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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू, उमड़ा आस्था का सैलाब
पूरी दुनिया में मशहूर जगन्नाथ रथ यात्रा एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है जो प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन शुरू होता है। कड़ी सुरक्षा के बीच बड़े ही धूमधाम से जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ भगवान विष्णु और श्री कृष्ण का ही एक नाम है। साल में एक बार भगवान जगन्नाथ को उनके गर्भ गृह से निकालकर यात्रा कराई जाती है। इस यात्रा में श्री कृष्ण अपने सभी भाई बहनों के साथ रथ पर सवार होकर उड़ीसा के पूर्वी तट पर स्थित जगन्नाथ पुरी से निकलते हैं।
इस वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का उत्सव आज यानी 14 जुलाई, शनिवार से पारंपरिक रीति के अनुसार धूमधाम से शुरु हो गया है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर ओडिशा
हिंदू धर्म का यह चौथा सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम, यह चार धाम के नाम से जाने जाते हैं। यह मंदिर 400,000 वर्ग फुट में फैला है और चार दीवारी से घिरा हुआ है। इस मंदिर के तीन मुख्य देवता हैं भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कोई भी पक्षी मंदिर के ऊपर से होकर गुज़र नहीं सकता। प्रतिदिन यहां हज़ारों की संख्या में भक्त भगवान के दर्शन के के लिए आते हैं लेकिन आज तक यहां पर बनने वाला भोग आज तक भक्तों के लिए कम नहीं पड़ा और यह किसी चमत्कार से कम नहीं।
जगन्नाथ रथ यात्रा का जुलुस
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। इस यात्रा में श्री कृष्ण ही अपने भाई बहन के साथ रथ पर सवार रहते हैं। उनके दायीं ओर बहन सुभद्रा रहती हैं और बायीं ओर बड़े भाई बलराम। सबसे पहले जगन्नाथ जी अपने जन्मस्थल गुंडिचा मंदिर जाते हैं। वहां नौ दिन तक रहते हैं। यह मंदिर पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है।
उसके बाद इन तीनों रथ की रथ यात्रा वापस अपने मुख्य जगन्नाथ मंदिर जाती है जिसे बहुडा जात्रा कहा जाता है।
रास्ते में भगवान जगन्नाथ अपने मुस्लिम भक्त सालबेग से मिलने उसके मज़ार पर रुकते हैं फिर उनकी रथ यात्रा आगे बढ़ती है। यह सिलसिला कई वर्षों से चला आ रहा है। इसके बाद भगवान अपनी मौसी के घर पर रुकते हैं। वहां वे अच्छे अच्छे पकवान खाते हैं।
भक्तों के लिए भगवान के दर्शन
जगन्नाथ जी के मंदिर में गैर हिंदुओं और विदेशियों को जाने की अनुमति नहीं है लेकिन जब भगवान की रथ यात्रा निकलती है तो हज़ारों लाखों ऐसे भक्तों को उनके दर्शन करने का मौका मिल जाता है। कहते हैं भगवान के दर्शन मात्र से ही मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है।
हर वर्ष नए रथ
सभी रथों का निर्माण नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ यानी लकड़ियों से होता है। प्रत्येक वर्ष भगवान के लिए नए रथ बनाए जाते हैं और इनमें किसी भी तरह के कील, कांटे या अन्य किसी धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह रथ तीन रंगों में रंगे जाते है।
जगन्नाथ जी का रथ 45 फीट ऊँचा होता है, इसमें 16 पहिये होते हैं, जिसका व्यास 7 फीट का होता है। कहते हैं रथ यात्रा के ठीक पन्द्रह दिन पहले जगन्नाथ जी बीमार पड़ते हैं और उनके स्वस्थ होने के बाद यह जुलूस निकाला जाता है।
मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान के रथ को खींचता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। बच्चे बूढ़े जवान सभी झूमते नाचते भजन गाते भगवान की इस यात्रा में शामिल होते है। इस दौरान बहुत ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था होती है।