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डॉक्टर ने की बड़ी लापरवाही, जिंदा नवजात को मृत बता परिजनों को सौंपा
डॉक्टरों ने उसको सील करने और उसे पॉलीथीन में पैक करने में तेजी दिखाई और उसे जल्द परिजनों को सौंप दिया।
देश की राजधानी दिल्ली के मशहूर सफदरजंग अस्पताल में उस समय बड़ी लापरवाही सामने आई, जब एक बच्चे को डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया।
डॉक्टरों ने उसको सील करने और उसे पॉलीथीन में पैक करने में तेजी दिखाई और उसे जल्द परिजनों को सौंप दिया। लेकिन जब परिजन बच्चे को घर लेकर पहुंचे तो सील पैक पॉलीथीन में हलचल हुई, तो परिजनों ने देखा तो बच्चा जिंदा था।
जानकारी के मुताबिक सफदरजंग के जच्चा बच्चा वार्ड में सुबह एक महिला को ऑपरेशन से एक बच्चा हुआ। करीब बीस मिनट बाद वहां मौजूद डाक्टरों ने बच्चे को मृत बताया, जिससे परिजन दूखी हो गए।
डॉॅक्टरों
ने
परिजनों
की
हालत
को
देखते
हुए
तत्काल
बच्चे
को
कपड़े
में
लपेट
कर
एक
पॉलोथीन
में
सील
कर
दिया
और
उस
पर
डैड
का
लेबल
लगाकर
परिजनों
को
यह
कहकर
सौप
दिया
कि
बच्चे
की
मौत
हो
चुकी
है।
लेकिन जब परिजन बच्चे को लेकर अपने घर पहुंचे तो देखा कि सील पैक पॉलिथीन में हलचल हो रही है,पॉलोथीन खोली तो पिता और अन्य परिजनों की आँखे फटी की फटी रह गई,जिस बच्चे को डॉक्टरों ने मृत कह कर उनको सौंपा था वो बच्चा इसी पॉलोथिन में जिंदा था।
परिजनों ने तुरंत पुलिस को इत्तला कर अपोलो अस्पताल गए जिसके बाद वापस वहां पर बच्चे फर्स्ट एड देकर उसे सफदरजंग असपताल भेजा गया। अब मासूम बच्चे का इलाज चल रहा है,लेकिन उसकी हालत स्थिर है।
सफदरजंग अस्पताल की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट गायनी विभाग, डॉ. प्रतिमा मित्तल ने कहा कि उस समय ड्यूटी पर तैनात स्टाफ की ओर से लापरवाही की गई है। अमूमन पांच सौ ग्राम से कम वजन के भ्रूण में जीवित रहने की सम्भावना नहीं के बराबर होती है। हालांकि 12 सप्ताह के बाद भ्रूण में सभी अंगों का विकास हो जाता है।
इसके बाद भी वे अंग इतने विकसित नहीं होते कि बिना मां के जीवित रह सकें। इसलिए गर्भ से बाहर निकलने के कम से कम आधे घंटे तक निगरानी में रख कर यह कन्फर्म कर लिया जाता है कि भ्रूण जीवित है या मृत। तसल्ली करने के बाद ही बच्चे को परिजनों को सौंपा जाता है। मामले में ड्यूटी पर मौजूद स्टाफ ने जल्दबाजी कर दी। इसमें गलती किससे हुई है इसकी जांच की जाएगी।