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कलावा बांधने का वैज्ञानिक राज

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अक्‍सर घरों और मंदिरों में पूजा समाप्‍त हो जाने के बाद पंडित जी हमारी कलाई पर लाल रंग का कलावा या मौली बांधते हैं। हम में से बहुत से लोग बिना इसकी जरुरत को पहचाते हुए इसे हाथों में बंधवा लेते हैं। लेकिन हिंदू धर्म में कोई भी काम बिना वैज्ञानिक दृष्‍टि से हो कर नहीं गुजरता। मौली का धागा कोई ऐसा वैसा नहीं होता। यह कच्‍चे सूत से तैयार किया जाता है। यह कई रंगों जैसे, लाल, काला, पीला, सफेद या नारंगी रंगों में होती है। कलावा को लोग हाथ, गले, बाजू औ कमर पर बांधते हैं।

Importance of tying Kalava-Mauli

कलावा बांधने से आपको भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। इससे आप हमेशा बुरी दृष्‍टि से बचे रह सकते हैं। लेकिन केवल यही नहीं इसे हाथों में बांधने से स्‍वास्‍थ्‍य में भी बरकत होती है। इस धागे को कलाई पर बांधने से शरीर में वात, पित्त तथा कफ के दोष में सामंजस्य बैठता है। पूजा पाठ के समय धोती पहनना क्‍यूं आवश्‍यक है

माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, इसलिये इसे बांधने से व्‍यक्‍ति स्‍वस्‍थ रहता है। इस बात की भी सलाह दी जाती है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है।

कब कैसे धारण करें कलावा?

शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। पर्व त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।

English summary

Importance of tying Kalava-Mauli

Tying of Mauli/Kalava is not only a customary ritual but it has the potential to control the three humors of the body, Vaat (Wind), Pitt(Bile) and Cough(Phlegm)s, when they are in a disordered.
Story first published: Wednesday, July 16, 2014, 15:33 [IST]
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