For Quick Alerts
ALLOW NOTIFICATIONS  
For Daily Alerts

शालीग्राम की कहानी: विष्णु को श्राप क्यों मिला?

By Super
|
Dev Uthni Ekadashi: देवउठनी एकादशी पर शालिग्राम पूजन का महत्व और लाभ | Shaligram Pooja | Boldsky

आपने यह गौर किया होगा कि भगवान विष्णु को कई स्थानों में काले पत्थर के रूप पूजा जाता है। यही नहीं सत्य नारायण की पूजा के समय पंडित जी एक काला पत्थर साथ में रखते हैं जो विष्णु जी की मूर्ति के पास रखा जाता है और फिर पूजा शुरु की जाती है। इसे पत्‍थर को शालिग्राम के नाम से जाना जाता है।

यह श्राप इतना शक्तिशाली था जिसने भगवान विष्णु को पत्थर में बदल दिया। यह उन्हें स्वीकार करना पड़ा क्योंकि यह उनकी सबसे प्रिय भक्त वृंदा ने उन्हें दिया था। यह शालिग्राम पत्थर केवल गंडक नदी के तट के पास पाया जाता है।

READ: सत्यनारायण व्रत और उसका महत्व

यह आमतौर पर काले या लाल रंग में मिलता है और बाक्स में रखा जाता है। जो कोई भी यह शालिग्राम पत्थर अपने घर में रखता है उसे पूजा और साफ़ सफाई का बहुत ध्यान रखना

पड़ता है। यह कहानी है अहंकार, भक्ति, प्रेम और विश्वासघात की, जिसमें भगवान ने भक्त के साथ धोखा किया और जिसकी वजह से उन्हें श्राप मिला। आइये जानते हैं इसकी पूरी कहानी।

जालंधर: शिव का एक भाग

जालंधर: शिव का एक भाग

एक समय जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर था। जो शिव की तीसरी आँख से उत्पन्न हुआ था। यही कारण था कि वह अत्यंत शक्तिशाली योद्धा था। इसका विवाह वृंदा नामक कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। इसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया था।

जालंधर और शिव का युद्ध

जालंधर और शिव का युद्ध

इसने एक युद्ध में भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। अपने अजेय होने पर इसे अभिमान हो गया और स्वर्ग के देवताओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे। क्योंकि जालंधर को तभी हराया जा सकता जब पत्नी वृंदा पवित्रता को भांग कर दिया जाए।

वृंदा: विष्णु की सबसे बड़ी भक्त

वृंदा: विष्णु की सबसे बड़ी भक्त

एक असुर की बेटी और पत्नी होने के बावजूद वह भगवान विष्णु की भक्त थी। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और उन पर उसे पूरा विश्वास करती थी।

विष्णु का विश्वासघात

विष्णु का विश्वासघात

सभी देवताओं ने देखा कि शिव भी उसे हरा नहीं पाये तो वे विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलांधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गयी और वह युद्ध में मारा गया।

वृंदा का अभिशाप

वृंदा का अभिशाप

जब वृंदा ने भगवान विष्णु को छुआ तब उसे पता चला कि वह जालंधर नहीं है। और उसने पूछा कि वह कौन हैं। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे इसलिए वृंदा के शाप को जिवित रखने के लिए उन्होनें अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।

तुलसी

तुलसी

भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।

 शालीग्राम तुलसी का विवाह

शालीग्राम तुलसी का विवाह

वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाये रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

English summary

शालीग्राम की कहानी: विष्णु को श्राप क्यों मिला?

Read on to find out the whole story of the Shalimar stone and why Lord Vishnu was cursed.
Desktop Bottom Promotion