Just In
- just now एग्स फ्रीज कराएंगी मृणाल ठाकुर, जानें कौन और कब करवा सकता है एग फ्रीज
- 1 hr ago प्रेग्नेंसी में ब्राउन डिस्चार्ज होना नॉर्मल है या मिसकैरेज की तरफ इशारा, जानें यहां
- 2 hrs ago सफेद कपड़ों पर पड़ गए है पीले दाग, तो लांड्री में बेकिंग सोडा का यूं करें इस्तेमाल
- 3 hrs ago DIY Mosquito Repellent : मच्छरों के काटने से बच्चे का हो गया बुरा हाल, बचाने के लिए करें ये काम
Don't Miss
- Finance गोल्ड किस रेट पर कर रहा है शाम को कारोबार, जानिए सुबह से शाम तक क्या रहा गोल्ड का हाल
- Movies Vidya Balan को उनके आउटफिट के लिए अवॉर्ड शो में किया था बेइज्जत, Shah Rukh Khan ने भी उड़ाया था मजाक
- News 'सम्राट चौधरी के बच्चे हैं या नहीं...', उपमुख्यमंत्री पर निजी कमेंट कर फंसी रोहिणी आचार्य, अब BJP लेगी एक्शन
- Technology कॉलिंग के साथ धडल्ले से चलाए Internet, बस आपको करना होगा ये काम, यहां जानिए
- Education CCS यूनिवर्सिटी ने जारी की जून सेमेस्टर के LLB और LLM की डेटशीट 2024, 18 मई से होंगे एग्जाम
- Automobiles भारत में लॉन्च हुई 2024 Jeep Wrangler Facelift, शानदार डिजाइन और धांसू फीचर्स से है लैस, जानें कीमत?
- Travel DGCA ने पेरेंट्स के साथ सफर कर रहे 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बदला नियम, जाने यहां
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
डिलीवरी प्लान करने से कम हो सकती हैं हाइपरटेंशन से जुड़ी दिक्कतें, स्टडी
गर्भवती महिलाओं को कई सारे सलाह दी जाती हैं लेकिन उन्हें कभी ये नहीं बताया जाता कि उन्हें अपने डिलीवरी भी प्लान करनी चाहिए। एक नई स्टडी में पाया गया है कि अगर महिलाएं प्री-टर्म प्री क्लैंपसिआ से पीड़ित हैं तो इन्हें अपनी डिलीवरी प्लान करके रखनी चाहिए। इससे डिलीवरी में आने वाली मुश्किलें और हाइपरटेंशन का खतरा कम हो जाता है। अध्ययन में 34-37 सप्ताह की गर्भवती महिलाओं में प्री-एक्लेमप्सिया के वर्तमान और नए तरीकों की तुलना करते हुए एक परीक्षण से यह निष्कर्ष निकाला गया। यह अध्ययन 'द लैंसेट' पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्री-टर्म प्रीएक्लेंपिआ के पता चलने के 48 घंटे के भीतर ही डिलीवरी प्लान करने से (नॉर्मल या जरूरत पड़ने पर सिजेरियन डिलीवरी) डिलीवर में होने वाली मुश्किलों जैसे कि हाइपरटेंशन से बचा जा सकता है।
जिन महिलाओं ने प्रेगनेंसी के दौरान देखभाल की वर्तमान पद्धति का इस्तेमाल किया उनमें नॉर्मल डिलीवरी होने की ज्यादा संभावना थी। वर्तमान पद्धति से तुलना करने पर शिशु को किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी जैसे कि सांस लेने में दिक्कत होना आदि।
प्री-एक्लेमप्सिया एक ऐसी स्थिति है जो 20 में से 1 गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी के मध्य चरण में प्रभावित करती है। अगर इसका इलाज न किया जाए इसकी वजह से महिला को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है जिसमें महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचना, दौरे पड़ना शामिल है। साथ ही ये मां और बच्चे के लिए घातक भी हो सकता है। वैश्विक स्तर पर हर दिन इसकी वजह से 100 महिलाओं की मृत्यु होती है।
किंग्स कॉलेज लंदन से प्रमुख लेखक प्रोफेसर लुसी चैपल ने बताया, "हम यह पता लगाना चाहते थे कि प्री-एक्लेमप्सिया से ग्रस्त महिला के लिए डिलीवरी का सबसे सही समय क्या हो सकता है। " अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि इस स्थिति में डिलीवरी के लिए जो समय तय किया गया था उससे बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।