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संकष्टी या सकट चौथ व्रत: जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
हर माह की चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है और उस दिन उनकी खास पूजा की जाती है। माघ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले भगवान गणेश के इस दिन को संकष्टी या सकट चौथ के तौर पर मनाया जाता है। सकट चौथ का अपना विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अपनी संतान की लंबी उम्र, रोगमुक्त जीवन और रिद्धि-सिद्धि के लिए भगवान गणेश से विशेष प्रार्थना करती हैं। इस साल 13 जनवरी को सकट चौथ का व्रत रखा जाएगा। जानते हैं सकट चौथ से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियों के बारे में।
ये भी हैं नाम
सकट चौथ को तिल चौथ, तिलकुट चौथ, माघी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ, तिल संकष्टी चतुर्थी, संकष्टी चौथ, संकटा चौथ, वक्र तुण्डी चतुर्थी आदि नामों से भी जाना जाता है।
सकट चौथ का शुभ मुहूर्त:
चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 13 जनवरी की शाम को 5 बजकर 32 मिनट पर होगा। चतुर्थी तिथि का समापन 14 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर होगा। इस दिन चन्द्रमा का उदय रात 9 बजे होगा।
सकट चौथ की पूजा विधि:
हिंदू धर्म में किसी भी काम का शुभारंभ करने से पूर्व भगवान गणेश की पूजा करने का प्रावधान है। लोगों की आस्था है कि गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने से अच्छे फल की प्राप्ति होती है। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश के साथ चंद्र देव की भी पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। रात में चंद्रमा दिखने पर अर्घ्य देती हैं और पूजा करती हैं। इस दौरान छोटा सा हवनकुंड तैयार किया जाता है। हवनकुंड की परिक्रमा के बाद व्रती महिलाएं चंद्र देव के दर्शन करती हैं और अपने बच्चे के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। इस दिन महिलाएं दूध और शकरकंदी खाकर अपना व्रत खोलती हैं। महिलाएं अगले दिन ही अनाज ग्रहण करती हैं। पूजा के समय 'ॐ गं गणपतयै नम:' मंत्र का जप करते हुए गणपति को 21 दूर्वा घास अर्पित करें। साथ ही भगवान गणेश को बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं।
नैवेद्य के तौर पर तिल तथा गुड़ से बने हुए लड्डू, ईख, शकरकंद, अमरूद, गुड़ तथा घी अर्पित करने की महिमा है।
सकट चौथ की व्रत कथा
महाराजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहा करता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका नहीं। इस तरह उसके बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होता देखकर उसने एक तांत्रिक से मदद मांगी। तांत्रिक ने उसे बच्चे की बलि देने के लिए कहा। कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया। उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी। उस बालक की मां ने भगवान गणेश से अपनी संतान की कुशलता की प्रार्थना की। कुम्हार जब अपने बर्तनों को देखने गया तो वो उसे पके हुए मिले और साथ ही वो बालक भी सुरक्षित मिला।
इस घटना से कुम्हार डर गया और उसने राजा के सामने पूरी कहानी कह सुनाई। इसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का गुणगान किया। उसके बाद से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।