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Mirabai Chanu: टोक्यो ओलिंपिक में मीराबाई चानू ने खोला भारत का खाता, जानें कामयाबी की कहानी
भारत के टोक्यो ओलंपिक सफर का आगाज़ वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के रजत पदक के साथ हो चुका है और पदक जीतने के साथ ही चानू ने रिओ में अधूरे रहे अपने सपने को साकार कर दिखाया है। उन्होंने 49 किलो महिला श्रेणी में ओलंपिक रजत पदक हासिल किया है। पदक जीतते ही ट्विटर पर बधाई सन्देश आने प्रारम्भ हो गए, पधानमंत्री मोदी ने भी भारत के पहले पदक और चानू की सफलता के लिए बधाई ट्वीट किया। टोक्यो ओलम्पिक में भारत को इतनी बड़ी सफलता प्राप्त कराने वाली मीराबाई चानू के बारे में जानते हैं कुछ ख़ास बातें-
लकड़ियां उठाने से ओलिंपिक तक का सफ़र
बचपन में भारी जलावन लकड़ियों के बोझ को आसानी से उठा लेनी वाली चानू ने आज टोक्यो में कुल 202 किलोग्राम के वज़न को उठाकर पदक विजेता बनी है और उनका यह सफर बेहद प्रेरणादायी रहा। इम्फाल से करीब 20 किलोमीटर दूर नोंगपोक काकचिंग गाँव के एक साधारण से परिवार में जन्मी चानू ने 6 भाई बहनों में सबसे छोटी थी पर उनका सपना बहुत बड़ा था। उनके बड़े भाई बताते हैं कि बचपन में वे सभी बड़ों से ज़्यादा वज़न की लकड़ियां काफी आसानी से उठा लेती थी। उनके पिता पब्लिक वर्क्स विभाग में कर्मचारी थे तो वहीं मां गांव में ही छोटी सी दुकान चलाती थी। सभी दिक्कतों और चुनौतियों को पारन करके चानू ने पिछले कुछ सालों में भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय भारत्तोलन जगत में अपना नाम बनाया है।
तीरंदाज़ी पर थी नज़र
चानू अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि जब भाइयों के साथ फुटबॉल खेला करती थी तब उनके सभी कपड़े गंदे हो जाया करते थे। उन्हें ऐसा खेल खेलना था जिसमें उनके कपड़े और शरीर साफ़ रहे। पहले उनका रुझान तीरंदाज़ी की ओर था। पैशन का अनुसरण करते हुए उन्होंने वेटलिफ्टिंग को चुना और शुरूआती उम्र से ही ट्रेनिंग शुरू कर दी।
रिओ में टूटा था सपना
20 साल की उम्र में ही 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों में रजत पदक हासिल कर चानू सुर्ख़ियों में आयी थी। 2016 के रिओ ओलिंपिक में भारत की ओर से पदक की मज़बूत दावेदार थी परन्तु वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दिखा पाई जिसका मलाल उनको रहा। रिओ के बाद से उन्होंने अपना बेहतरीन प्रदर्शन जारी रखा और 2018 के कॉमनवेल्थ खेलों में और वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी पदकों का सिलसिला बनाये रखा।
हालांकि 2020 में वे कंधे की चोट से परेशान थी परन्तु उन्होंने अमेरिका जाकर अपनी ट्रेनिंग पूरी की और टोक्यो में भारत के लिए पदक लाने की उम्मीदों को बनाए रखा।
आज ओलम्पिक खेलों में उन्होंने पूरे भारतवर्ष की आशाओं को सफलतापूर्वक अपने कन्धों पर उठाया।