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करवा चौथ व्रत 2017: जानें व्रत के महत्व, सरगी और कथा के बारे में
8 अक्टूबर को करवा चौथ का व्रत हैं, जिसमें सुहागिन महिलाएं तब तक अन्न का एक दाना नहीं खाएंगी, जब तक चंद्रदर्शन नहीं होंगे।
हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों में , करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं की जिंदगी में अत्यधिक महत्व रखता है, जिसके तहत इस वर्ष 8 अक्टूबर को महिलाएं अपने पति की सुरक्षा और दीर्घायु की कामना के साथ इस व्रत को करेगी।
तो आइए जानते है इस व्रत के पीछे की क्या कहानी है ? इसे क्यूं मनाया जाता है और इस दिन महिलाएं किस प्रकार का भोजन बनाती है?
करवा चौथ और सरगी क्या है ?
विवाहित हिन्दू महिला अपने पति की दीर्घायु की कामना के साथ निर्जल व्रत रखेगी।
वे सरगी खाने के लिए सूर्योदय से पहले उठेगी, जो कि महिला की सास बनाएगी।
ये सरगी ज्यादातर सूखे मेवे, नारियल से बनी होती है और इसके साथ ज्वैलरी जैसे उपहार भी शामिल होते है।
कब खाते हैं सरगी
सरगी खाने के बाद, व्रत करने वाली महिलाएं जब तक चांद दिखाई नहीं देता तब तक पूरा दिन बिना कुछ खाए-पीए व्यतीत करती है।
महिलाएं इस दिन भगवान शिव, पार्वती और भगवान कार्तिकेय की आराधना भी करेगी।
शाम के समय, महिलाएं भगवान की पूजा कर उन्हें प्रसाद अर्पित करेगी और अपने पति की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करेगी।
जब चांद दिखाई देगा, तो महिलाएं चांद और अपने पति के चेहरे को छलनी से देखेगी और पति अपनी पत्नी का उपवास तोड़ने के लिए उसे जल पिलाएगा।
अन्य परंपराएं
चांद दिखाई देने से पहले, महिलाएं एक सामूहिक समारोह का आयोजन करती है जहां वे पारंपरिक वेशभूषा यानि साड़ी या लहंगा में सज-धजकर एक सर्कल में बैठेंगी और करवा चौथ से जुड़ी कथा और गीत सुनाएगी।
अपने पति की दीर्घायु और पारिवारिक सुख-शांति के लिए महिलाएं मां पार्वती की प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना करेगी और देवताओं को भोजन अर्पण करेगी।
करवा चौथ की कथा क्या है ?
करवा चौथ के व्रत से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा ये है कि एक वीरावती नामक कन्या थी जो सात भाईयों की इकलौती बहन थी।
युवावस्था में वीरावती का विवाह हो जाता है, वो अपना पहला करवा चौथ का व्रत अपने पिता के घर पर ही करती है, लेकिन शाम होते ही वो भूख-प्यास से बैचेन हो जाती है और चांद दिखने का बेसब्री से इंतजार करने लगती है ताकि चांद दिखने के बाद वो खाना खा सके और पानी पी सकें।
वीरावती के भाई जो कि अपनी बहिन से अत्यधिक स्नेह रखते थे वे उसकी ये स्थिति नहीं देख पाए, और उन्होंने एक ऐसी काल्पनिक छवि बनाई जो चंद्रमा के समान नजर आ रही थी। अनजाने में वीरावती इस झूठ को हकीकत मान लेती है।
लेकिन अपनी पूजा पूरी करने के बाद जैसी ही वीरावती अपना उपवास तोड़ने बैठी, कि तभी उसे ये संदेश मिलता है कि उसके पति की मृत्य हो गई, पति के जाने के गम में वो पूरी रात रोती रही।
फिर उसे देवी ने सपने में दर्शन देकर कहा कि अगर वो सच्ची श्रद्धा और निष्ठा के साथ करवा चौथ के व्रत को दुबारा करेगी तो वो अपने पति को जिंदा देख सकेगी।
देवी के वचन सुनकर वीरावती ने चौथ माता का व्रत पूर्ण भक्तिभाव के साथ किया, जिससे उसकी मुराद पुरी हुई और उसका पति सकुशल वापिस लौट आया।