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उत्पन्ना एकादशी का है खास महत्व, जानें व्रत की तिथि, मुहूर्त एवं कथा
सनातन धर्म में उत्पन्ना एकादशी व्रत को बहुत खास बताया गया है। इस व्रत को सभी दुखों और परेशानियों का अंत करने वाला कहा गया है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने वाले जातक को भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करने से सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है। जानते हैं उत्पन्ना एकादशी व्रत की तिथि, मुहूर्त, पारण का समय और कथा।
उत्पन्ना एकादशी व्रत की तिथि एवं पूजा मुहूर्त
उत्पन्ना एकादशी का व्रत 11 दिसंबर को रखा जाएगा।
सुबह पूजा मुहूर्त - सुबह 5 बजकर 15 मिनट से सुबह 6 बजकर 5 मिनट तक (11 दिसंबर 2020)
संध्या पूजा मुहूर्त - शाम 5 बजकर 43 मिनट से शाम 7 बजकर 3 मिनट तक (11 दिसंबर 2020)
पारण का समय - सुबह 6 बजकर 58 मिनट से सुबह 7 बजकर 2 मिनट तक (12 दिसंबर 2020)
उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व
उत्पन्ना एकादशी को बेहद प्रभावशाली बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करने वाले जातक को तीर्थ यात्रा करने जितना फल मिलता है। इतना ही नहीं, उसे भगवान विष्णु का धाम प्राप्त होता है। व्रत के दिन दान-दक्षिणा का भी महत्व बताया गया है। इस दिन निर्जल व्रत का संकल्प करने वाले जातकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक शास्त्रों की मानें तो उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान व दान करने जितना पुण्य मिलता है।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
उत्पन्ना एकादशी के साथ एक प्रचलित कथा भी जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी माता के जन्म की कथा सुनाई थी। इस कथा के अनुसार, सतयुग के समय मुर नामक राक्षस था। उसने अपनी शक्ति से स्वर्ग लोक को जीत लिया था। ऐसे में इंद्रदेव ने विष्णुजी से मदद की गुहार लगाई। विष्णुजी का मुर दैत्य से युद्ध आरंभ हो गया और यह कई वर्षों तक चला। अंत में विष्णु जी को नींद आने लगी तो वे बद्रिकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने चले गए।
मुर भी उनके पीछे पहुंचा और सोते हुए भगवान को मारने के लिए बढ़ा तभी अंदर से एक कन्या निकली और उसने मुर से युद्ध किया। घमासान युद्ध के बाद कन्या ने मुर का मस्तक धड़ से अलग कर दिया गया। जब विष्णु की नींद टूटी तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हुआ? कन्या ने सब विस्तार से बताया। वृत्तांत जानकर विष्णु ने कन्या को वरदान मांगने के लिए कहा।
कन्या ने मांगा कि अगर कोई मनुष्य मेरा उपवास करे तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं और उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति हो। तब भगवान ने उस कन्या को एकादशी नाम दिया और वरदान दिया कि इस व्रत के पालन से मनुष्य जाति के पापों का नाश होगा और उन्हें विष्णु लोक मिलेगा।