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नागों की मां सुरसा ने हनुमान की परीक्षा कैसे ली

By Super
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जब हनुमान समुद्र के ऊपर उड़ रहे थे तभी अचानक एक बड़े सांप ने उनका रास्ता रोका जिससे उन्हें बड़ा झटका लगा।

“मैं सभी साँपों की मां सुरसा हूँ। आज मैं तुम्हें खाऊँगी।” बहुत दिनों से मुझे तुम्हारे जैसे शानदार बंदर को खाने का अवसर नहीं मिला।

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ब्रह्मा ने मुझे आशीर्वाद दिया है कि जो भी समुद्र के ऊपर से गुजरेगा अंत में वह मेरा भोजन बनेगा। मैं किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं करना चाहती। कृपया बिना देर किये मेरे मुंह में प्रवेश करो”, सांप ने कहा।

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हनुमान भौचक्के रह गए। उनका रास्ता हर तरफ से बंद था। उन्होंने क्रोधावेश में इस नई समस्या का समाधान सोचा।

‘मैं भी एक सांप हूँ। कृपया मेरी पूँछ देखें। यह थोड़ी थोड़ी सांप जैसी है। अत: आप मेरी मां हैं। आप जो बंदर जैसा मुंह देख रही हैं वह वास्तव में सांप का मुंह है। अब मैं आपको अपना वास्तविक सांप का रूप दिखाता हूँ”, ऐसा कहकर हनुमान ने सांप का रूप धारण कर लिया।

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‘मुझे धोखा देने की कोशिश मत करो। तुम अपनी माया की सहायता से मुझसे बचकर नहीं निकल सकते। तुम सांप नहीं हो। तुम मेरा भोजन हो। भोजन की श्रृंखला में मैं तुमसे ऊपर हूँ। बंदर अपनी पूरी ज़िन्दगी एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाकर मीठे मीठे फल जैसे आम आदि खाते हैं। उनका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है। मेरे मुंह में शांतिपूर्वक प्रवेश करो ताकि मुझे किसी भी प्रकार की हिंसा न करनी पड़े। तुम धीरे धीरे मेरे पेट में जिंदा चले जाओगे’, सुरसा ने शांतिपूर्वक कहा।
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पहली युक्ति असफल रही, हनुमान ने दूसरी युक्ति सोची।

‘अरे! सम्पूर्ण नागों की माता, मैं भगवान राम का काम पूरा करने जा रहा हूँ। राम – जो इस समुद्र को खोदने वालों के वंशज हैं – वे ब्रह्मांड के देवता हैं। मैं राम द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने जा रहा हूँ। कृपया राम के काम में बाधा न डालें’, हनुमान ने विनती की।

यह भी असफल रही। हनुमान ने तीसरी युक्ति अपनाई।

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‘मैं भगवान राम की पत्नी सीता माता की खोज में जा रहा हूँ जिनका रावण नाम के राक्षस ने अपहरण कर लिया है। एक स्त्री होने के नाते इन विनाशकारी राक्षसों द्वारा किसी निर्दोष स्त्री के अपहरण से जुडी हुई नाजुक क़ानून और व्यवस्था को तुम अच्छी तरह समझ सकती हो। अत: मुझे जाने दो’, हनुमान ने मां के दिल की गहराई में पहुँचने का तथा एक स्त्री के संकट में होने पर दूसरी स्त्री के मन में उसके प्रति उत्पन्न होने वाली दया भावना को स्पर्श करने का प्रयास किया।

इससे भी काम नहीं बना। हनुमान ने क्रोधावेश में सोचा और अंत में एक विचार किया क्योंकि समय बीतता जा रहा था।

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‘ठीक है, तुम मुझे खा लो, मैं तैयार हूँ’, हनुमान ने कहा और अपने आकार को दस मील चौड़ा कर लिया। सुरसा ने भी अपने मुंह के आकार को दस मील चौड़ा कर लिया। हनुमान ने अब अपने मुंह को सौ मील चौड़ा किया। ऐसा ही सुरसा ने भी किया। अचानक ही हनुमान ने लघु रूप धारण किया और इससे पहले की सुरसा अपना मीलों चौड़ा मुंह वापस लाती उससे पहले ही हनुमान उसके मुंह, पेट में प्रवेश करके वापस आ गए।

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‘मैंने पहले ही तुम्हारे मुंह में प्रवेश कर चुका हूँ। हे साँपों की माता, आपको नमस्कार’, हनुमान ने कहा।

सुरसा मुस्कुराई। उसने बताया कि वह उनकी परीक्षा ले रही थी जो अब समाप्त हुई। यह परीक्षा यह देखने के लिए की गयी थी कि लंका में जो कठिन काम हनुमान को करने के लिए दिया गया है उसके लिए हनुमान मज़बूत हैं अथवा नहीं। उन्होंने हनुमान को आशीर्वाद देकर आगे जाने दिया।

English summary

Surasa, the mother of snakes tests Hanuman

When Hanuman was flying over the ocean to Lanka in auto pilot mode, suddenly he was shaken up by a huge snake obstructing his way.
Story first published: Monday, April 27, 2015, 16:47 [IST]
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