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अपने ही पुत्र के कारण हुई थी श्री कृष्ण की मृत्यु

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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी। उस भयंकर युद्ध में सभी कौरवों की मृत्यु हो गयी थी और गांधारी ने अपने पुत्रों की मृत्यु का ज़िम्मेदार श्री कृष्ण को ठहराया था। अपने सौ पुत्रों को खोकर शोक से भरी गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दे दिया था कि ठीक 36 वर्षों के बाद उनकी मृत्यु हो जाएगी, तब श्री कृष्ण ने ख़ुशी ख़ुशी उस श्राप को स्वीकार कर लिया था।

आइए जानते हैं श्री कृष्ण की मृत्यु से जुड़े इस रहस्य के बारे में

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महाभारत

कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध ने कई लोगों की जान ले ली थी। इनमें कौरवों के अलावा भी कई धुरंधर शामिल थे जैसे भीष्म पितामाह, अभिमन्यु आदि। इन सभी के खून से आज भी कुरुक्षेत्र की माटी लाल दिखाई पड़ती है। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था जिसमें बड़े बड़े योद्धाओं ने हिस्सा लिया था लेकिन इसमें सबसे अहम भूमिका श्री कृष्ण ने निभाई थी, जिन्होंने अर्जुन के सारथि की भूमिका निभाई और समय समय पर उसका मार्गदर्शन करते रहे। शायद यही वजह थी की गांधारी ने श्री कृष्ण को अपने 100 पुत्रों का हत्यारा माना था।

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित धार्मिक ग्रंथ महाभारत 18 खण्डों में संकलित है जिसमें महाभारत के युद्ध का वर्णन सबसे बड़े भाग में किया गया है किन्तु इस युद्ध के अलावा भी अन्य कई घटनाएं हैं जिनमें श्री कृष्ण की मृत्यु की घटना भी बहुत महत्वपूर्ण है।

मौसल पर्व

मौसल पर्व, 18 पर्वों में से एक है जो 8 अध्यायों का संकलन है। मौसल पर्व की कहानी के भीतर श्री कृष्ण की मृत्यु का उल्लेख मिलता है।

श्री कृष्ण के पुत्र सांब को मिला श्राप

एक कथा के अनुसार श्री कृष्ण के पुत्र सांब ने मज़ाक में एक स्त्री का रूप धारण किया और वह ऋषि विश्वामित्र, दुर्वासा, वशिष्ठ और नारद के पास पहुंचा। वे सभी द्वारका में श्री कृष्ण के साथ बैठे बातें कर रहे थे। तब सांब ने उनसे कहा कि वह गर्भवती है और वे सब उसे बताएं की उसके गर्भ में पल रहा शिशु लड़का है या लड़की किन्तु उसकी यह शरारत उनमें से एक ऋषि भांप गए और क्रोधित होकर उसे श्राप दे दिया कि उसके गर्भ से लोहे के तीर का जन्म होगा। इतना ही नहीं ऋषि ने उससे कहा कि उसके पुरे कुल और साम्राज्य का विनाश भी उसी लोहे के तीर से होगा।

जब सांब ने ये सारी घटना उग्रसेन को बताई तब उग्रसेन ने उससे कहा कि वो तांबे के तीर का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दे, इससे उसे इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही उग्रसेन ने यह भी कहा कि यादव राज्य में नशीली दवाओं का उत्पादन नहीं होगा।

द्वारका में होने लगा सब कुछ अशुभ

कहते हैं इस घटना के बाद द्वारका में चारों ओर नकरात्मकता फैलने लगी। पहले श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र, शंख और रथ गायब हो गया। फिर उनके भाई बलराम का हल अदृश्य हो गया। लोगों के बीच से प्रेम और भाईचारा खत्म होने लगा। स्त्रियों में लाज शर्म भी न रह गयी थी, रह गया था तो बस पाप और अत्याचार। तब श्री कृष्ण ने सभी को प्रभास नदी के तट पर जाकर तीर्थयात्रा करने की सलाह दी। भगवान के कहे अनुसार सभी लोग प्रभास नदी के तट पर पहुंचे किन्तु वहां जाते ही सबने नशा करना शुरू कर दिया और भोग विलास में लिप्त हो गए।

सात्यकि और कृतवर्मा की मृत्यु

कहा जाता है कि शराब पीकर नशे में चूर सात्याकि कृतवर्मा के पास पहुंचा और अश्वत्थामा को मारने के लिए कहने लगा। वह कृतवर्मा पर पांडवों के सोये हुए सैनिकों को मारने का आरोप लगाकर उसकी आलोचना करने लगा। बातों बातों में दोनों के बीच बहस बढ़ती चली गयी और सात्याकि ने कृतवर्मा की हत्या कर दी। बाद में यादवों ने मिलकर सात्याकि को भी मार डाला जिसके पश्चात स्वयं श्री कृष्ण प्रकट हुए और उन्होंने एरका घास को हाथ में उठा लिया जो छड़ में परिवर्तित हो गई इसी चढ़ से श्रीकृष्ण ने दोषियों को दण्डित किया।

इसके बाद नशे में चूर सभी लोग आपस में ही एक दूसरे को मारने लगे। वभ्रु, दारुक और भगवान कृष्ण के अलावा अन्य सभी लोग मारे गए। कुछ समय बाद वभ्रु और बलराम की भी मृत्यु हो गई, तब श्री कृष्ण ने दारुक को अर्जुन के पास सहायता के लिए भेजा।

श्री कृष्ण ने ली अंतिम सांस

कहते हैं दारुक अर्जुन के पास पहुंचा और उसे सारी घटना के विषय में बताया, यह सब सुनकर अर्जुन फ़ौरन श्री कृष्ण के पास पहुंचने के लिए निकल पड़े किन्तु इससे पहले ही श्री कृष्ण ने अपना देह त्याग दिया था।

कहा जाता है उस ऋषि के श्राप के अनुसार श्री कृष्ण की मृत्यु उसी लोहे के तीर से हुई थी। भगवान की मृत्यु के पीछे की कथा इस प्रकार है जिस लोहे की छड़ का चूर्ण बनाकर सांब ने नदी में प्रवाहित किया था उसे एक मछली ने निगल लिया था और वह उसके पेट में जाकर धातु का एक टुकड़ा बन गया। जीरू नामक शिकारी ने उस मछली को पकड़ा और उसके शरीर से निकले धातु के टुकड़े को नुकीला कर उससे तीर बना दिया।

एक दिन श्री कृष्ण वन में बैठे ध्यान में लीन थे तभी जीरू को लगा कि वहां कोई हिरन है और उसने वह तीर चला दिया जिससे भगवान की मृत्यु हो गई।

English summary

story behind lord krishna's death

Lord Krishna who helped the Pandavas in the Mahabharat, died after the Great War. There are many arguments about his death.
Story first published: Friday, May 18, 2018, 10:45 [IST]
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