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कजरी तीज की पूजा के दौरान जरूर करें इस व्रत कथा का पाठ
हर साल भादो माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि का दिन कजरी तीज के रूप में मनाया जाता है। हरियाली तीज की भांति ही कजरी तीज पर भी सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। कजरी तीज को कजली तीज, सातूड़ी तीज और बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज की पूजा के दौरान इससे जुड़ी व्रत कथा का भी खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जब तक पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ न किया जाए तब तक इसका पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है।
कजरी तीज कथा
प्रचलित कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजरी तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है। कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए। लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान। इस पर ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए।
इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा। वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया। इतना करने के बाद ब्राह्मण अपनी पोटली बांधकर जाने लगा। तभी खटपट की आवाज सुनकर साहूूकार के नौकर जाग गए और वह चोर-चोर आवाज लगाने लगे।
ब्राह्मण को उन्होंने पकड़ लिया साहूकार भी वहां पहुंच गया। ब्राह्मण ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है। इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है। ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला। उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी।
साहूकार ने कहा कि आज तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे। कजरी माता अपनी कृपा सब पर करें।