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क्या समुद्र मंथन के दौरान दैत्यों के साथ अन्याय हुआ था?

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क्या आप जानते हैं कि कामधेनु गाय क्या है? धन्वन्तरि वैद्य का जन्म कैसे हुआ? शिव का नाम नीलकंठ कैसे पड़ा? ऐरावत हाथी कहां से आया? इन सबका संबंध बहुचर्चित समुद्र मंथन से है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन बहुत महत्वपूर्ण घटना थी। इसने देवताओं को अमर कर दिया और साथ ही साथ इतनी सारी नई नई चीजे निकली जो उसके पहले तक अज्ञात थीं।

Samudra Manthan 14 Ratnas List

दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवतागण सामान्य मनुष्यों की भांति हो गए थे अर्थात श्री हीन और शक्ति हीन हो गए थे। दूसरी तरफ दैत्यों का राजा बलि बहुत ताकतवर होता जा रहा था। सभी देवता विष्णु के पास गए। विष्णु ने सलाह दी कि असुरों के साथ संधि करके क्षीर सागर का मंथन करें जिससे उन्हें अमृत मिलेगा जिसे पीकर देवतागण अमर हो जाएंगे। देवताओं और दैत्यों के बीच संधि हो गयी की मंथन के दौरान जो रत्न निकलेंगे उसे आपस में बांट लिया जाएगा।

विष्णु ने स्वयं कच्छप अवतार लिया जिनके पीठ पर मंदार पर्वत रख कर वासुकि सांप को इसपर लपेट कर देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया। इस समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले। आइये जानते हैं किसको कौन सा रत्न मिला।

हलाहल विष

हलाहल विष

समुद्र मंथन में सबसे पहले काफी शक्तिशाली विष निकला। ये विष इतना ज्वलनशील था की देवता और दानव दोनों जलने लगें। सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शंकर ने इसे गले में धारण कर लिया। ऐसा कहा जाता है की हलाहल पीने से शिव को भी समस्या हो सकती है इसलिए इन्होंने कंठ में धारण कर रखा है इसे नीचे नहीं उतरने देते। इस विष के कारण ही शिव का कंठ नीला पड़ गया और शिव का नाम नीलकंठ हो गया।

उच्चै श्रवा (घोड़ा)

उच्चै श्रवा (घोड़ा)

विष के बाद सबसे तेज गति वाला सात मुख सहित एक घोडा निकला जिसका रंग सफ़ेद था। इस घोड़े का नाम उच्चै श्रवा था। ये घोड़ों का राजा था। पहले तो इसे दैत्यराज बलि ने रख लिया कालांतर में ये इंद्र के अधीन हो गया।

ऐरावत हाथी

ऐरावत हाथी

उच्चै श्रवा घोड़े के बाद सफ़ेद रंग और चार दांतों वाला हाथी निकला। इसका नाम ऐरावत था जो हाथियों का राजा था। इसे इंद्र ने अपनी सवारी बना ली।

कौस्तुभ मणि

कौस्तुभ मणि

ऐरावत हाथी के बाद एक चमकदार काफी तेज वाला कौस्तुभ मणि निकला जिसे भगवान विष्णु ने अपने मुकुट में धारण किया। ऐसा कहा जाता है कि चूंकि ये मणि कालिया नामक सांप ने कृष्ण को उपहार स्वरुप दे दिया था और कृष्ण ने अपना शरीर धरती पर ही त्याग दिया था इसलिए ये मणि अभी भी द्वारका के साथ समुद्र में ही कही है।

कामधेनु गाय

कामधेनु गाय

उस समय गाय को धेनु कहा जाता था। कौस्तुभ मणि के बाद दिव्य गाय निकली जिसे लोक कल्याणकारी कहा गया और इसी लिए इस काम धेनु को ऋषियों को दे दिया गया।

मां लक्ष्मी

मां लक्ष्मी

मंथन चलता रहा फिर धन की देवी लक्ष्मी निकली। इनको पाने के लिए असुर लड़ने लगे किंतु लक्ष्मीजी ने विष्णु से विवाह कर लिया।

अप्सरा रंभा

अप्सरा रंभा

रम्भा बहुत ही सुंदर अप्सरा थी। सर्वगुण संपन्न इस सुंदर नृत्यांगना को इंद्र ने अपने पास रख लिया। विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने इसी रम्भा को भेजा था।

पारिजात पुष्प

पारिजात पुष्प

मंथन प्रक्रिया में इसके बाद कल्पतरु नामक पेड़ निकला जिसके पुष्प देवताओं को बहुत पसंद आये। स्कंदपुराण और विष्णु पुराण में पारिजात को कल्पवृक्ष कहा गया है। कल्पतरु भी देवताओं के ही हिस्से में आया।

वारुणी देवी

वारुणी देवी

वरुण का अर्थ होता है जल। ये देवी मदिरा लेकर मंथन से निकली इसलिए इन्हें वारुणी देवी कहा गया। वारुणी को असुरों को दे दिया गया।

पाच्चजन्य शंख

पाच्चजन्य शंख

इसके बाद पांचजन्य नामक एक दिव्य शंख निकला। ये शंख विजय, समृद्धि और यश का प्रतीक था। इसकी ध्वनि भगवान विष्णु को भा गयी इसलिए इसे विष्णु को समर्पित कर दिया गया। आज भी विष्णुजी की पूजा में शंख अवश्य बजाया जाता है।

चंद्रमा

चंद्रमा

शीतल प्रकाश देने वाले चंद्रमा की उत्पत्ति भी मंथन से ही हुई। चूंकि ये जल से निकला इसलिए इसका जल पर काफी प्रभाव पड़ता है। समुद्र में ज्वार भाटा का कारक चंद्रमा को ही मानते हैं। इसकी शीतलता की वजह से शिव ने इसे अपने शीश पर धारण कर लिया।

भगवान धन्वंतरी

भगवान धन्वंतरी

मंथन से ही आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ। इन्होंने ही देवताओं और ऋषियों को चिकित्सा शास्त्र की जानकारी दी। ये भी विष्णु के अधीन हो गये।

अमृत कलश

अमृत कलश

जब धन्वन्तरि देव उत्पन्न हुए तो उन्हीं के हाथ में अमृत कलश था। इस अमृत को पीने वाला अमर हो जाता इसलिए देवताओ और दानवों में युद्ध छिड़ गया। विष्णु ने बड़ी चालाकी से एक सुंदर युवती का रूप धारण किया जिसका नाम मोहिनी था। मोहिनी ने चालाकी से देवताओं को अमृत पीला दिया और सारे देवता अमर हो गए। राहु नामक दैत्य ने छल से अमृत पान कर लिया तभी विष्णु ने अपने चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए। ये दो टुकड़े राहु और केतु आज भी ग्रहों के रूप में विद्यमान हैं।

संधि के अंतर्गत सभी रत्नों और अमृत पर दोनों पक्षों का बराबर हिस्सा था पर कुल मिलाकर असुरों को सिर्फ वारुणी देवी मिली जिनके पास मदिरा था। बाकि सारे रत्न देवताओं को मिलें।

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English summary

Samudra Manthan Full Story And 14 Ratnas List

After samudra manthan fourteen Ratnas (gems or treasures) were produced from the ocean and were divided between asuras and Demigods.
Story first published: Tuesday, June 9, 2020, 19:08 [IST]
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