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कोविड-19 : भारत को मिलेगी दुनिया की पहली DNA वैक्सीन जायकोव-डी, जानें इससे जुड़ी खास बातें
कोरोना वायरस से बचाव के लिए दुनिया का पहला डीएनए आधरित वैक्सीन जायकोव-डी लगभग तैयार हो चुका है और इसका क्लीनिकल ट्रायल भी शुरु हो चुका है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने मंगलवार को राज्यसभा में इस वैक्सीन की खासियत बताते हुए बताया कि जायडस कैडिला कंपनी की कोविड-19 वैक्सीन जायकोव-डी के तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण जारी है। यह एक प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन है। आइए जानते है इस वैक्सीन से जुड़ी कुछ खास बातें।
कैसे काम करती है ये वैक्सीन
वायरस के आनुवंशिक कोड से तैयार
इस डीएनए वैक्सीन के जरिए इंसानी शरीर में वायरस के उस हिस्से के आनुवंशिक कोड (डीएनए या आरएनए) को भेजा जाता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करती है। तब इंसानी शरीर की मशीनरी उस आनुवांशिक कोड को डिकोड करके वायरस को पहचानकर उससे लड़ने के लिए एंटीजन पैदा करती है।
तीन डोज लगेगी
जानकारी के मुताबिक डीएनए-प्लाज्मिड आधारित इस वैक्सीन की तीन खुराकें दी जाएंगी। वैक्सीन के डोज 4-4 सप्ताह के अंतराल में लगेंगे। ट्रायल के दौरान देखा गया कि तीसरे डोज के बाद यह कोविड बीमारी के मध्यम स्तर के संक्रमण से 100 फीसदी रक्षा करती है। ये वैक्सीन वयस्कों के साथ 12 से 18 साल के उम्र समूह के किशोरों पर भी इसका परीक्षण किया गया है।
ठंडे तापमान में भी रखने की जरूरत नहीं
इसकी खास बात यह है कि इस वैक्सीन को दो से चार डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा जा सकता है। जैसे फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को ठंडे तापमान में रखने की जरूरत होती है। इस वजह से उनके ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज में तमाम तरह की चुनौतियां होती हैं। जबकि इसके विपरित जायकोव-डी को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा जा सकता है। इसका मतलब ये है कि इसे ट्रांसपोर्ट और स्टोर करने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी।
सुई के बिना लगेगी ये वैक्सीन
यह वैक्सीन बिना सुई के लगेगी। इसे लगाने के लिए बिना सुई वाला फार्मा जेट उपयोग होगा। वैक्सीन भरकर इस फार्मा जेट मशीन को बांह पर लगाएंगे और फिर मशीन का बटन दबाते ही वैक्सीन शरीर में पहुंच जाएगी।