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पांचों पांडवों से ज्यादा बलवान और बुद्धिमान कर्ण से सीखें ये 7 चीजें
सूर्यपुत्र कर्ण, महारथी कर्ण, दानवीर कर्ण, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कर्ण ऐसे कितने ही नामों से पुकारे जाने वाले महाभारत के इस महान यौद्धा का दुर्भाग्य ने अन्त तक साथ नहीं छोड़ा। नियती कदम दर कदम पर उसके साथ क्रूर खेल खेलती रही।
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जिस कारण धर्म के पक्ष में खड़े होने वाले इस महारथी को धर्म विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए विवश होना पड़ा। नियती ने कदम कदम पर उसे उस अपराध का दण्ड दिया जो उसने किया ही नहीं था और जिसमें उसका कोई कसूर नहीं था।
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लेकिन क्या आप जानते हैं कि कर्ण के वक्तित्व से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है जैसे विपरीत परिस्त्थियों में हमे कैसे धीरज और धैर्य से काम करना चाहिए। आज हम आपको कर्ण की कुछ ऐसी ही विशेषताओं के बारे में बताने जा रहें है।
कर्ण प्रतिभावान थे
कर्ण महाभारत के सबसे प्रतिभावान व्यक्ति थे। जिसे मारने के लिए कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले इंद्र ने उनसे उनका कवच मांगा फिर कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बन कर अर्जुन के हाथों कर्ण को मारने में मदद की, क्योंकि कर्ण अर्जुन से ज्यादा बलवान और बुद्धिमान थे और अर्जुन उन्हें अकेले हरा नहीं सकते थे।
कर्ण दयावान थे
कर्ण बहुत ही दयावान व्यक्ति थे, और सबकी मदद करने के लिए तत्पर रहते थे। क्योंकि वे सूर्य के पुत्र थे इसलिए कर्ण को उनके पिता ने कवच और कुण्डल दिए थे जो उनकी ज़िन्दगी भर रक्षा करेंगे। यही कारण है कि युद्ध से पहले इंद्र ने दान में उन से उनके कवच और कुण्डल मांग लिए थे, और कर्ण ने बिना कुछ कहे अपने कवच और कुण्डल इंद्र को दे दिए थे। कर्ण की इसी उदारता को देख कर इंद्र ने खुश हो कर उन्हें शक्ति नाम का अस्त्र दिया था।
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
कर्ण एक महान धनुर्धर थे जिनके गुरु खुद परशुराम थे। यही वजह है कि कर्ण अर्जुन से ज्यादा अच्छे धनुर्धर थे।
दानवीर
कर्ण एक ऐसे व्यक्तित्व का उदाहरण है जो गुणी, और दानवीर थे। जब कर्ण मरने वाले थे तब सूर्य और इंद्र ने भिकारी का रूप लिया और कर्ण के सामने दान मांगे पहुंच गए। लेकिन कर्ण ने कहा की अब उनके पास देने के लिए कुछ नहीं है , तब उन भिखारियों ने उनसे उनका सोने का दांत माँगा। और कर्ण ने अपना दांत तुरंत तोड़ कर दे दिया।
कुंती का सम्मान करते थे
कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले कुंती कर्ण के पास सच बताने गयी कि कर्ण उनके पुत्र हैं। और सबसे बड़े होने की वजह से वे पांडवों की तरफ से युद्ध करें और युद्ध के बाद राजा बने। लेकिन कर्ण अपने दोस्त दुर्योधन को धोखा नहीं दे सकते थे। और उन्होंने कुंती से वादा किया कि वे सिर्फ अर्जुन को मारेंगे।
नैतिकता
कृष्ण ने कर्ण को कहा था कि वे दुर्योधन को छोड़ कर पांडवों की तरफ से युद्ध करें। जिसके बाद उन्हें पूरा राज्य और द्रौपदी मिल जायेगी। लेकिन कर्ण ने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि वे दुर्योधन को धोखा नहीं दे सकते थे। यही वजह है वे अपने मूल्यों के पक्के थे और किसी की भी बातों में नहीं आये।
कर्ण में पांचों पांडवों के सभी गुण थे
कर्ण में वे पाँचो गुण थे जो द्रौपदी ने अपने वर के रूप में महादेव से माँगे थे। वे बुद्धिमान, नैतिक मूल्यों, एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर और खूबसूरत थे और यही सारी खूबियां पांचों पांडवों में थी। युधिष्ठिर अपने नैतिक मूल्यों के लिए प्रसिद्ध थे, अर्जुन एक महान धनुर्धर थे, भीमा शारीरिक रूप से मजबूत थे, नकुल और सहदेव शारीरिक रूप से सुन्दर थे।