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ऋषि भृगु ने सोते हुए विष्णु जी के सीने पर मारी थी लात
ऋषि भृगु कालांतर के एक बहुत ही महान ऋषि थे जिन्होंने ज्योतिष ग्रंथ भृगु संहिता की रचना की थी।
आज अपने इस लेख में हम ऋषि भृगु के जीवन से जुड़ी एक रोचक घटना के विषय में बताएंगे जिसे सुनकर आप आश्चर्यचिकित रह जाएंगे। जी हाँ, यह घटना भृगु और श्री हरि विष्णु से संबंधित है जिसमें ऋषि भृगु ने अपने पैरों से विष्णु जी के सीने पर प्रहार कर दिया था। आइए जानते हैं इसके पीछे की पूरी कहानी के बारे में।
जब ऋषि मुनियों में छिड़ा विवाद
पद्मपुराण की एक कथा के अनुसार मन्दराचल पर्वत पर सभी ऋषि मुनि मिलकर यज्ञ कर रहे थे। तभी उनमें इस बात को लेकर विवाद हो गया कि आखिर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सर्वश्रेष्ठ कौन है। अंत में सभी ऋषियों ने मिलकर यह तय किया कि जो भी देवता सतोगुणी होंगे वही सबसे श्रेष्ठ होंगे और इस कार्य के लिए सबने मिलकर ऋषि भृगु को चुना।
त्रिदेव की परीक्षा लेने पहुंचे ऋषि भृगु
सभी ऋषि मुनियों की बात मानकर ऋषि भृगु ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। सबसे पहले वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। अपने पिता जी के पास पहुंचकर ऋषि भृगु क्रोध से कहने लगे कि ब्रह्मा जी ने उनका अपमान किया है। बेवजह अपने पुत्र को क्रोधित देखकर ब्रह्मा जी को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा कि तुम चाहे कितने बड़े ज्ञानी हो जाओ लेकिन अपने से बड़ों का आदर करना नहीं भूलना चाहिए। इस पर ऋषि भृगु ने फौरन ब्रह्मा जी क्षमा मांगी और कहा वे सिर्फ इतना देखना चाहते थे कि उन्हें क्रोध आता है या नहीं।
इसके बाद वे भगवान शिव की परीक्षा लेने कैलाश पहुंचे। वहां पहुंचकर पता चला कि महादेव अपने ध्यान में लीन हैं इसलिए उन्होंने नंदी से कहा कि वह जाकर शिव जी को उनके आने की सूचना दे किन्तु नंदी ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब ऋषि भृगु स्वयं ही भोलेनाथ के पास पहुंच गए और उनका आवाहन किया।
शिव जी का ध्यान भंग हो गया और वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने भृगु से कहा कि उनका ध्यान भंग करने की सज़ा उन्हें मृत्यु के रूप में मिलेगी। इतने में वहां पार्वती जी आ गयी और शिव जी को सारी बात बताई। तब जाकर शिव जी का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने भृगु से कहा कि क्रोध तो उनका स्थायी भाव है। शंकर जी ने भृगु को क्षमा कर दिया और वे कैलाश से चले गए।
ऋषि भृगु ने विष्णु जी को सीने पर लात मारी
ब्रह्मा जी और शिव जी की परीक्षा लेने के बाद ऋषि भृगु सीधे बैकुंठ विष्णु जी के पास पहुंचे। ऋषि भृगु को आता देख विष्णु जी ने सोने का नाटक शुरू कर दिया। तब ऋषि भृगु ने आव देखा न ताव और बिना कुछ कहे सुने उन्होंने विष्णु जी की छाती पर अपने दाहिने पैर से वार कर दिया। ऋषि भृगु तो बनावटी क्रोध से भरे थे जैसे ही उन्होंने विष्णु जी पर वार किया वे फ़ौरन उठकर खड़े हो गए और भृगु से पूछने लगे कि कहीं उन्हें चोट तो नहीं लगी क्योंकि विष्णु जी का सीना कठोर है और भृगु के पैर बहुत ही कोमल।
विष्णु जी का यह रूप देख कर ऋषि भृगु आश्चर्यचकित रह गए। विष्णु जी ने भृगु को अपने सीने से लगा लिया। तब जाकर भृगु को अपने किये पर शर्मिंदगी महसूस होने लगी और उन्होंने भगवान से अपने किये की क्षमा मांगी और उन्हें सारी बात बताई। ऋषि भृगु ने कहा कि भगवान की इस क्षमाशीलता की यह कहानी हमेशा अमर रहेगी और उन्हें सबसे सतगुणी देवता घोषित कर दिया।