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पितृ पक्ष विशेष: श्राद्ध एक परिचय
श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो काम श्रद्धा से किया जाता है उसी को 'श्राद्ध' कहते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार हर व्यक्ति का यह फर्ज होता है कि वह कोई भी शुभ कार्य करने से पहले अपने माता-पिता या घर के पूर्वजों को नमस्कार करे और तब वह काम शुरु करे। हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। हिंदू परंपराओं के पीछे छुपे विज्ञान को समझना है जरुरी
इस धर्म में, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है जिसे 'श्राद्ध' कहते हैं।
श्राद्ध एक परिचय: ब्रह्म पुराण ने श्राद्ध की परिभाषा इस प्रकार की है, 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है।
मिताक्षरा ने श्राद्ध को इस प्रकार परिभाषित किया है, 'पितरों का उद्देश्य कर के श्रद्धापूर्वक किसी वस्तु का या उससे सम्बन्धित किसी द्रव्य का त्याग श्राद्ध है।' कल्पतरु की परिभाषा इस प्रकार है, 'पितरों का उद्देश्य करके (उनके लाभ के लिए) यज्ञिय वस्तु का त्याग एवं ब्राह्मणों के द्वारा उसका ग्रहण प्रधान श्राद्धस्वरूप है।'
रुद्रधर के श्राद्धविवेक एवं श्राद्धप्रकाश ने मिताक्षरा के समान ही कहा है, किन्तु इनमें परिभाषा कुछ उलझ सी गयी है।
याज्ञवल्क्यस्मृति का कथन है कि पितर लोग, यथा-वसु, रुद्र एवं आदित्य, जो कि श्राद्ध के देवता हैं, श्राद्ध से संतुष्ट होकर मानवों के पूर्वपुरुषों को संतुष्टि देते हैं। क्यों है खास चतुर्मास?
यह वचन एवं मनु की उक्ति यह स्पष्ट करती है कि मनुष्य के तीन पूर्वज, यथा-पिता, पितामह एवं प्रपितामह क्रम से पितृ-देवों, अर्थात् वसुओं, रुद्रों एवं आदित्य के समान हैं और श्राद्ध करते समय उनकों पूर्वजों का प्रतिनिधि मानना चाहिए।
कुछ लोगों के मत से श्राद्ध से इन बातों का निर्देश होता है; होम, पिण्डदान एवं ब्राह्मण तर्पण (ब्राह्मण संतुष्टि भोजन आदि से); किन्तु श्राद्ध शब्द का प्रयोग इन तीनों के साथ गौण अर्थ में उपयुक्त समझा जा सकता है।