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रात में बार-बार टूटती है नींद, तो हो सकती है बड़ी बीमारी
विशेषज्ञों का मानना है कि शहर की आधी आबादी कटस्ट्रोफिसिंग या नाईट ड्रेड से पीड़ित हैं, जिससे आधी रात में वह नींद में चौंक कर बैठ जाता है। तनाव भरी जिंदगी, ऑफिस का ज्यादा काम, रिश्ते में उतार-चढ़ाव या फिर व्यस्त जिंदगी,आपको रात में चैन की नींद सोने नहीं देती।
इस
समस्या
को
इंसोमेनिया
के
साथ
ना
जोड़ें
तो
ही
अच्छा
है।
किसी
भी
चिंता
की
वजह
से
रात
को
नींद
का
टूट
जाना,
बेचैनी
महसूस
होना,
मन
उदास
होना,
तनाव
और
पसीने
का
आना
आदि
आम
लक्षण
हैं।
कारण
एक
व्यक्ति
90-120
मिनट
के
बीच
में
सोता
है
और
इनमें
से
अधिकांश
लोग
इस
के
बीच
में
करवट
बदलने
के
लिए
उठते
हैं
और
फिर
सो
जाते
हैं।
इसके
विपरीत
कुछ
लोग
चिंता
और
डर
की
वजह
से
उठ
जाते
हैं
और
फिर
दोबारा
सो
नहीं
पाते
हैं।
यह
किसी
को
भी
हो
सकता
है।
इसके कई कारण हैं जैसे देर रात तक जागना, खाने की गलत आदतें, लम्बे समय तक चिंता करना और मेनपाज़ होना। यह सब दिन प्रति दिन शहरों में बढ़ता जा रहा है यही नहीं स्कूल के बच्चे भी इससे छूटे नहीं है।
अनजान डर
ऐसे समय में लोगों के डर अस्पष्ट होते हैं जैसे अगले दिन दिए जाने वाली प्रेज़न्टैशन का डर और मामूली काम को ना कर पाना। यह सब ज्यादा तर रात में बढ़ जाता है खास कर वो लोग जो जल्दी हाइपर हो जाते हैं। यह ज्यादातर उनके खुद की नकारात्मक सोच की वजह से होता है। यहां तक कि बच्चों में भी इस तरह ऐंगज़ाइइटी डिसॉर्डर देखने को मिल रहा है।
यह उनके साथ ज्यादातर होता है जो लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे में वे लोग अपनी भावनाओं को कहीं लिखा करें या किसी से बोल कर शेयर किया करें।
यह
बहुत
जरुरी
है
कि
समय
रहते
इसे
ठीक
किया
जाए
क्योंकि
समय
के
साथ
यह
बिमारी
और
बिगड़
जाती
है।
इसे
काबू
में
करने
के
लिए
रात
में
सोते
समय
आप
कोई
अच्छी
किताब
पढ़
सकते
हैं
या
मेडिटेशन
कर
सकते
हैं।
साथ
ही
लड़ाई
और
झगड़े
वाली
मूवीज
और
गेम्स
से
दूर
रहना
चाहिए।
इस तरह के पैनिक अटैक्स से बचने के तरीके
- इन अटैक्स के आने के समय इसके खिलाफ़ ना जाएँ बल्कि इसके हिसाब से काम करें।
- रात में कोई भी काम कर सकते हैं जैसे गहरी सांस लेना
- अपने तकिए पर लैवेंडर के तेल की कुछ बूँदें लगाये
- रात में कैमोमाइल चाय पीयें
- सॉफ्ट म्यूजिक सुने जिससे आपका दिमाग शांत रहे और ब्लड प्रेशर नार्मल रहे
- व्यायाम करें जिससे नींद आजाये
नींद ख़राब होने से बुरे प्रभाव
- चिड़चिड़ापन
- एसिड रीफ्लक्स
- काम ठीक से ना कर पाना
- मोटापा और दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाना
- टाइप 2 मधुमेह होना