Just In
- 1 hr ago Lemon Juice Bath : नींबू पानी से नहाने के फायदे जान, रोजाना आप लेमन बाथ लेना शुरु कर देंगे
- 2 hrs ago Lok Sabha Election 2024: हर परिवार के लिए गाय, सभी के लिए बियर, जब चुनाव जीतने के लिए किये अजीबोगरीब वादे
- 3 hrs ago Good Friday के पवित्र दिन ईसाई क्यों खाते हैं मछली जबकि मांस खाना है मना, ये है वजह...
- 5 hrs ago Good Friday: इस दिन सूली पर चढ़ाए गए थे ईसा मसीह फिर क्यों कहा जाता है 'गुड फ्राइडे'
Don't Miss
- Movies ईशा अंबानी ने 508 करोड़ में बेचा अपना 38,000 स्कवेयर फुट का बंगला, इस हसीना ने चुटकी बजाकर खरीदा?
- News Easter 2024: ईस्टर के दिन भी करना होगा काम, मणिपुर सरकार के फैसले से लोगों में आक्रोश
- Finance Gaming का बिजनेस भारत में पसार रहा पांव, आने वाले सालों में 6 अरब डॉलर तक का होगा कारोबार
- Automobiles अब Toll प्लाजा और Fastag से नहीं, इस खास सिस्टम से होगा Toll Collection! नितिन गडकरी ने दिया बड़ा अपडेट
- Technology Oppo F25 Pro भारत में नए Coral Purple कलर में उपलब्ध, जानिए, स्पेक्स और उपलब्धता
- Education BSEB Bihar Board 10th Result 2024: बिहार बोर्ड मैट्रिक रिजल्ट 2024 इस हफ्ते के अंत तक आयेगा
- Travel Good Friday की छुट्टियों में गोवा जाएं तो वहां चल रहे इन फेस्टिवल्स में भी जरूर हो शामिल
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
स्तनपान से मां, बच्चे की जिंदगी बेहतर
(आईएएनएस)| मां के दूध को बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ पोषण माना जाता है और शिशु के जन्म से छह महीने तक उसका एकमात्र आहार होता है।
अध्ययनों में खुलासा हुआ है कि जिन बच्चों को मां का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता, उनमें कान के संक्रमण, सांस में परेशानी और डायरिया की समस्याएं देखने को मिलती हैं।
READ: स्तनपान करवाने के लिए टिप्स
एनएफएचएस की ताजा रपट के अनुसार, मां के दूध से संबंधित फायदों के बावजूद कई भारतीय महिलाएं शिशु के चार माह के होते-होते खुद-ब-खुद स्तनपान कराना छोड़ देती हैं।
रपट के अनुसार, स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे विशिष्ट स्तनपान कराने पर जोर देती हैं। यह भावनात्मक रूप से अनिवार्य, शारीरिक रूप से थकानेवाला और कई बार असहज होता है।
READ: बच्चों के लिए गाय के दूध के तीन लाभ
नई दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में वरिष्ठ सलाहकार ने कहा, "कई महिलाओं ने बताया कि डिलीवरी (प्रसव) के बाद नई भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में उन्हें काफी मुश्किल हुई है। नवजात शिशु की देखभाल के साथ ही घर के कामों और पेशेवर उत्तरदायित्वों को निभाना आसान नहीं होता। उन्हें इन मुश्किलों का बोझ सहना पड़ा और वे कई बार भावुक हो उठीं।"
"कई बार ऐसी महिलाओं को शुरुआती कुछ महीनों में सिर्फ स्तनपान से परहेज भी करना पड़ा। ऐसी स्थिति में परिवार और माहौल द्वारा समर्थन प्रदान कर उनकी जिंदगी में बदलाव लाया जा सकता है।"
"स्तनपान को सिर्फ मां और शिशु के बीच संबंध के रूप में माना जाता है, जोकि गलत धारणा है। दरअसल इसमें पिता की कहीं अधिक बड़ी भूमिका होती है। अनुसंधानों से हमें पता चला है कि पिता द्वारा सहयोग मिलने से मां के स्तनपान जारी रखने के फैसले पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। पिता को निष्क्रिय और तटस्थ प्रेक्षक बनने की जरूरत नहीं है, बल्कि स्तनपान को सफल बनाने की काबिलियत उनमें होती है।"
उन्होंने कहा कि शिशु के दादा-दादी या नाना-नानी भी समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और नई माताओं के लिए समर्थन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। उनके माता-पिता बनने का अनुभव न सिर्फ स्तनपान शुरू करने, बल्कि उसे जारी रखने के मां के फैसले को प्रभावित कर सकता है।
रपट में कहा गया है कि मौजूदा दौर में आमदनी के लिए अधिक-से-अधिक महिलाए नौकरी कर रही हैं। कार्य और परिवारिक जीवन के बीच संतुलन बिठाना उनके लिए महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। लेकिन कभी-कभी उन्हें इन दोनों के बीच में किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है और अपने नवजात को स्तनपान कराना बंद करना पड़ता है।
रपट के अनुसार, संगठनों को ऐसे कार्यस्थल परिवेश का निर्माण करने की जरूरत है, जो स्तनपान कराने के महिलाओं निर्णय को समर्थन एवं सम्मान दे। एक नियोक्ता के रूप में कामकाजी महिलाओं के ब्रेस्टफीडिंग (स्तनपान) में सहयोग करने के तीन रास्ते हैं -समय, अंतराल (स्पेस) और प्रोत्साहन।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।