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भीकाजी कामा: वो औरत जिसने विदेशी सरजमीं में पहली बार फहराया था भारत का झंडा

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देश की आजादी में न जाने कितने लोगों ने बलिदान और योग द‍िया। लेकिन इस जंग के कुछ लोगों के नाम जुबां पर छाए रहें वहीं कुछ लोगों के योगदान समय के साथ भुला दिए गए। ऐसी ही एक वीरागंना थी, जिन्‍होंने साल 1907 में विदेश में पहली बार भारत का झंडा फहराकर अपना नाम इतिहास के पन्‍नों में दर्ज करवा द‍िया। इस महिला का नाम है भीकाजी कामा, जिन्‍हें मेडम कामा के नाम से भी जाना जाता था।

 देशसेवा में जुट गई

देशसेवा में जुट गई

भारतीय मूल की पारसी परिवार में जन्‍मी मैडम भीकाजी जी रुस्तम कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को हुआ था। साल 1885 में उनकी शादी जानेमाने व्यापारी रुस्तमजी कामा से हुई। ब्रितानी हुकूमत को लेकर दोनों के विचार बहुत अलग थे। रुस्तमजी कामा ब्रिटिश सरकार के हिमायती थे और भीकाजी एक मुखर राष्ट्रवादी थी। उन्होंने तो अपने वतन को विदेशी दासता से मुक्ति दिलाने का सपना देखा था। शादी के कुछ दिनों बाद ही भीकाजी कामा आजादी की लड़ाई में कूद गईं। एक बार वर्ष 1896 में मुम्बई में जब प्लेग फैला, भीकाजी मरीजों की सेवा में जुट गईं। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई थी।

इलाज के लिए वो 1902 में लंदन गईं और उसी दौरान क्रांतिकारी नेता श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिलीं। प्रो. यादव बताते हैं कि भीकाजी उनसे बहुत प्रभावित हुईं और तबीयत ठीक होने के बाद भारत जाने का ख़्याल छोड़ वहीं पर अन्य क्रांतिकारियों के साथ भारत की आज़ादी के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन बनाने के काम में जुट गईं।

1907 में फ‍हराया था तिरंगा

1907 में फ‍हराया था तिरंगा

'ऐ दुनियावालों देखो, यही है भारत का झंडा। यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो। इस झंडे को भारत के लोगों ने अपने खून से सींचा है। सके सम्मान की रक्षा में जान दी है। मैं इस झंडे को हाथ में लेकर आजादी से प्यार करने वाले दुनियाभर के लोगों से अपील करती हूं कि वो भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन करें।

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विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय झंडा फहराने के बाद भीकाजी कामा ने यही भाषण द‍िया था। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनके ओजस्वी भाषण का वहां मौजूद लोगों ने स्वागत किया था।

क्‍यों फहराया था राष्‍ट्रध्‍वज ?

भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में ये झंडा फहराया था। ये आज के झंडे से बिल्कुल अलग था। बताया जाता है कि इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस में हिस्सा लेने वाले सभी देशों का झंडा लगा हुआ था। भारत के लिए ब्रिटिश झंडा लगा था। मैडम भीकाजी कामा को ये मंजूर नहीं था। उन्होंने एक नया झंडा बनाया और सभा में फहराया। वो पहला मौका था, जब विदेशी जमीं पर पहली बार कोई भारतीय झंडा लहराया गया था।

खुद ने डिजाइन क‍िया था तिरंगा राष्‍ट्रध्‍वज

खुद ने डिजाइन क‍िया था तिरंगा राष्‍ट्रध्‍वज

वर्ष 1907 में अपने सहयोगी सरदारसिंह राणा की

मदद से उन्होंने भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज स्वयं डिजाइन किया था। भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर 'वंदे मातरम्' लिखा था। इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां उकेरी गई थीं। उस झंडे में हरी पट्टी पर बने आठ कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों के प्रतीक होते थे। सम्मेलन में झंडारोहण के बाद ही मैडम कामा ने जेनिवा से 'बंदे मातरम्' नाम का क्रांतिकारी जर्नल छापना शुरू किया। इसके मास्टरहेड पर नाम के साथ उसी झंडे की छवि छापी जाती रही। बाद में उनके द्वारा डिजाइन झंडे से काफी मिलता-जुलता ही भारत का मौजूदा ध्वज डिजाइन हुआ था। राणाजी और कामाजी द्वारा निर्मित यह भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा ( राजेन्द्रसिंह राणा ) के घर सुरक्षित है।

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'भारतीय क्रांति की माता' कहा करते थे सहयोगी

'भारतीय क्रांति की माता' कहा करते थे सहयोगी

भीकाजी अपने क्रांतिकारी विचार खुद के समाचारपत्रों ‘वंदेमातरम्' और ‘तलवार' में व्यक्त करती थीं। भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर 'वंदे मातरम्' लिखा था। इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां उकेरी गई थीं। उस झंडे में हरी पट्टी पर बने आठ कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों के प्रतीक होते थे। सम्मेलन में झंडारोहण के बाद ही मैडम कामा ने जेनिवा से 'बंदे मातरम्' नाम का क्रांतिकारी जर्नल छापना शुरू किया। इसके मास्टहेड पर नाम के साथ उसी झंडे की छवि छापी जाती रही। उनके सहयोगी उन्हें ‘भारतीय क्रांति की माता' कहते थे; जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिश विरोधी तथा असंगत कहते थे।

English summary

The Untold Story of the Indomitable Madam Bhikaji Cama

This is the fascinating story of this indomitable lady who played an important role in the early years of India’s freedom struggle.
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