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योगः कमर, पीठ के लिए रीढ़ संचालन
रीढ़ में लचक कम होने से तंत्रिकाएँ अपना काम क्षमता के अनुसार नहीं कर पाती हैं. इससे हमें कमर और पीठ दर्द की शिकायत रहने लगती है. रीढ़ संचालन के दो आसनों से आप न केवल कमर दर्द और थकान दूर कर सकते हैं बल्कि इससे पेट के सभी अंगों की कार्यक्षमता भी बढ़ती है.
रीढ़ संचालन-एक
ज़मीन पर मोटा कंबल बिछा लें, जिससे रीढ़ को पूरी सुरक्षा मिले. कंबल पर पीठ के बल लेट जाएँ. दोनों पैरों को मिलाकर रखें. दोनों हाथों को कंधों की सीध में 180 अंश पर लेकर आएँ और हथेलियों का रुख ज़मीन की ओर रखें. इसके अभ्यास से पेट के सभी अंगों में खिंचाव आता है और उनकी मालिश हो जाती है.
दाएँ पैर को घुटनों से मोड़ें और तलवे को बाएँ पैर के घुटने के ऊपर या घुटने के दाँयी ओर सटाकर रखें. हाथ सीधा रखें. यह इस आसन की प्रारंभिक अवस्था है.
अब गहरी साँस भरें और उसे छोड़ते हुए दाएँ घुटने को बाँयीं ओर ज़मीन से लगाने का प्रयास करें. बाँयी हथेली से थोड़ा दबाव देकर रखें और गर्दन को दाँयी ओर घुमाएँ. इस दौरान कोशिश यह करें कि कंधे ज़मीन से न उठें.
इस तरह गर्दन और पैर को विपरीत दिशा में घुमाने से आपके पीठ, कमर और रीढ़ में तिरछा खिंचाव आएगा. इसके बाद साँस भरते हुए दाँए पैर और गर्दन को सीधा कर लें. साँस छोड़ते हुए हाथ और पैर को सीधा कर लें यानी कि उन्हें पहली वाली अवस्था में ले आएँ.
इसी प्रकार बाएँ पैर और दाएँ हाथ की मदद से यह क्रिया दूसरी ओर से भी दोहराएँ.
दोनों तरफ़ से चार या पाँच बार इस आसन को करना चाहिए. इसके बाद कुछ देर तक विश्राम करें और शरीर को ढीला छोड़ दें. आँखे बंद रखें और साँस सामान्य कर लें.
एहतियात
रीढ़ संचालन की इस क्रिया से अगर कमर में असहनीय दर्द हो तो अभ्यास करना तत्काल रोक दें. इसके लिए किसी योग प्रशिक्षक से सलाह ले सकते हैं. इसके नियमित अभ्यास से कब्ज़ दूर होती है और भूख भी खुलकर लगती है.
ज़्यादा देर बैठने, खड़े रहने या अधिक थकावट के बाद अगर आप कमर के निचले भाग पर दबाव महसूस करें तो रीढ़ संचालन की यह क्रिया आपको राहत देगी. जिससे आप फिर से तरो-ताज़ा हो जाएँगे.
विपरीत दिशा में घुमाव देने से पेट की माँसपेशियों में ऐसा खिंचाव आता है, जैसे हम कपड़ा निचोड़ते हैं. इससे पेट के सभी अंगों में भी खिंचाव आता है और उनकी मालिश हो जाती है. इसका अभ्यास करने से कमर दर्द से राहत मिलती है. कब्ज़ दूर होती है और गैस की समस्या से छुटकारा मिलता है. पाचन क्रिया भी ठीक होती है.
रीढ़ संचालन-दो
रीढ़ संचालन की यह दूसरी क्रिया है. इसमें दोनों पैरों को घुटनों से मुड़ते हैं. एड़ियों को नितंब के क़रीब रखते हैं, इस दौरान दोनों हाथ कंधों के सीध में ही होने चाहिए. हाथों का सहारा नहीं लेंगे.
गहरी सांस भरें और सांस छोड़ते हुए दोनों पैरों के घुटनों को एक साथ बाँयी ओर ज़मीन से लगाने का प्रयास करें और गर्दन की विपरीत दिशा में यानी कि दाँयी ओर घुमाएँ.
इसके बाद बिना रुके साँस भरते हुए गर्दन और पैरों को वापस लेकर आएँ और साँस छोड़ते हुए विपरीत दिशा में यानी दोनों पैरों के घुटनों को दाँयी ओर तथा गर्दन को बाँयी ओर घुमाएँ. जो लोग मधुमेह (शूगर) से पीड़ित हैं. उनके लिए यह क्रिया काफ़ी लाभदायक है.
इस तरह लगातार साँस लेने और छोड़ने की गति के साथ घुटनों को और गर्दन को एक दूसरे के विपरीत दिशा में घुमाना है. कोशिश करें कि कंधे ज़मीन से न उठें और हथेलियों को ज़मीन से सटाकर रखें. कम से कम 8 से दस बार इस क्रिया को दोनों ओर से दोहराइए.
इससे पेट की माँसपेशियों में बहुत घुमावदार खिंचाव आता है. पेट के सभी अंगों की क्रियाशीलता नियमित हो जाती है. पेट के अंगों और शरीर के अन्य अंगों में जमा दूषित पदार्थ रक्त के माध्यम से घुलकर बाहर निकल जाते हैं.
रीढ़ संचालन की इस क्रिया से आँतों की क्रमाकुंचन गति बढ़ जाती है. इससे कब्ज़ दूर होता है और भूख खुलकर लगती है. पैंक्रियाज शरीर के मध्य भाग में स्थित है. इस घुमावदार आसन से सबसे ज़्यादा खिंचाव पेट के बीच के हिस्से पर पड़ता है.
इसलिए जो लोग मधुमेह (शूगर) से पीड़ित हैं, उनके लिए यह क्रिया लाभदायक है. इस आसन से अग्नाशय ठीक ढंग से काम करता है और पहले से ज़्यादा नियमित हो जाता है.
[योग प्रशिक्षक सिद्धार्थ प्रसाद का विशेष कार्यक्रम आप हर शनिवार और रविवार सुन सकते हैं सुबह साढ़े छह बजे बीबीसी हिंदी सेवा के 'आज के दिन' कार्यक्रम में. यह कार्यक्रम और यह लेख आपको कैसा लगा. आप अपनी राय हमें [email protected] पर भेज सकते हैं]