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नरसिंह जयंती 2018 : बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है विष्णु जी का यह स्वरुप
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने अपने पांचवे अवतार के रूप में नरसिंह का रूप धारण किया था। हम सब जानते है कि भगवान विष्णु ने पाप का अंत करने के लिए अलग अलग अवतार लिए थे ठीक उसी प्रकार श्री हरि का यह अवतार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
नरसिंह अवतार में विष्णु जी ने दैत्यों के राजा हिरणकश्यप का वध किया था। आपको बता दें इस बार नरसिंह जयंती 28 अप्रैल शनिवार को है।
आइए जानते है क्यों मानते है नरसिंह जयंती और इसकी पूजा और व्रत की विधि।
व्रत और पूजा विधि
नरसिंह जयंती पर व्रत और पूजा करने से इस घोर कलयुग में भी बड़ी ही आसानी से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मनुष्य की सभी मनोकामना की पूर्ति होती है।
इस दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें। तत्पश्चात पीलावस्त्र बिछाकर उस पर भगवान नरसिंह और लक्ष्मीजी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें। भगवान को कुमकुम और केसर का टीका लगाएं, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। फिर भगवान को फल, मिठाई और पंचमेवा का भोग लगाएं और नारियल चढ़ाएं।
कुश के आसान पर बैठकर भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप करें, हो सके तो मंत्रों का जाप करते वक़्त रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें।
इस दिन हवन करना बहुत ही शुभ माना जाता है इसलिए हवन ज़रूर कराएं। साथ ही पूजा में गंगाजल, काले तिल और पांच गव्य का प्रयोग करना न भूलें।
नरसिंह जयंती पर दान को भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन तिल, सोना या वस्त्र का दान करना बहुत ही लाभकारी होता है।
नरसिंह जयंती का महत्व
हिंदू धर्म के लोगों के लिए नरसिंह जयंती उनके प्रमुख त्योहारों में से एक है इसलिए इस दिन भक्त बड़े ही श्रद्धा से भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी सच्चे मन से भगवान नरसिंह और देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। उसे सफलता ज़रूर मिलती है, साथ ही उसके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है।
देवी लक्ष्मी की कृपा से उसके जीवन में किसी भी तरह की आर्थिक समस्या नहीं आती है।
इस मंत्र का करें जाप
'श्रौं’/ क्ष्रौं (नृसिंह बीज मंत्र)
इस मंत्र का जाप करने से आपको सभी बुरी शक्तियों से छुटकारा मिल जाएगा और आपके जीवन में सुख और शान्ति बनी रहेगी। इस मंत्र का जाप रात में ही करें। पहले एक घी का दीपक जला लें उसके पश्चात शांत माहौल में बैठकर इस मंत्र का उच्चारण करें।
पूजा का शुभ मुहूर्त
मध्याह्न संकल्प का शुभ मुहूर्त: सुबह 11:00 बजे से दोपहर 01:37 बजे तक
शाम को पूजा का समय: शाम 04:13 बजे से 06:50 बजे तक
इसलिए मनाते है नरसिंह जयंती
कहते हैं भगवान अपने भक्तों के द्वारा की गई सच्चे मन से प्रार्थना को ज़रूर सुनते हैं और उनकी सहायता करते है। भगवान विष्णु ने भी अपने नरसिंह अवतार में अपने परम भक्त प्रह्लाद को मुसीबत से बचाया था।
प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा था। उसकी पत्नी का नाम दिति था। कश्यप के दो पुत्र थे हरिण्याक्ष और हिरण्यकश्यप। एक बार हिरण्याक्ष धरती को पाताल लोक में ले गया। तब विष्णु जी ने वाराह रूप धरकर उसका वध कर दिया और वापस शेषनाग की पीठ पर धरती को स्थापित कर दिया।
अपने भाई की मृत्यु के पश्चात हिरण्यकश्यप प्रतिशोध की आग में जलने लगा। उसने अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने का निर्णय लिया और कठोर तपस्या करने लगा। तब ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर उससे वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकश्यप ने उनसे कहा कि उसे कोई नहीं मार सके न तो मनुष्य न ही कोई पशु पक्षी। उसकी मृत्यु न तो घर के अंदर हो न तो घर के बाहर। किसी भी पहर उसकी मृत्यु न हो। कोई भी अस्त्र शस्त्र उसका कुछ भी न बिगाड़ पाए।
ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त कर वह बहुत ही घमंडी हो गया और अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा। उसके राज्य में कोई भी भगवान की पूजा नहीं कर सकता था जो भी ऐसा करता वह उसे मार डालता। इसी दौरान उसके यहाँ एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का बड़ा ही भक्त था उसका सारा समय श्री हरि की भक्ति में ही जाता था।किन्तु हिरण्यकश्यप को यह बात तनिक भी नहीं भाती थी। उसने अपने पुत्र को लाख समझाया पर फिर भी प्रह्लाद नहीं माना।
तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को मारने का निश्चय किया। होलिका को वरदान था कि आग उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती इसलिए वह जलती हुई आग में प्रह्लाद को लेकर बैठ गई। किन्तु प्रह्लाद का तो बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका उस अग्नि में जल कर भस्म हो गई।
अपनी बहन की मृत्यु से हिरण्यकश्यप और भी क्रोधित हो उठा और अपनी मयान से तलवार निकाल कर प्रह्लाद पर वार करने लगा। तभी वहीं एक खम्भे को फाड़ कर भगवान नरसिंह प्रकट हुए और उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपनी दोनों जांघो के बीच रखकर उसकी छाती को अपने नाखूनों से चीर दिया।
इस प्रकार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
विष्णु जी का यह स्वरूप
भगवान विष्णु का यह अवतार जो भगवान नरसिंह के रूप में जाना जाता है इसमें इनका आधा शरीर नर तथा आधा शरीर सिंह के समान है। श्री हरि का यह स्वरुप नर और सिंह को मिलकर बना है तभी इन्हें नरसिंह कहा जाता है।