए क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?
Don't Miss
- News Lok Sabha Election: राजस्थान में पहले चरण के लोकसभा चुनावों में दिग्गजों के साथ प्रत्याशियों ने डाले वोट
- Education पीएसईबी 10वीं रिजल्ट 2024 लिंक pseb.ac.in सक्रिय, कैसे डाउनलोड करें पंजाब बोर्ड मैट्रिक रिजल्ट मार्कशीट
- Finance Gold Rate Today: सोने के दाम पर लोकसभा चुनाव के दौरान कैसा रहा असर, क्या किमतों में मिली राहत
- Technology बच कर रहें कहीं REMOTLY कोई फोन न हैक कर लें
- Movies किसी आलीशान होटल में नहीं बल्कि इस मंदिर में शादी करेंगी गोविंदा की भांजी आरती, वेडिंग कार्ड की झलक आई सामने
- Travel दुनिया के सबसे व्यस्त और Best एयरपोर्ट्स की लिस्ट में दिल्ली का IGI एयरपोर्ट भी शामिल, देखें पूरी लिस्ट
- Automobiles नई Land Rover Defender के साथ नजर आयी बॉलीवुड सिंगर Neha Kakkar, कीमत जान होश उड़ जाएंगे!
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
आप अपने बच्चें को हॉरर मूवी देखने देती हैं, ये हो सकता है उन पर असर
फिल्में हर किसी के मनोरंजन का साधन है, फिर चाहे बात बड़ों की हो या फिर बच्चों की। हालांकि, किसी को कॉमेडी मूवीज अच्छी लगती हैं तो किसी को हॉरर। ऐसा बच्चों के साथ भी होता है। कुछ बच्चों को अच्छी डरावनी फिल्में रोमांचित करती हैं, तो कुछ ऐसी फिल्मों के नाम से ही घबराने लगते हैं। ऐसे में अक्सर पैरेंट्स के मन में यह कशमकश रहती है कि उन्हें बच्चों के साथ बैठकर हॉरर मूवीज देखनी चाहिए या नहीं। उनके मन में एक डर यह भी होता है कि कहीं हॉरर मूवीज उनके मन में हमेशा के लिए कोई डर पैदा ना कर दे। जिससे छुटकारा पाना काफी मुश्किल हो जाए। तो चलिए आज इस लेख में हम विस्तारपूर्वक जानते हैं कि हॉरर मूवीज का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है और उनके लिए इस तरह की डरावनी फिल्में देखना कितना सही है-
पहले अपने बच्चे को पहचानें
चूंकि हर बच्चा अलग होता है, इसलिए किसी भी चीज को लेकर उसकी प्रतिक्रिया दूसरे बच्चे से अलग हो सकती है। इसलिए, हर बच्चे के लिए हॉरर मूवीज देखना गलत है या सही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह मुख्य रूप से बच्चे के स्वभाव पर निर्भर करता है और आप अपने बच्चे को किसी और से बेहतर जानते हैं, इसलिए आपके लिए यह तय कर पाना अधिक आसान होगा। यदि वे ऐसे बच्चे हैं जो आसानी से चीजों से डर जाते हैं या फिर डरावनी चीजों पर बात करने से भी उन्हें रात में ठीक तरह से नींद नहीं आती है, तो शायद उनके साथ बैठकर हॉरर मूवीज देखना तब तक एक अच्छा विचार नहीं है जब तक कि वे थोड़े बड़े न हों। वहीं, कुछ बच्चों को इससे कोई समस्या नहीं होती है।
करें तैयार
अगर आपका बच्चा पहली बार हॉरर मूवीज देख रहा है या फिर वह हॉरर मूवीज का आनंद लेना चाहता है, लेकिन उसे कुछ हद तक डर लगता है तो ऐसे में आप इस ट्रिक को अपना सकते हैं। बेहतर होगा कि उसके साथ हॉरर मूवीज को देखने से पहले आप इंटरनेट पर हॉरर मूवीज को लेकर थोड़ी रिसर्च कर लें। साथ ही, आपने जिस मूवी को बच्चे के साथ देखने का मन बनाया है, उसकी स्टोरी व कुछ अन्य डीटेल्स पहले ही ले लें। आप इस जानकारी को बच्चे के साथ शेयर करें। पहले से क्या होने वाला है, यह जानना निश्चित रूप से इसे बच्चे के लिए कम डरावना बना देगा।
उम्र का भी रखें ख्याल
जब आप यह तय कर रहे हैं कि बच्चे को हॉरर मूवीज देखनी चाहिए या नहीं, तो ऐसे में उसकी उम्र का ख्याल रखना भी बेहद आवश्यक हो जाता है। मसलन, पांच साल से कम उम्र के बच्चे के लिए फैंटेसी और वास्तविकता में अंतर करना काफी मुश्किल होता है। इसलिए पांच साल से कम उम्र के बच्चे का हॉरर मूवीज देखना उचित नहीं माना जाता। वहीं पांच से सात साल के बच्चे वास्तविकता और फैंटेसी में अंतर करना शुरू कर देते हैं, लेकिन फिर भी यह सलाह दी जाती है कि हॉरर मूवीज बहुत अधिक वॉयलेंट नहीं होनी चाहिए। साथ ही, आप बच्चे के साथ ऐसी हॉरर मूवीज देखना सुनिश्चित करें, जो एक अच्छे मैसेज के साथ खत्म होती हों। ताकि हॉरर और वॉयलेंस के बीच भी बच्चा कुछ अच्छा सीख पाए।
अंततः यह कहा जा सकता है कि डरावनी फिल्में देखने से डरना या बच्चों को उनसे बिल्कुल दूर करना सही नहीं है। हमारे बच्चे अक्सर हमारे कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर कुछ नया एक्सपीरियंस करना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें जबरदस्ती रोकना सही नहीं है। लेकिन आपको उन पर व उनके व्यवहार पर पैनी नजर रखनी चाहिए। साथ ही, उन्हें यह भी समझाने का प्रयास करें कि वास्तविकता और फैंटेसी में अंतर होता है, ताकि वह स्क्रीन पर दर्शाए गए किसी भी दृश्य का खुद पर नकारात्मक प्रभाव ना होने दें।