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जानिये चैत्र नवरात्रि, शरद नवरात्रि से कैसे अलग है?
नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन या शरद, पुष्य,और माघ के महीनों में कुल मिलाकर पांच बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और शरद माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं।
बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है।
इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है।
चैत्र
नवरात्रि
के
लिये
घटस्थापना
चैत्र
प्रतिपदा
को
होती
है
जो
कि
हिन्दु
कैलेण्डर
का
पहला
दिवस
होता
है।
अतः
भक्त
लोग
साल
के
प्रथम
दिन
से
अगले
नौ
दिनों
तक
माता
की
पूजा
कर
वर्ष
का
शुभारम्भ
करते
हैं।
महाराष्ट्र में इसे गुड़ीपढ़वा के नाम से मानाते हैं जबकि कश्मीरी हिंदू इसे नवरे कहते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में उगादी के रूप में मनाते हैं।
चैत्र नवरात्रि को वसन्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। भगवान राम का जन्मदिवस चैत्र नवरात्रि के अन्तिम दिन पड़ता है और इस कारण से चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।
वहीँ शरद नवरात्रि जिसे महाविरत्री भी कहा जाता है, आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन पूरे भारत में दुर्गा पूजा के नाम से मनाया जाता है।
इस नवरात्रि में माँ शक्ति के 9 रूप दुर्गा, भद्रकाली, जगदम्बा, अन्नपूर्णा, सर्वमंगल, भैरवी, चंदिका, ललिता, भवानी और मुकाम्बिका की पूजा होती है।
शरद
नवरात्री
से
एक
और
कहानी
जुड़ी
हुई
है
कि
भगवान
राम
ने
रावण
को
पराजित
करने
के
लिए
देवी
दुर्गा
के
सभी
9
रूपों
की
पूजा
की
थी।
इसके
दसवें
जिस
दिन
भगवान्
राम
ने
रावण
को
मारा
था
उसे
विजया
दशमी
की
तरह
मनाया
जाता
जाता
है।
चैत्र
नवरात्रि
का
महत्व
इन
नौ
दिनों
तक
लोग
व्रत
रखते
हैं
और
हर
एक
दिन
माँ
के
एक
रूप
की
पूजा
करते
हैं।
नवरात्र
के
पहले
दिन
मां
के
रूप
शैलपुत्री
की
पूजा
की
जाती
है।
शैलपुत्री
भगवान
शिव
की
पत्नी
हैं
जिन्हें
ब्रह्मा,
विष्णु
और
महेश
के
बराबर
पूजा
जाता
है।
नवरात्र
के
दूसरे
दिन
मां
के
ब्रह्मचारिणी
स्वरुप
की
आराधना
की
जाती
है।
मां
ब्रह्मचारिणी
की
उपासना
से
भक्तों
का
जीवन
सफल
हो
जाता
है।
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है। नवरात्र के चौथे दिन मां भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। आदिशक्ति का ये ममतामयी रूप है। गोद में स्कन्द यानी कार्तिकेय स्वामी को लेकर विराजित माता का यह स्वरुप जीवन में प्रेम, स्नेह, संवेदना को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा। माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली देवी हैं। मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है।
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इन्होंने भगवान शिव के वरण के लिए कठोर संकल्प लिया था। इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
भक्तों नवरात्र के आखिरी दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है। देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।