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महाभारत में है आपकी दिमागी परेशानियों का इलाज, कृष्ण जी हैं सबसे अच्छे काउंसलर
मानसिक बीमारियों के बारे में महाभारत में काफी विस्तार से लिखा गया है। यह प्राचीन भारत के संस्कृत के दो महाकाव्यों में से एक है और इसमें मानसिक उलझनों से संबंधित सभी सवालों के जवाब मौजूद हैं।
नेशनल पिमगिडेंट ऑफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) से जुड़े केके अग्रवाल भगवान कृष्ण को सबसे अच्छा काउंसलर मानते हैं। उनका कहना है कि महाभारत में मनोरोग के विभिन्न आयामों के बारे में बताया गया है।
इक्वेटर
लाइन
मैगजीन
के
नवीनतम
अंक-
'कोबवेज
इनसाइड
अस’
में
प्रकाशित
अग्रवाल
के
एक
लेख
के
अनुसार
भारत
में
मनोचिकित्सा
का
इतिहास
महाभारत
युद्ध
के
18
दिन
पहले
भगवान
कृष्ण
द्वारा
अर्जुन
को
दिए
गए
संदेश
से
ही
शुरू
हुआ
था।
अग्रवाल ने अपने लेख “ सायकोथेरेपी इन दि टाइम ऑफ़ वेद” में लिखा है कि पहले मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं थी ना ही इस बीमारी को ठीक करने के लिए कोई मनोरोग डॉक्टर था। उस समय संस्कृत में लिखी गई बातों को पढ़कर इस बीमारी के बारे में लोगों को सलाह या परामर्श दिया जाता था।
भगवान कृष्ण को सच्चे अर्थों में सबसे अच्छा काउंसलर बताते हुए अग्रवाल कहते हैं कृष्ण ने अर्जुन के मानसिक उलझनों को सिर्फ प्रभावी तरीके से ठीक ही नहीं किया है बल्कि भागवत गीता के सात सौ श्लोकों का पाठ भी पढाया है।
वैदिक भारतीय अभी भी “बोकोलिक एनवायमेंट” के उपचार के बारे में नहीं जानते हैं, जैसे कि नदी के किनारों के साथ जंगल का चलना, आसपास हिरन का उछलना-कूदना आदि। कुछ इन्हीं तरीकों से चोट पहुंचे दिमाग को ठीक करने का भी तरीका ढूंढा गया था।
अब समय बदल गया है और पहले की अपेक्षा दवाइयां भी कई गुना बढ़ गई हैं। आज मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए बहुत सी दवाइयां उपलब्ध हैं और पिम्गक्रिप्शन भी अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग पाया जाता है। लेकिन मानसिक बीमारी से निपटने के लिए वैदिक तरीका से दिमाग, बुद्धि औऱ अहंकार को नियंत्रित किया जाता है।
एम्स के मनोचिकित्सक डॉ. राजेश सागर और डॉ. अनन्या महापात्रा ने भी “ऑफ द माइंड एंड इट्स मैलेडिज” में लिखा है कि भविष्य में लोगों की इसके प्रति जागरूकता, शीघ्र पहचान, इलाज, शिक्षा और लंबे समय तक उचित देखभाल जैसे कई तरीकों से मानसिक बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके अलावा पुनर्वास, समाज में फिर से उसी स्थिति में जीना, बीमार व्यक्तियों के अधिकारों को के साथ ही इस बीमारी से पीड़ित मरीज के साथ भेदभाव को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
भास्कर रॉय ने अपने एडिटोरियल “मेंटल इलनेस” में लिखा है कि यह एक ऐसी समस्या है जो धीरे धीरे लोगों में घर कर रही है लेकिन यह अच्छी बात है कि यह बीमारी अब सामने आ रही है और इसपर लोग खुलकर बात भी कर रहे हैं।