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पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति, कथा पढ़ने से भी होता है कल्याण
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। पापांकुशा एकादशी हर साल शारदीय नवरात्रि की समाप्ति के बाद और विजयादशमी पर्व के अगले दिन मनाया जाता है।
इस एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु को पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और पाप से मुक्ति मिलती है। जानते हैं साल 2020 में पापांकुशा एकादशी व्रत किस दिन है और इससे जुड़ी कथा क्या है।
पापांकुशा एकादशी तिथि और व्रत पारण का समय
एकादशी तिथि का आरंभ - 26 अक्टूबर 2020 को सुबह 09:00 बजे
एकादशी तिथि का समापन - 27 अक्टूबर 2020 को सुबह 10:46 बजे तक
व्रत पारण का समय और तिथि - 28 अक्टूबर 2020 को सुबह 06:30 बजे से लेकर सुबह 08:44 बजे तक
द्वादशी तिथि समाप्त - 28 अक्टूबर दोपहर 12:54
पापांकुशा एकादशी का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने पापांकुशा एकादशी का महत्व बताया है। उनके अनुसार एकादशी पाप कर्मों से रक्षा करती है। जीवन में जो व्यक्ति पाप करता है उसके द्वारा ये व्रत किये जाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। इस व्रत का प्रभाव इतना अधिक है कि इसकी मदद से संचित पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन अपनी श्रद्धा अनुसार दान दक्षिणा देना चाहिए। साथ ही निश्छल मन से प्रभु को याद करना चाहिए।
पापाकुंशा एकादशी की व्रत कथा
पापाकुंशा एकादशी की प्रचलित व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहुत क्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपना पूरा जीवन हिंसा, झूठ, छल-कपट और मदिरापान जैसे बुरे कर्मों में ही बिताया। उसके जीवन का जब अंत समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को बहेलिया के प्राण लेने की आज्ञा दी। इसके बाद दूतों ने क्रोधन बहेलिया से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का आखिरी दिन है।
मृत्यु को निकट पाकर बहेलिया भयभीत हो गया। वह बचने के लिए महर्षि अंगिरा की शरण में जा पहुंचा। उसने महर्षि से खूब विनती व प्रार्थना की। बहेलिया की ऐसी दशा देखकर महर्षि को उस पर दया आ गई। तब उन्होंने उसे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से बहेलिये के पाप नष्ट हुए और प्रभु के आशीर्वाद से उसे मोक्ष प्राप्त प्राप्त हुआ।