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जानिए, आखिर क्यूं पुरी के भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां रह गई अधूरी?
साल में एक दिन पूरे धूम धाम से जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है इसे गुंडिचा महोत्सव भी कहा जाता है। लेकिन जगन्नाथ में स्थापित मूर्तियों को देखकर सबके मन में यह सवाल जरुर आता है कि आखिर क्या कारण है कि
उड़ीसा प्रांत के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ का मंदिर कृष्ण भक्तों की आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमुना है। इसकी बनावट के कुछ राज तो आज भी राज ही हैं जिनका भेद इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी नहीं कर पाएं हैं। कहा जाता है कि जगन्नाथ में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा साक्षात रूप में निवास करते है। साल में एक दिन पूरे धूम धाम से जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है इसे गुंडिचा महोत्सव भी कहा जाता है।
लेकिन जगन्नाथ में स्थापित मूर्तियों को देखकर सबके मन में यह सवाल जरुर आता है कि आखिर क्या कारण है कि जगन्नाथ की मूर्तियाँ अधूरी है। आज हम आपको बताने जा रहे है की आखिर इस मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों अधूरी है तथा इसके पीछे का क्या रहस्य है।
ये है काहानी
भगवान स्वामी जगन्नाथ भगवान श्री विष्णु की इंद्रनील या कहें नीलमणि से बनी मूर्ति एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। मान्यता है कि मालवा नरेश इंद्रद्युम्न जो कि भगवान विष्णु के कड़े भक्त थे उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिये और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा उस से मूर्ति का निर्माण कराओ। राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया। अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किनसे बनवाई जाएं?
रखी एक शर्त
तब एक बूढ़ा ब्राह्मण राजा के समक्ष आकर इस कार्य को करने के लिए अनुमति मांगी इसके साथ मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित करने की बात कही और मंदिर की पूरी जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली।
लेकिन उस कारीगर रूप में आये बूढे ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह यह कार्य बंद कमरे में एक रात में ही करेगा और यदि कमरा खुला तो वह काम बीच में ही छोड़कर चला जाएगा।
बूढ़ा ब्राह्माण हो गया गायब
राजा ने उस ब्राह्मण की शर्त मान ली और कमरा बाहर से बंद करवा दिया। लेकिन काम की समीक्षा करने के लिए राजा कमरे के आसपास घुमने जरुर आता था। कुछ वक़्त तक कमरे से काम चलने की आवाजें आती रही, फिर अचानक कमरे से काम करने की आवाजें बंद हो गई। तब राजा घबराकर सोचने लगा कि कही उस बूढ़े ब्राह्मण को कुछ हो तो नहीं गया। राजा ने डर में दरवाजा खोल दिया और दरवाजा खुलते ही वह ब्राह्माण उस अधूरी मूर्तियों को छोड़ कर गायब हो गया।
विश्वकर्मा जी ने बनाई थी मूर्तियां
वास्तव में वह बूढा ब्राह्मण विश्वकर्माजी थे, जो भगवान विष्णु के आग्रह पर यह जगन्नाथ मंदिर में कृष्णा, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनाने धरती पर आये थे, विश्वकर्मा जी ने यह निर्माणकार्य एक रात में पूरा करके देने की बात कही थी। क्योकि विश्वकर्मा जी द्वारा बनाए जाने वाली सभी मूर्तियाँ या मंदिर का निर्माण वह एक रात में ही करते थे। काम पूरा हो न हो अगर सुबह हो गई है तो विश्वकर्मा जी उस कार्य को रोककर सूर्य उदय से पहले छोड़ देते थे।
इसलिए रह गई मूर्तियां अधूरी
इस मंदिर के मूर्ति निर्माण के लिए भी विश्वकर्माजी एक ही रात का समय निश्चित किया था। परन्तु अन्य देवता नहीं चाहते थे कि भगवान कृष्ण, सुभद्रा और बलराम के वास्तविक रूप को कोई साधारण इंसान देख सके, इसलिए सूर्योदय से पहले काम में विघ्न डालने के लिए राजा को माध्यम बनाकर भेज दिया।
जिससे जगन्नाथ की यह मूर्तियाँ अधूरी ही रह गई और अधूरी ही स्थापित कराई गई। इस तरह जगन्नाथ की मूर्तियाँ आज भी अधूरी है।
ये कहा जाता है जो भी होता है उसके पीछे एक वजह होती है। आपने जाना कि किस वजह से जगन्नाथ की मूर्तियाँ जानबूझकर अधूरी छोड़ दी गई।
जगन्नाथ का अर्थ
जगन्नाथ का अर्थ है जगत का स्वामी। इस जगत को चलाने वाला। कहा जाता है कि इस मंदिर का रसोई भारत के सभी रसोईघर में सबसे बड़ा है, हजारो श्रृद्धालु यहां खाना बनाते हैं। इसके अलावा यह मंदिर कालिंगा शैली में बनाया गया है जो वास्तुशिल्प का उत्कृष्ठ नमूना हैं।