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कोरोना वायरस : जानिए डेक्सामेथासोन के बारे में, जो संक्रमितों के लिए नहीं है संजीवनी बूटी से कम
कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच इसकी दवा और वैक्सीन को लेकर रिसर्च जारी है। वहीं पहले से ही उपलब्ध दवाओं के जरिए कोरोना के मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इसी कड़ी में एक स्टेरॉयड दवा की दुनियाभर में चर्चा हो रही है। यह दवा है- डेक्सामेथासोन, जो कोरोना मरीजों के लिए पहली लाइफ सेविंग ड्रग यानी जीवनरक्षक दवा बन के उभरी है। यह कोरोना के गंभीर संक्रमण वाले मामलों में मौत का खतरा एक तिहाई तक कम कर देती है। यानी मौत के करीब पहुंचे हर तीन मरीजों में से एक की जिंदगी बचाती है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी ताजा रिसर्च में इस बात की पुष्टि की है कि डेक्सामेथासोन नाजुक हालत में पहुंचे कोरोना के मरीजों में मौत का खतरा 35 फीसदी तक कम करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस दवा की सराहना की है। भारत में भी कोरोना मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह दवा सस्ती भी है और आसानी से उपलब्ध भी है। आइए जानते हैं कि यह कैसे काम करती है, इसकी डोज क्या है, इसकी कीमत क्या है और भारत में इसकी उपलब्धता क्या है?
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मुख्य अनुसंधानकर्ता के मुताबिक, रिसर्च के दौरान अब तक सामने आया है कि डेक्सामेथासोन मौत के आंकड़े को एक तिहाई तक कम करती है। यही एकमात्र ऐसी ड्रग है, जो कोरोना मरीजों में मौत का खतरा घटाती है। यह दवा बेहद सस्ती है और वैश्विक स्तर पर आसानी से उपलब्ध है। इसलिए लोगों की जान बचाने में यह बहुत कारगर साबित हो सकती है।
इस शोध के दौरान कोरोना के ऐसे 2104 ऐसे गंभीर मरीजों को यह दवा दी गई जिन्हें या तो सांस लेने के लिए मशीन की जरूरत थी या फिर ऑक्सीजन की। जिन मरीजों को ब्रीदिंग मशीन की जरूरत थी, उन मरीजों में मौत का खतरा घटा 35 फीसदी तक कम हुआ, जबकि ऑक्सीजन ले रहे मरीजों में मौत का खतरा 20 फीसदी तक कम हुआ।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस दवा से होने वाले इलाज का खर्च प्रतिदिन 50 रुपये से भी कम आता है। अगर 10 दिन तक इलाज चले तो 500 रुपये से कम खर्च आएगा। हालांकि इस दवा का असर कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में नहीं दिखा है, लेकिन जिन गंभीर मरीजों में लक्षण 15 दिन के बाद कम होते थे, डेक्सामेथासोन के कारण 11वें दिन से ही कम दिखने लगे।
कैसी दवा है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह एक स्टेरॉयड है, जिसका इस्तेमाल 1960 से किया जा रहा है। सूजन से होने वाली दिक्कत जैसे अस्थमा, एलर्जी और कुछ खास तरह के कैंसर में यह दवा दी जाती है। डब्ल्यूएचओ ने साल 1977 में इसे जरूरी दवाओं की सूची में शामिल किया।
ऑक्सफोर्ड की रिसर्च के मुताबिक, कोविड-19 के मरीजों में भी साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति बनती है। यह ऐसी स्थिति होती है, जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम अति सक्रिय होकर हमारे शरीर के ही खिलाफ काम करने लगता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने लगता है। यह दवा इसी साइटोकाइन स्टॉर्म की स्थिति को कंट्रोल करती है और फेफड़ों की कोशिकाओं को डैमेज करने वाली इम्यूनि कोशिकाओं को रोकती है।
इन लोगों को दी जा रही है ये दवा
यह दवा डैमेज कोशिकाओं से बन रहे शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को कम करते हुए फेफड़ों की सूजन कम करती है। फिलहाल देश में कोरोना की स्थिति में फेफड़ों में गंभीर संक्रमण वाले मरीजों को इसकी लो डोज दी जा रही है और साथ में ही एंटीबायोटिक्स और एंटी-वायरल वगैरह भी दी जा रही है।
कैसे हो रहा है इस्तेमाल
डेक्सामेथासोन दुनियाभर में दवा और इंजेक्शन दोनों ही रूप में उपलबध है। इसके एक इंजेक्शन की कीमत महज पांच से छह रुपये है। यह बहुत ही सस्ती दवा है और दशकों से इसका इस्तेमाल विभिन्न रोगों में होता आ रहा है। मालूम हो कि महाराष्ट्र में कोविड-19 के मरीजों पर पहले से ही इस ड्रग का इस्तेमाल किया जा रहा है। देशभर के मरीजों के लिए भी आवश्यकता और स्थिति के अनुसार, इसकी डोज शुरू की गई है।