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तो इसलिए बना एक चूहा गणेश जी का वाहन
हमारे सभी देवी देवताओं के अलग अलग वाहन रहे हैं जैसे श्री हरी विष्णु का वाहन है गरुड़, भगवान शिव बैल की सवारी करते हैं और माँ दुर्गा शेर की। भगवान की हर एक सवारी इनकी शक्ति को दर्शाती है। किंतु हमारे प्रथम पूजनीय श्री गणेश जो तर्क वितर्क करने में और समस्याओं की जड़ तक जाकर उनका समाधान करने में सबसे आगे रहते हैं, उनकी सवारी एक चूहा है जो उनके शरीर से बिलकुल ही विपरीत है।
आइए जानते हैं आखिर एक मूषक कैसे बन गया श्री गणेश की सवारी। वैसे तो गजानन के वाहन को लेकर कई कथाएं प्रचलित है उनमें से एक कथा कुछ इस प्रकार है।
देवराज इंद्र के श्राप से गंधर्व बना मूषक
एक कथा के अनुसार एक बार इंद्र अपनी सभा में सभी देवी देवताओं के साथ किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे। उस सभा में देवताओं के अलावा अप्सराएं और गंधर्व भी मौजूद थे। जब सभी देवराज की बातों को ध्यान से सुन रहे थे तब एक क्रौंच नामक गंधर्व उनकी बातें न सुनकर अप्सराओं के साथ हंसी मज़ाक करने में व्यस्त था।
इंद्र ने कई बार उसे इशारे में समझाने का प्रयास किया किन्तु वह अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आया। तब देवराज अत्यंत क्रोधित हो उठे और उसे श्राप दे दिया कि वह गंधर्व से मूषक बन जाए। इंद्र के इतना कहते ही क्रौंच गन्धर्व से चूहे में परिवर्तित हो गया और पूरे देवलोक में इधर उधर भागने लगा। उसके उत्पात से देवराज और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने द्वारपालों को आदेश दिया कि वह फ़ौरन उस चूहे को देवलोक के बाहर फेंक दें।
उनकी आज्ञा का पालन करते हुए द्वारपालों ने उस चूहे को स्वर्गलोग से नीचे फ़ेंक दिया।
जब ऋषि पराशर के आश्रम पहुंचा क्रौंच
कहा जाता है कि स्वर्गलोक से गिरने के पश्चात क्रौंच सीधा ऋषि पराशर के आश्रम में जा पहुंचा। वहां भी उसने सभी ऋषि मुनियों को परेशान करना शुरू कर दिया। कभी वह उनके भोजन चट कर जाता तो कभी उनके वस्त्र काट डालता तो कभी उनके धर्मिक ग्रंथों को कुतर देता।
उसकी हरकतों से परेशान होकर ऋषि पराशर ने भगवान गणेश से मदद की गुहार लगायी तब गजानन ने अपने पाश को उस उत्पाती चूहे को ढूंढ कर लाने का आदेश दिया।
गणेश जी के सामने उपस्थित हुआ क्रौंच
माना जाता है कि गणेश जी के पाश ने उस चूहे को पाताल लोक से ढूंढ निकाला और उसे भगवान के समक्ष पेश किया। गणपति के सामने खुद को पाकर वह चूहा भय से कांपने लगा उसकी यह दशा देखकर भगवान को हंसी आ गई। तब उनका यह रूप देखकर चूहे ने राहत की सांस ली और गणेश जी से वरदान मांगने को कहा।
उसकी यह बात सुन गणेश जी तुरंत उसके ऊपर विराजमान हो गए और उसे अपना वाहन बनने को कहा। किंतु वह चूहा उनके भारी भरकम शरीर का बोझ उठाने में असमर्थ था इसलिए उसने भगवान से प्रार्थना की, कि उसे वह शक्ति दें ताकि वह उनका भार सहन कर सके।
उसकी बात सुनकर गणेश जी ने उसे आशीर्वाद दिया और इस प्रकार एक छोटा सा मूषक हमारे गणो के स्वामी का वाहन बन गया।
एक अन्य कथा के अनुसार गजमुखासुर नामक एक असुर को वरदान प्राप्त था कि उसका वध किसी भी अस्त्र से नहीं हो सकता। तब गणेश जी ने उसका अंत करने के लिए अपना एक दांत तोड़कर उस पर वार कर दिया। भगवान के इस वार से भयभीत होकर वह असुर चूहा बनकर इधर उधर भागने लगा। गजानन ने उसे अपने पाश में बाँध लिया जिसके बाद वह भगवान से क्षमा याचना करने लगा जिसके बाद गणेश जी ने उसे जीवनदान प्रदान कर अपना वाहन बना लिया।