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नारद जी के कारण अलग हुए थे श्री राम और माता सीता
ईर्ष्या, द्वेष, घमंड और अहंकार जैसे भाव रखने वालों का हमेशा ही विनाश होता है। ऐसे भाव किसी के भी मन में आ सकते हैं चाहे वह ज्ञानी हो या अज्ञानी। जैसे महाज्ञानी रावण कई विद्याओं का ज्ञाता था लेकिन उसका घमंड उसे उसके अंत की ओर ले गया।
इसी प्रकार एक बार जब नारद जी को अभिमान हुआ तब स्वयं श्री हरि विष्णु ने अपनी लीला से उनका घमंड चूर चूर कर दिया था और देवर्षि ने उन्हें श्राप दे दिया था। कैसे किया था विष्णु जी ने यह सब और क्या हुआ था उसके बाद, आज इस लेख के माध्यम से हम आपको इस रोचक घटना के विषय में बताएंगे जिसे जानकर आप भी आश्चर्यचकित रह जाएंगे।
जब नारद जी की तपस्या भंग करने पहुंचे कामदेव
एक बार नारद जी हिमालय पर्वत में एक पवित्र गुफा के निकट तपस्या में लीन थे। श्री हरि विष्णु के प्रति उनकी भक्ति और तपस्या को देख कर देवराज इंद्र को इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं नारद जी अपने तप से स्वर्गलोक के स्वामी न बन जाएं। इसलिए देवराज ने कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। कामदेव के कई प्रयासों के बावजूद नारद जी की तपस्या भंग नहीं हुई तब कामदेव भयभीत हो गए कि कहीं क्रोधित होकर नारद उन्हें श्राप न दे दें।
कामदेव ने नारद जी से तुरंत क्षमा याचना करनी शुरू कर दी लेकिन देवर्षि को उन पर तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होंने कामदेव को माफ़ कर दिया।
भोलेनाथ समझ गए नारद को हो गया है अभिमान
इस घटना के बाद नारद जी बड़े ही प्रसन्न थे कि स्वयं कामदेव भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएं। यही सोचकर वह महादेव के पास कैलाश पहुंचे और उन्हें सारी बात बतायी। उनकी बात सुनकर शिव जी समझ गए कि देवर्षि को घमंड हो गया है और अगर यह बात विष्णु जी को पता चली तो नारद जी मुसीबत में पड़ सकते हैं।
विष्णु जी ने किया देवर्षि के साथ छल
भोलेनाथ ने देवर्षि से कहा की वह इस घटना का जिक्र विष्णु जी से न करें, किन्तु नारद कहाँ मानने वाले थे। शंकर जी की बात उन्हें बिल्कुल अच्छी नहीं लगी और वे मन ही मन सोचने लगे इतनी बड़ी बात वे क्यों छुपाएं। यह सोच कर वह कैलाश से सीधे विष्णु जी के पास पहुंच गए और उन्हें पूरी घटना की जानकारी दी। शिव जी की तरह विष्णु जी भी फ़ौरन यह समझ गए की उनके परम भक्त को अभिमान हो गया है।
तब भगवान को नारद जी के बढ़ते हुए अहंकार को रोकने का एक उपाय सूझा। श्री हरि ने अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया जिसमे शीलनिधि नाम का राजा रहता था। उस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम विश्व मोहिनी था। वह अत्यंत खूबसूरत थी और रूप ऐसा जिसे देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए।
शीलनिधि ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। उन्होंने कई राजाओं को स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया। नारद जी भी उस नगर में पहुँच गए। तब राजा ने उनका खूब आदर और सेवा सत्कार किया। राजा ने उनसे अपनी पुत्री की हस्तरेखा को देखकर उसके गुणों और दोष के बारे में बताने को कहा।
जब विश्व मोहिनी नारद जी के समक्ष आयी तो वे उसे देखते ही रह गए। उसके सुन्दर मुख से देवर्षि की नज़र ही नहीं हट रही थी। वे तो यह भी भूल गए कि उन्होंने आजीवन विवाह न करने का प्रण लिया है। इसके पश्चात उन्होंने उस सुन्दर कन्या की हस्तरेखाओं पर नज़र डाली तब उन्हें ज्ञात हुआ कि जो भी इस कन्या से विवाह करेगा वह अमर हो जाएगा, उसे कोई भी पराजित नहीं कर पाएगा। किन्तु यह बात नारद जी ने राजा को नहीं बतायी और कुछ अन्य अच्छी बातें उसकी पुत्री के विषय में कह दी। देवर्षि मन ही मन कोई उपाय सोचने लगे जिससे उनका विवाह विश्व मोहिनी से हो जाए।
तब उन्होंने श्री हरि विष्णु का आह्वान किया जिसके पश्चात विष्णु जी तुरंत ही उनके सामने प्रकट हो गए। देवर्षि ने विष्णु जी से कहा कि वे अपना सुन्दर रूप उन्हें प्रदान करें ताकि वे विश्व मोहिनी से विवाह कर सके। इस पर विष्णु जी बोलें मैं वही करूँगा जो तुम्हारे लिए उचित है और तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। नारद जी को लगा उन्हें श्री हरी का रूप प्राप्त हो गया है किन्तु वह इस बात से अनजान थे कि भगवान ने उन्हें अपना वानर रूप दे दिया है। जी हाँ विष्णु जी का एक रूप वानर भी है।
कहा जाता है कि यह सारी घटना शिव जी के दो गण छुपकर देख रहे थे और वे भी ऋषियों का भेस धारण करके राजा के महल में पहुंच गए। जब नारद जी स्वयंवर में आए तो वे दोनों उनको सच बताने की बजाए उनके वानर रूप की प्रशंसा करने लगे जिससे देवर्षि की प्रसन्नता दोगुनी हो गई। कहा जाता है कि विष्णु जी भी मानव रूप धारण कर उस स्वयंवर में उपस्थित थे और विश्व मोहिनी ने उन्हीं के गले में वरमाला डाल दी थी। यह देख नारद जी
आश्चर्य में पड़ गए थे।
नारद जी ने दिया श्री हरि विष्णु को श्राप
विश्व मोहिनी के विवाह के बाद दोनों गण नारद जी के रूप का उपहास उड़ाने लगे जिसके पश्चात नारद जी ने जल में अपना चेहरा देखा तो क्रोध से उबल पड़े।
नारद जी को विष्णु जी पर इतना गुस्सा आया कि उन्होंने श्री हरि को श्राप दे दिया कि जिस प्रकार मानव रूप में उन्होंने विश्व मोहिनी को प्राप्त कर उन्हें स्त्री वियोग सहने पर मजबूर किया है ठीक उसी प्रकार एक बार फिर वह मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे और उन्हें भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा।
बाद में विष्णु जी ने प्रभु श्री राम का अवतार लिया था और सीता जी से उन्हें अलग होना पड़ा था। इतना ही नहीं नारद जी ने उन दोनों गणों को भी श्राप दिया था कि वे राक्षस में परिवर्तित हो जाएं। जब वे दोनों क्षमा मांगने लगे तो देवर्षि ने उनसे कहा कि वे दोनों रावण और कुंभकर्ण के रूप में महान ऐश्वर्यशाली बलवान तथा तेजवान राक्षस बनेंगे और पूरे संसार पर राज करेंगे। तब विष्णु जी के रूप में श्री राम उनका वध करेंगे और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाएगी।