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बुद्ध पूर्णिमा 2019: भारत में कुछ ख़ास महत्व रखती है बुद्ध जयंती
बुद्ध जयंती को बुद्ध पूर्णिमा के भी नाम से जाना जाता है। इसे भगवान बुद्ध के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। गौतम बुद्ध को श्रद्धाजंलि देने के लिए उनके ज्ञान और मृत्यु को स्मरण किया जाता है। यह सबसे पवित्र बौद्ध त्योहार है।
बौद्ध धर्म से जुड़े लोग लुंबिनी (अब नेपाल में है) को गौतम बुद्ध का जन्मस्थल मानते हैं। सिद्धार्थ गौतम का जन्म पांचवीं या छठी शताब्दी ई.पूर्व में एक शाही परिवार में हुआ था। हालांकि उन्होंने महज 29 साल की उम्र में अपने शाही महल के बाहर की दुनिया को जानने, मानव पीड़ा को समझने और आत्मज्ञान को तलाशने के लिए अपने परिवार को त्याग दिया था।
भारत के राज्य बिहार में स्थित बोधगया में उन्हें ज्ञान हासिल हुआ। बताया जाता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी के बाकी हिस्से पूर्वी भारत में गुजारे। लोगों का यह मानना है कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में उनका 80 साल की उम्र में निधन हुआ था। ज्यादातर हिंदुओं के अनुसार बुद्ध भगवन विष्णु के नौंवे अवतार हैं। शास्त्रों में इस तरह का संकेत भी मिलता है।
बुद्ध जयंती कब है?
बुद्ध जयंती प्रत्येक वर्ष अप्रैल के आखिरी दिनों या मई के पूर्ण चंद्रमा के दिन पड़ता है। भारत में बुद्ध जयंती 18 मई 2019 को मनाई जाएगी। यह भगवान बुद्ध की 2,581वीं जयंती होगी।
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यह त्योहार कहां मनाया जाता है?
समूचे भारत के विभिन्न बौद्ध स्थलों में, खासकर बोधगया और सारनाथ (वाराणसी के नजदीक, जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था) और कुशीनगर में यह त्योहार मनाया जाता है। मुख्य रूप से बौद्ध क्षेत्रों जैसे सिक्किम, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर बंगाल (कालिम्पोंग, दार्जिलिंग और कुरसेआंग) में भी यह महोत्सव मनाया जाता है।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व?
इसमें प्रार्थना से लेकर, उपदेश, धार्मिक प्रवचन, बौध धर्मगंथों का पाठ, सामूहिक ध्यान, जुलूस और बुध भगवान की प्रतिमा की पूजा जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
बोध गया में, महाबोधी मंदिर को रंगीन झंडों और फूलों से खूबसूरती से सजाया जाता है। बोधी पेड़ (वह पेड़ जिसके नीचे बैठकर भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी) के नीचे विशेष प्रार्थना आयोजित की जाती है।
इस खास अवसर पर उत्तर प्रदेश के सारनाथ में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
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महोत्सव के दौरान किस तरह के रीति-रिवाज मनाए जाते हैं?
कई बौध धर्मी बुद्ध जयंती पर भिक्षुओं को सुनने और प्राचीन श्लोक सुनाने के लिए मंदिर जाते हैं।
बौध धर्मी एक या इससे ज्यादा मंदिरों में अपना समय गुजार सकते हैं। कुछ मंदिरों में भगवान बुद्ध के बाल्यकाल की मूर्तियां सजी होती हैं। मूर्ति को पानी से भरे बेसिन में रखा जाता है, जो फूलों से सजा-धजा होता है।
भक्तगण मंदिर में जाते हैं और प्रतिमा पर जल डालते हैं। यह शुद्ध और नई शुरूआत का प्रतीक माना जाता है। बुद्ध की अन्य प्रतिमाओं की फूलों, मोमबत्तियों और फलों से पूजा की जाती है।
बुद्ध जयंती में बौध धर्मी बुद्ध की शिक्षा पर अधिक जोर देते हैं। वे पैसा, खाना और जरूरी चीजें उन संगठनों को देते हैं जो गरीबों, बुजुर्गों और बीमार मरीजों की मदद करते हैं। जैसा कि गौतम बुद्ध द्वारा प्रचारित किया गया था, उसका अनुसरण करते हुए बौध धर्मी जीवों के प्रति प्यार और अपनत्व दिखाने के लिए पिंजरे में बंद जानवरों को खरीद लेते हैं। इसके बाद उन्हें आजाद छोड़ देते हैं। इस दिन खासकर सफेद रंग के वस्त्र पहने जाते हैं। खाने में मांसाहार नहीं लिया जाता है। इस दिन विशेषतौर पर खीर बनायी जाती है। खीर सुजाता की कहानी को याद करने के लिए बनाई जाती है। सुजाता वह युवती है, जिसने गौतम बुद्ध को चावल की खीर परोसी थी।