
इस संसार के कुछ क़ायदे और नियम हैं जिनका पालन करना हर एक व्यक्ति का कर्तव्य होता है। इनमें से कुछ नियम मनुष्य ने बनाए हैं तो कुछ स्वयं ईश्वर ने। भगवान के बनाए नियमों का वर्णन हमारे शास्त्रों में भी किया गया है, उन्हीं में से कुछ महत्वपूर्ण बातें ऐसी हैं जो हमारे स्नान से जुड़ी हुई है।
हम हर रोज़ नहाते है क्योंकि नहाने के बाद ही हम अपने आपको स्वच्छ और पवित्र मानते हैं लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि स्नान करते वक़्त भी कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका हमे ख़ास ध्यान रखना चाहिए। जैसे कभी भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए। ऐसा करना घोर पाप माना गया है और इस बात का उल्लेख पद्मपुराण में मिलता है, जिसके अनुसार स्वयं श्री कृष्ण ने नग्न अवस्था में स्नान करने को वर्जित बताया है।
तो आइए स्वयं श्री कृष्ण से जानते हैं क्या है स्नान करने के नियम।
गोपियों के साथ लीला कर निर्वस्त्र स्नान को बताया था श्री कृष्ण ने वर्जित
पद्मपुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब गोपियाँ नदी में नग्न होकर स्नान कर रही थीं तब श्री कृष्ण ने उनके वस्त्र चुरा लिए थे। उस वक़्त गोपियों को यह कन्हैया की एक शरारत लगी किन्तु यह तो भगवान की एक लीला थी जिसके माध्यम से वे उन्हें स्नान करने के नियम बताना चाहते थे।
कहते हैं गोपियों के वस्त्र चुरा कर श्री कृष्ण ने उन्हें पेड़ पर टांग दिया था। जब वे भगवान से अपने वस्त्र मांगने के लिए प्रार्थना करने लगीं तो मुरली मनोहर ने उनसे स्वयं ही नदी से बाहर आकर अपने वस्त्र वापस लेने को कहा। इस पर गोपियों ने उनसे कहा कि इस अवस्था में वे बाहर कैसे आएंगी। उनकी यह बात सुनकर कन्हैया ने उनसे पूछा कि उन्हें किससे लज्जा आ रही है और वे नदी में भी तो निर्वस्त्र ही गयी थीं।
कान्हा की यह बात सुनकर गोपियों को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने भगवान को बताया कि जब वह नदी में गयी थीं तब वहां पर कोई भी मौजूद नहीं था। इस पर श्री कृष्णा मुस्कुराए और कहने लगे कि यह तो असंभव है क्योंकि मैं तो हर क्षण हर जगह मौजूद हूँ। इतना ही नहीं तुम्हारे आस पास इतने सारे पेड़ पौधे हैं, पशु पक्षी हैं, यह खुला आकाश है, इन सब ने तो तुम्हें देखा है।
इसके अलावा पानी के अंदर कई जीव हैं। स्वयं वरुण देव ने भी तुम्हें इस अवस्था में देखा है और ये उनका अपमान है इसलिए तुम सब ने घोर पाप किया है।
भगवान कृष्ण ने अपनी इस लीला से केवल गोपियों को ही नहीं बल्कि समस्त संसार को यह सन्देश दिया था कि नग्न होकर स्नान करना ईश्वर का निरादर होता है।
गरुड़ पुराण में भी इस बात का वर्णन किया गया है कि नहाते वक़्त हमारे शरीर पर कोई न कोई वस्त्र ज़रूर होना चाहिए क्योंकि स्नान करते वक़्त हमारे पूर्वज भी हमारे आस पास होते हैं। माना जाता है कि हमारे वस्त्रों से गिरने वाले जल को वे ग्रहण करते हैं और अगर उस समय हम निर्वस्त्र होते हैं तो वे अतृप्त ही रह जाते हैं।
बिना कपड़ों के स्नान करने के कई और नुकसान भी हैं। जिसका उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी किया गया है जिसके अनुसार ऐसा करके हम सिर्फ पाप के भागीदार नहीं बनते बल्कि हमारे जीवन से सुख, शान्ति और समृद्धि भी चली जाती है इसलिए हमेशा ऐसे स्नान करने से बचना चाहिए।
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