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आज से पितृपक्ष शुरु, श्राद्धकर्म करते हुए न करें ये गलतियां

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Pitru Paksha: Things to Avoid | श्राद्ध में भूलकर भी न करें ये 8 काम | Boldsky

हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। श्राद्ध, पितृपक्ष के दौरान किए जाते हैं। पितृपक्ष हर साल अश्विन माह के कृष्‍ण पक्ष में मनाया जाता है। मान्यतानुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है।

श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।

इस वर्ष पितृ पक्ष 24 सितम्बर 2018 से प्रारम्भ हो कर 9 अक्टूबर 2018 को पूर्ण हो रहे हैं। आइए जानते है श्राद्धकर्म करते हुए किन चीजों का ध्‍यान करना चाह‍िए क्‍योंकि इस दौरान की गई गलती के वजह से हमारे पितरों तक दान नहीं पहुंचता है। इसल‍िए पूजा के समय कुछ बातों का विशेष ध्‍यान रखना चाह‍िए।

 श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-

श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-

तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।

वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।

दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मि

 इस गाय का दूध न ले काम में

इस गाय का दूध न ले काम में

श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

बाह्मण को जरुर कराएं भोज

बाह्मण को जरुर कराएं भोज

श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है। ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें। श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

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खाली हाथ न भेजे भिखारी को

खाली हाथ न भेजे भिखारी को

श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।

 नदी किनारे या मंदिर में कराए

नदी किनारे या मंदिर में कराए

दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, नदी का तट, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।

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कौए, कुत्ते और गाय के ल‍िए न‍िकाले भोजन

कौए, कुत्ते और गाय के ल‍िए न‍िकाले भोजन

श्राद्ध के ल‍िए तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

 कब करें पत्‍नी श्राद्ध

कब करें पत्‍नी श्राद्ध

पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडों ( एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए। एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है।

 इन चीजों को न पकाएं

इन चीजों को न पकाएं

चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

तुलसी का करें प्रयोग

तुलसी का करें प्रयोग

तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

 इस समय न करें श्राद्ध

इस समय न करें श्राद्ध

शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग होने पर ) तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। पुराणों के अनुसार सायंकाल और रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: शाम और रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।

केले के पत्ते में न कराएं भोजन

केले के पत्ते में न कराएं भोजन

श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

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पितृरों की पसंद का भोजन कराएं

पितृरों की पसंद का भोजन कराएं

पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

परिवार के सदस्‍यों को जरुर बुलाए

परिवार के सदस्‍यों को जरुर बुलाए

अगर आपके परिवार के सदस्‍य जैसे बहन और बुआ का पूरा परिवार उसी शहर में रहता है तो उन्‍हें जरुर बुलाएं। अगर आप उन्‍हें बुलाना भूल जाते है तो पितृ के ल‍िए कराई गई पूजा को पितृ स्‍वीकार नहीं करते हैं।

 लोहे के आसान पर न बैठे

लोहे के आसान पर न बैठे

श्राद्धकर्म करते समय रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

English summary

Dos and Don’ts for Pitru Paksha Puja

in Shradh rituals, numerous things are there to be taken care of. Here is some dos and don’ts one should be aware of…
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