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शिवजी को प्रसन्न करने के लिए करें प्रदोष व्रत, होंगी सभी बाधाएं दूर

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हिंदू धर्म में हर पूजा और व्रत का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है इन्हीं में से एक है प्रदोष व्रत जिसे बड़ा ही शुभ और लाभकारी व्रत माना गया है। यह व्रत चंद्र मास के 13वें दिन यानी त्रयोदशी को होता है। प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार आता है- एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आपको बता दें इस बार प्रदोष व्रत 13 मई, रविवार को है इसलिए हम आपको रविवार की कथा और व्रत विधि के बारे में बताएंगे, साथ ही हम आपको इस चमत्कारी व्रत की महिमा, इससे मिलने वाला फल और अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी देंगे।

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रवि प्रदोष व्रत विधि

इस दिन उपासक को प्रातः काल उठकर स्नान कर लेना चाहिए फिर व्रत का संकल्प लेकर पूरे दिन मन ही मन ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। पूरे दिन भोजन न करें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व शिव जी की पूजा करनी चाहिए।

रवि प्रदोष व्रत की पूजा का समय शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे तक होता है।

रवि प्रदोष पूजा विधि

रवि प्रदोष के दिन भक्त को शाम के समय दोबारा स्नान करना चाहिए और साफ़ सुथरे कपडे पहनने चाहिए। अपने पूजा स्थल की शुद्धि के लिए गंगा जल छिड़क लेना चाहिए। इसके पश्चात उस स्थान पर पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार कर लें। कलश अथवा लोटे में जल भरकर ॐ नमः शिवाय का जाप करते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। रोली और चन्दन का टीका लगाएं, धुप और दीपक जलाएं फिर दोनों हाथ जोड़कर भगवान का ध्यान करें। इसके पश्चात व्रत कथा पढ़ें या सुने फिर हवन करें। हवन के बाद शिव जी की आरती करें। सभी को प्रसाद वितरित करने के पश्चात खुद भोजन ग्रहण करें। ध्यान रहे भोजन में केवल मीठी समाग्री का ही उपयोग करें। आप यह पूजा शिव मंदिर में भी जाकर कर सकते हैं।

रवि प्रदोष व्रत कथा

रवि प्रदोष व्रत की कथा इस प्रकार है- एक गाँव में बहुत ही निर्धन ब्राह्मण परिवार रहता था। उस ब्राह्मण की पत्नी शिव जी की परम् भक्त थी और वह पूरे विधि विधान से प्रदोष व्रत करती थी। उस ब्राह्मण दंपति का एक पुत्र भी था। एक दिन वह बालक नदी में स्नान करने गया। रास्ते में उसे कुछ चोर मिल गए और उसे डरा धमका कर उसके पिता के गुप्त धन के बारे में पूछने लगे। तब उस बालक ने उन्हें बताया कि वह एक गरीब ब्राह्मण का पुत्र है और उसके पिता के पास कोई धन नहीं है। चोरों को उसकी हालत पर तरस आ गया और उन्होंने उसे छोड़ दिया।

चोरों के जाने के बाद बालक भी अपने रास्ते पर चल पड़ा। चलते चलते वह थक गया और एक वृक्ष के नीचे सो गया। तभी वहां के राजा के सिपाही चोरों को ढूंढने के लिए उस ओर आए। उन्होंने उस बालक को चोर समझ कर पकड़ लिया और राजा के सामने ले गए। बालक ने सभी को लाख समझाने का प्रयास किया लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी। जब उसकी माता को यह सूचना मिली तो वह बहुत दुखी हो गई। अगले दिन प्रदोष था उस बालक की माता ने सच्चे मन से शिव जी की उपासना की और व्रत रखा उसने भगवान से अपने पुत्र की कुशलता के लिए प्रार्थना की।

उसी रात राजा के सपने में स्वयं शिव जी आए और उन्होंने उसे बताया की वह बालक जिसे उसने कारागार में डाल दिया है वह निर्दोष है। अगर उसने उसे नहीं छोड़ा तो उसका राजपाट सब चला जाएगा और उसका विनाश हो जाएगा। अगले दिन सुबह उठते ही राजा ने उस बालक को आज़ाद कर दिया और उसके माता पिता को बुलाकर उन्हें पांच गाँव दान में दे दिए। इस तरह शिव जी की कृपा से उस गरीब ब्राह्मण परिवार के समस्त दुखों का अंत हो गया और वे ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

प्रदोष व्रत से होती है उत्तम लोक की प्राप्ति

पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि प्रदोष व्रत एक ऐसा चमत्कारी व्रत है जो मनुष्य को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है। इस व्रत को रखने से दो गायों का दान देने के समान पुण्य प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि जब धरती पर चारों ओर पाप, अधर्म और अत्याचार बढ़ जाएगा, जब व्यक्ति के भीतर क्रोध, ईर्ष्या और द्वेष जैसी नकारात्मक भावनाएं बढ़ जाएंगी तब प्रदोष व्रत करने से उन्हें भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त होगा और उसके समस्त पाप धुल जाएंगे। साथ ही ईश्वर की कृपा से उसे उत्तम लोक की भी प्राप्ति होगी।

दिन के अनुसार पड़ने वाले प्रदोष व्रत
हर वार के अनुसार प्रदोष व्रत के नाम इस प्रकार है।

1. सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चंद्र प्रदोषम कहते हैं।

2. मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष कहते हैं।

3. बुधवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष या सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं।

4. बृहस्पतिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोषम कहते हैं।

5. शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोषम कहते हैं।

6. शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहते हैं।

7. रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भानु प्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं।

प्रदोष व्रत से मिलता है यह लाभ

अलग अलग दिन के अनुसार इस व्रत के लाभ भी अलग होते हैं।

1. रविवार का प्रदोष व्रत व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु प्रदान करता है।

2. सोमवार का प्रदोष व्रत मनुष्य की मनोकामना की पूर्ति करता है साथ ही उसे निरोगी भी रखता है।

3. मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन व्रत करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। साथ ही अगर आप किसी बीमारी से परेशान हैं तो उससे भी छुटकारा मिल जाता है।

4. बुधवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से मनुष्य की इच्छा पूर्ति होती है।

5. गुरूवार का प्रदोष व्रत करने से उपासक के शत्रुओं का नाश होता है और उसके जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं।

6. शुक्रवार का प्रदोष व्रत सुहागनों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सदैव के लिए खुशहाल और सुखमय हो जाता है।

7. शनिवार का प्रदोष व्रत संतान प्राप्ति के लिए इच्छुक भक्तों के लिए बड़ा ही फलदायक है। अगर आप संतान प्राप्ति की कामना कर रहे हैं तो यह व्रत ज़रूर करें। भोलेनाथ के आशीर्वाद से आपकी इच्छा ज़रूर पूरी होगी।

English summary

Pradosh Vrat 13 May 2018

Pradosh Vrat is a sacred Hindu fast. Pradosh means twice monthly fast dates. Pradosh Vrat is determined per Hindu lunar calendar.
Story first published: Friday, May 11, 2018, 11:09 [IST]
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