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उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु जी के साथ करें लक्ष्मी जी की भी जरूर करें पूजा
हिंदू धर्म में एकादशी का दिन बहुत ही पवित्र माना जाता है कहते हैं जो भी भक्त इस दिन सच्चे मन से व्रत और पूजा करता है उसके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके अलावा पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है। इन्हीं में से एक है उत्पन्ना एकादशी। इस बार उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर, रविवार को है। पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्पन्ना एकादशी के दिन माता एकादशी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत नहीं रखता है और इसकी शुरुआत करना चाहता है तो मार्गशीर्ष माह की उत्पन्ना एकादशी के दिन से वह इस व्रत को शुरू कर सकता है। एकादशी का व्रत शुरू करने के लिए यह दिन बेहद शुभ माना जाता है।
आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त विधि, महत्व और व्रत कथा के बारे में।
उत्पन्ना एकादशी का मुहूर्त
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 19 नवंबर को सुबह 10 बजकर 29 मिनट से होगी जो 20 नवंबर को सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी। एकादशी के व्रत का पारण 21 नवंबर को सुबह 06 बजकर 40 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 47 मिनट तक के बीच किया जा सकता है।
उत्पन्ना एकादशी पूजन विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा के स्थान पर गंगाजल छिड़ककर आप विष्णु जी की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें। आप चाहें तो इस दिन व्रत भी रख सकते हैं। भगवान को फूल और तुलसी चढ़ाएं। कहा जाता है कि बिना तुलसी के विष्णु जी की पूजा अधूरी होती है। प्रसाद में भगवान को सात्विक चीजों का ही भोग लगाएं। इस दिन विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है।
उत्पन्ना एकादशी कथा
सतयुग में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था जिसके पुत्र का नाम था मुर। इस दैत्य ने इंद्र, वरुण, यम, अग्नि, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सभी के स्थान पर अपना आधिपत्या स्थापित कर लिया था। जब सभी देवता पराजित हो गए तो वे भगवान शिव के पास पहुंचे। तब महादेव ने देवताओं को जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा। इसके बाद विष्णु जी और मूर के बीच पूरे 10 हजार सालों तक युद्ध चला और विष्णु जी के बाण से मुर का पूरा शरीर छिन्न-भिन्न हो गया था लेकिन वह हारा नहीं था।
जब थककर विष्णु जी बद्रीकाश्रम गुफा में विश्राम के लिए गए तब दैत्य मुर भी विष्णु का पीछा करते करते वहां पहुंच गया। जैसे ही उसने भगवान पर प्रहार करना चाहा विष्णु जी के शरीर से कांतिमय रूप वाली देवी का जन्म हुआ और उन्होंने उ राक्षस का वध कर दिया। उस दिन मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि थी, इसलिए भगवान ने उस देवी को एकादशी नाम दिया था। इस दिन देवी एकादशी उत्पन्न हुई थी इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
कहते हैं जो एकादशी का व्रत करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के बाद व्यक्ति को बैकुंठलोक की प्राप्ति होती है।