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जरा ध्यान दें! कड़ाही में बचे हुए तेल का इस्तेमाल यानी कैंसर का न्योता...
घर में अगर कोई त्योहार हो और जब तक गरमागर्म पूड़ी और हलवे की महक न आए तब तक त्योहार या किसी समारोह का अहसास ही नहीं होता हैं। हमारे यहां वार त्योहार समोसे, पूरी, आलू का साग और पकौड़े की महक आनी जरुरी होती हैं। हमारी रसोईयों में बहुत कम ऐसे भारतीय व्यंजन हैं जिन्हें बिना तले बनाया जाता है। तेल हमारे रसाई की सबसे जरुरी चीजों में से एक हैं। हालांकि ज्यादा ऑयली फूड नहीं खाना चाहिए लेकिन उससे जरुरी एक चीज और भी हैं।
हममें से कई लोग ऐसे हैं जो कड़ाही में बचे तेल का दोबारा से उपयोग करते हैं। कड़ाही में बचे तेल का दोबारा या कई बार उपयोग करना आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।तेल का पुन: उपयोग करने से ऐसा हो सकता है कि कुछ मुक्त कणों का निर्माण हो जो आगे चलकर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। आहार विशेषज्ञ के अनुसार "ये मुक्त कण स्वस्थ कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं और बीमारियाँ पैदा करते हैं। ये मुक्त कण कैंसर पैदा करने वाले हो सकते हैं अर्थात इनके कारण कैंसर हो सकता है तथा धमनियों में ख़राब कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ सकता है और धमनियों में रूकावट आ सकती है।
जितनी बार गरम उतना ही नुकसानदायक
तेल जितनी बार गर्म होने के बाद उबलता है, उतनी बार उसमें कैंसर के कारक बनते हैं। यही कारक जब अधिक देर तक उस तेल में रह जाते हैं तो वह बढ़ते जाते हैं और अगली बार फिर से उबालने पर इनकी शक्ति और भी बढ़ जाती है। इसका प्रमुख कारण विशेषज्ञों ने बताया कि बार-बार तेल गर्म करने उसके मुख्य कारक नष्ट हो जाते हैं।
पेट का कैंसर होने की सम्भावना
तेल को बार-बार उबालने से उसमें कैंसर उत्पन्न करने वाले तत्व आ जाते हैं। जिस वजह से शरीर में गॉल ब्लैडर या पेट का कैंसर होने का खतरा पैदा हो जाता है।
शरीर के लिए खतरा –
कड़ाही में बचे हुए तेल को फिर से दुबारा गर्म करके यूज करने से उनमें धीरे-धीरे फ्री रेडिकल्स बनने लगते हैं। इन रेडिकल्स के रिलीज़ होने से तेल में एंटी ऑक्सीडेंट ख़त्म हो जाते हैं और यह बचा हुआ तेल कैंसर का कारण बन सकता है।
बढ़ाता है कॉलेस्ट्रोल
कड़ाही के तले में फैट जमने से कड़ाही का तला काला हो जाता है। यह फैट खाने में चिपक कर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। इस तरह के खाने से शरीर में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ती है। जिस वजह से आपका मोटापा भी बढ़ सकता है। साथ ही कई और परेशानियां जैसे एसिडिटी और दिल की बीमारी भी हो सकती है।
डीप फ्राई के लिए नहीं करें यूज
सरसों के तेल की अपेक्षा ग्रेपसीड ऑयल, सनफ्लावर, कॉर्न ऑयल जैसे तेलों में लिनोलेइक एसिड की मात्रा अधिक होती है। इसलिए इस तरह के तेल का इस्तेमाल डीप फ्राई करने के लिए नहीं करना चाहिए।
फैंक दे तेल
तेल में गाढ़ा काला फैट ना जमा हो। अगर कड़ाही में चिपचिपा कालापन दिखने लगे तो इस तेल का इस्तेमाल ना करें। ऐसे तेल में कई विषाक्त पदार्थ घुले रहते हैं, जो आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए ऐसे तेल का इस्तेमाल बिल्कुल ना करें और बिना झिझके इसे फेंक दें।