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सेना में काम करने वाली महिलाओं को तनाव की समस्या क्यों होती है?
एक अध्ययन के अनुसार सशस्त्र बल में सेवा करने वाली महिलायें तथा ऐसी महिलायें जिनकी नियुक्ति बहुत अधिक लड़ाई वाले क्षेत्र में की जाती है, उन्हें पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) होने का खतरा अधिक होता है।
परिणामों से पता चलता है कि सक्रिय ड्यूटी और नेशनल गार्ड/रिज़र्व महिलायें जिनके ऊपर युद्ध का दबाव बना रहता है उन्हें पीटीएसडी होने की संभावना उन महिलाओं की तुलना में जिन्हें युद्ध का दबाव नहीं सहना पड़ता, से 20 गुना अधिक होती है।
महिलाओं को होने वाले भिन्न प्रकार के कैंसर
इसके
अलावा
वे
महिलायें
जिन्हें
युद्ध
की
स्थिति
का
सामना
करना
पड़ता
है
उनमें
स्वास्थ्य
संबंधी
अन्य
समस्याएं
जैसे
अवसाद
या
शराब
की
अधिक
मात्रा
का
सेवन
भी
पाई
जाती
हैं।
शोधकर्ताओं
के
अनुसार
किसी
भी
एक
घटना
को
अनदेखा
नहीं
किया
जा
सकता।
यूएसए के मैसाचुसेट्स में स्थित ब्रांडेस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक तथा प्रमुख लेखक राचेल सायको एडम्स के अनुसार “हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि महिलाओं की तैनाती के दौरान उन पर हुए हमले, चोट और युद्ध आदि अनुभवों का उनके बाद की तैनाती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है”।
इस अध्ययन में 42,397 महिलाओं को शामिल किया गया जो अफगानिस्तान या इराक से लौटी थी तथा उनके स्वयं के द्वारा बताए गए अनुभवों के आधार पर उन्हें 0,1,2 या 3+ स्कोर दिए गए। ट्रॉमेटिक स्ट्रेस पत्रिका में एडम्स ने बताया कि “व्यवहार संबंधी समस्याओं के लिए चल रही विस्तृत जांच के साथ ही सेना के मनोवैज्ञानिक सुधार के लिए भी कार्यक्रम बनाये जाने चाहिए”।
आईएएनएस से प्राप्त जानकारी के अनुसार