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फैशन: बिना 'लहरिया' के फीका है सावन और तीज
आज लहरिया सभी तरह के इंडियन वेयर में इस्तेमाल होने वाली आम तकनीक बन गया है, खासकर साड़ियों और दुपट्टों में और कई फैशन डिज़ाइनर्स ने इसे बॉलीवुड पर पर्दे पर भी उतारा है।
बात अगर सावन और तीज की हो तो बिना लहरिया यह त्योहार अधूरा है। देश विदेश में अपनी पहचान बना चुका लहरिया। न सिर्फ सावन में बल्कि शादी ब्याह के फंक्शन में भी काफी सुंदर लगता है। लहरिया राजस्थान की एक पारंपरिक टाई-एंड-डाई तकनीक है। इसे 17वीं शताब्दी में ईजाद किया गया था और इसका इस्तेमाल राजपूताना राजाओं की पगड़ी पर किया जाता था। 19वीं शताब्दी के अंत तक इसका इस्तेमाल राजस्थान के कई हिस्सों, में होने लगा।
आज लहरिया सभी तरह के इंडियन वेयर में इस्तेमाल होने वाली आम तकनीक बन गया है, खासकर साड़ियों और दुपट्टों में और कई फैशन डिज़ाइनर्स ने इसे बॉलीवुड पर पर्दे पर भी उतारा है। कुछ दिनों में ही हरियाली तीज और इस मौके पर तो लहरिया साड़ी की हर जगह लहर देखने को मिलती है।
आज हम आपको विभिन्न तरह के लहरियो के बारे में बताएंगे। तो आइये जानते है इस बारे में.....
लहर से आया लहरिया
‘लहरिया' शब्द लहर से लिया गया है। इस तकनीक से बनाई गई लहरदार टेढ़ी स्ट्राइप्स ब्राइट कलर कॉम्बिनेशंस में बेहद शानदार लगता है। ये टेढ़ी स्ट्राइप्स ओरिजिनली कई रंगों मे रंगे जाते हैं जिससे की कई शानदार पैटर्न्स बनते हैं।
बंधेज लहरिया
यह राजस्थान की पहली पसंद है। इस लहरिये में महिलाओं की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। ज्यादातर महिलाये इसमें लाल,पीले रंग की साड़ी खरीदती है। इसमें और भी कलर का मेल किया जाता है। इसमें में भी फूल पत्त्तियो का डिज़ाइन या चौकोर आकृति का डिज़ाइन भी दिया जाता है। जो इसको और भी सुंदर बना देता है।
पचरंगी लहरिया
यह पांच रंगो से मिलकर बनाया जाता है। आजकल इसमें पांच रंगो को कुंदन और मेंकारी से सजाया जाता है।
बारीक़ लहरिया
जॉजर्ट से निर्मित हल्के और महीन कपड़े पर यह लहरिया बारीक़ बारीक़ लाइनों को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है। इस लहरिये में भी नए तरह के फैशन को जोड़ दिया गया है जो हर लड़की या महिला पर अच्छा लगता है।
गोटा पट्टी और लहरिया
लहरिया मे साडियों मे गोटा पत्ती वर्क हमेशा से ही खास रहा है आप ट्रेडिशनल टच देने के लिए लहरिया विद् गोटा पत्ती वर्क की डिजाइन लहरिया साड़ी को ट्राई कर सकते है। इनमें पचरंगा, मोठड़ा और डबल धारी पैटर्न काफी पसंद किए जा रहे हैं। तीज के हिसाब से यह परफेक्ट चॉइस हो सकते है।
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मोथड़ा वर्क और लहरिया
बदलते ट्रेंड्स के साथ, लहरिया सिर्फ स्ट्राइप्स नहीं रह गए हैं। अब कारीगर की क्रिएटिविटी और इमैजिनेशन के मुताबिक प्रिंट्स और पैटर्न्स बनते हैं. एक और तरह की रंगने की टकनीक है ‘मोथरा' जिसमें एक चेकर्ड पैटर्न बनता है जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर खाली जगह छूट जाती है. ये खाली जगह एक अनाज के दाने के बराबर होती है, जिससे इस तकनीक का नाम मोथरा पड़ा।
गोल्डन वर्क के साथ
आजकल लहरिया के साथ काफी एक्सपैरिमेंट होने लगे हैं। खासकर साडि़यों के साथ। वैसे सूट हो या राजपूती पौशाक या फिर साड़ी लहरिया के साथ गोल्डन वर्क काफी अच्छा लगता है।