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सत्यनारायण व्रत और उसका महत्व
श्री सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। यह व्रत सत्य को अपने जीवन और आचरण में उतारने के लिए किया जाता है।
इस सत्यव्रत को कोई मानव यदि अपने जीवन और आचरण को स्थापित करता है तो वह अपने भीतर भगवन के गुड़ों का आधान करता है और संमूर्ण सुख समृद्धि व ऐश्वर्यों को प्राप्त होता हुआ जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म-अर्थ काम-मोक्ष को सिद्ध कर लेता है। घर में हो रहे क्लेशों से मुक्ति प्राप्ति का यह एक अद्वितीय व्रत है।
यह व्रत मनोकामना पूर्ती के लिए भी किया जाता है, इस वर्त की सबसे ख़ास बात यह कि इस वर्त को करने का कोई भी दिन निर्धारित नहीं है इस लिए सत्यनारायण की पूजा आप चैत्र (मार्च-अप्रैल), वैशाख (अप्रैल-मई), श्रावण (जुलाई-अगस्त) और कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने में की जा सकती है।
READ:
प्रदोष
व्रत
से
जुडे
तथ्यों
के
बारे
में
जानें
सत्यनारायण
व्रत
के
पीछे
की
कथा
एक
बार
नारद
मुनि
पृथ्वी
पर
भ्रमण
कर
रहे
थे,
तभी
उन्हों
ने
पृथ्वी
पर
दुःख
और
कलेश
देखा
जिससे
मनुष्य
झुझ
रहा
था।
वे
यह
सब
देख
कर
बहुत
दुखी
हुए
और
भगवान
विष्णु
के
पास
गए।
नारद
मुनि
ने
भगवान
विष्णु
से
प्रार्थना
कि
वे
मनुष्यों
के
दुखों
को
समाप्त
करने
का
कोई
उयाये
बताएं।
भगवान
विष्णु
ने
तब
उन्हें
सत्यनारायण
की
कथा
सुनाई,
जिसे
मनुष्य
के
सारे
दुःख
समाप्त
हो
जाएंगे।
इसके
बाद
जब
नारद
मुनि
पृथ्वी
पर
वापस
गए
तो
उन्होंने
सत्य
नारायण
के
वर्त
के
बारे
में
सब
मनुष्यों
को
बताया।
और
यह
भी
कहा
कि
इसे
श्रद्धापूर्वक
करने
से
इसान
की
हर
मनोकामना
पूरी
हो
जायेगी।
सत्यनारायण वर्त कैसे किया जाता है?
भगवान सत्यनारायण जो भगवान विष्णु के रूप है उनकी पूजा सत्यनारायण वर्त में होती है। इसमें पञ्चामृत (दूध, शहद, घी/मख्खन, दही और चीनी का मिश्रण) का उपयोग किया जाता है, शालिग्राम जो कि विष्णु जी का पवित्र पत्थर है, पर चढ़ाया जाता है। फिर पँजीरी जो कि सक्कर और गेहूँ के भुने हुए आटे की होती है, केला और अन्य फलों को प्रसाद के रूप में उपयोग में लिया जाता है।
तुलसी की पत्तियाँ भी प्रसाद में मिला दी जाती है जिससे प्रसाद और भी ज्यादा पवित्र हो जाता है। पूजा की अन्य आवश्यकता पूजा की कहानी होती है जिसे कथा के रूप में भी जाना जाता है और यह कथा पूजा में शामिल श्रद्धालुओं और जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं, उनके द्वारा सुनी जाती है। सत्यनारायण कथा में पूजा की उत्पत्ति, पूजा को करने के लाभ और किसी के द्वारा पूजा करने का भूलने से होने वाली संभावित दुर्घटनाओं की कहानी शामिल हैं।
पूजा की समाप्ती आरती के साथ होती है जिसमें भगवान की मूर्ति या छवि के आस-पास कर्पूर से ज्वलित छोटी सी ज्योति को घुमाते हैं। आरती के बाद श्रद्धालु लोग पञ्चामृत और प्रसाद को ग्रहण करते हैं। व्रत करने वाले श्रद्धालु पञ्चामृत से व्रत को तोड़ने के बाद प्रसाद को खा सकते हैं।
सत्यनारायण
व्रत
कैसे
अन्य
व्रत
से
अलग
है?
सत्यनारायण
व्रत
सैन्य
व्रत
इसलिए
अलग
है
क्योंकि
इसे
करने
की
विधि
बहुत
ही
साधारण
है।
इसे
करने
के
लिए
किसी
पंडित
की
जरुरत
नहीं
पड़ती
है
यह
कोई
भी
कर
सकता
है।
फिर
चाहे
वह
किसी
भी
जाती
का
हो।
इस
वर्त
में
सिर्फ
भगवान
विष्णु
की
पूजा
होती
है।
इसे
आप
कही
भी
करा
सकते
हैं
यह
स्थान
मंदिर
या
घर
भी
हो
सकता
है।
यह
व्रत
कलयुग
के
लिए
ही
बना
है,
जिसमें
आपको
किसी
भी
वेद
यह
पुराणों
को
पढ़ने
की
जरुरत
नहीं
है।
इस
व्रत
में
यही
बताया
गया
है
कि
मोक्ष
की
प्राप्ति
इस
युग
में
श्री
नारायण
का
नाम
लेने
से
ही
होगी।