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स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभकारी हैं ये 7 भारतीय परम्‍पराएं

By Super
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हम भारतीय संस्‍कृति की प्राचीनता से कई सदियों आगे निकल चुके है और इस संस्‍कृति की कई परम्‍पराएं हमे बेतुकी और खराब लगती है। युग बदला, समय बदला और इन सबसे साथ सोच भी बदल गई, लेकिन इन सभी के चक्‍कर में हमने अच्‍छी बातों को भी नकार दिया। अगर देखा जाएं तो कोई भी परम्‍परा उस काल के हिसाब से अच्‍छी ही होती है, बस उसे समय-समय पर बदलने की जरूरत पड़ती है।

कई भारतीय परम्‍पराएं, मानव जीवन के लिए काफी स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक होती हैं, बस इनके बारे में विस्‍तार से जानने या इनके पीछे के तर्क को समझने की आवश्‍यकता है। 10 बातें, जो भारत ने सिखाई पूरी दुनिया को

गायत्री मंत्र के जाप से लेकर हनुमान चालीसा तक का अलग महत्‍व होता है। बस इस आधुनिक समाज में इसके पीछे के सांइ‍टफिक रिजन को समझना जरूरी है। बोल्‍ड स्‍काई के इस आर्टिकल में ऐसी ही 7 भारतीय परम्‍पराओं के बारे में बताया जा रहा है जो स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभकारी होती हैं।

 1) कटलरी में चांदी का इस्‍तेमाल करना :

1) कटलरी में चांदी का इस्‍तेमाल करना :

चांदी एक बहुमूल्‍य गुणों वाली धातु होती है जिसमें जर्मीसाइडल, एंटी-वायरल और एंटी-बैक्‍टीरियल प्रॉपर्टी होती है जो कि भोजन को विषाणु मुक्‍त रखती है। चांदी के बर्तनों के उपयोग का मतलब स्‍टेटस सिंबल कतई नहीं था, बल्कि इसके उपयोग का उद्देश्‍य सिर्फ और सिर्फ खाने को विषाणु रखना होता है। कई बार आपने लोगों को कहते सुना होगा कि वह तो चांदी की चम्‍मच मुंह में लेकर पैदा हुआ, इसका मतलब यह बिल्‍कुल नहीं कि वह धनी घर में पैदा हुआ, इसका मतलब यह होता हैकि वह स्‍वस्‍थ है। बच्‍चे की परवरिश के दौरान भी दूध में चांदी का सिक्‍का डूबोकर उसे दूध पिलाया जाता है ताकि चांदी के गुण उसके शरीर को लगे।

2) पानी में सिक्‍के डालने की परम्‍परा :

2) पानी में सिक्‍के डालने की परम्‍परा :

हर कोई ताज्‍जुब करता है कि आखिरकार पानी के किसी भी स्‍त्रोत में सिक्‍का क्‍यों डाला जाता है, उसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है। पहले सिक्‍के तांबे के बने होते थे, जिनके पानी में डालने से पानी शुद्ध हो जाता था, क्‍योंकि तांबे में पानी को शुद्ध करने के गुण होते है। इसमें कई ऐसे भी गुण होते है जिनसे शरीर के कई रोग भी सही हो जाते है। लेकिन अब सिक्‍के तांबे के नहीं आते है, इसलिए उन्‍हे डालना बेकार है।

3) रंगोली बनाना :

3) रंगोली बनाना :

गांवों से लेकर शहर तक हर जगह किसी भी पावन पर्व पर रंगोली अवश्‍य बनाई जाती है। यह कोई साधारण कला नहीं होती है जिसे आपके घरों के बाहर या आंगन में बनाया जाता है। पहले जमाने में रंगोली चावल के आटे से बनाई जाती थी, लेकिन आजकल रंगोली को ऐसे रसायनिक पाउडर से मिलकर बनाया जाता है कि उससे कई लोगों को अस्‍थमा का अटैक पड़ जाता है। पहले चावल के आटे से रंगोली बनाने से घरों के अंदर कीड़े-मकोड़े नहीं आते थे और घर में स्‍वच्‍छता रहती थी। इसे बनाने से घर में खुशहाली कामाहौल भी रहता है।

4) कान को छेदना:

4) कान को छेदना:

यह छेदन सिर्फ स्‍त्रीत्‍व को नहीं परिभाषित करता है बल्कि यह एक प्रकार की एक्‍यूपंक्‍चर प्रैक्टिस थी, जिससे स्‍त्री का शरीर स्‍वस्‍थ रहता था। नाक और कान का छिदना, धार्मिक महत्‍व को दर्शाने के अलावा, शरीर को भी अप्रत्‍यक्ष रूप से स्‍वस्‍थ रखता है।

5) भारतीय शैली में खाना खाने की आदत :

5) भारतीय शैली में खाना खाने की आदत :

भारतीय शैली में खाने का तरीका होता है कि प्‍लेट के साथ पानी को रखा जाता है और खाना लग जाने के बाद पानी को गोलाई में घुमाकर हल्‍का सा छिड़का जाता है, लोगों ने इसे धर्म से जोड़ दिया। लेकिन वास्‍तविकता यह है कि इस प्रकार से पानी का हल्‍का छिडकाव करने से आपकी खाने के थाली में कोई भी कीडा नहीं आ पाएगा। साथ ही नीचे बैठकर खाने का तरीका भी सही था, क्‍योंकि रीढ़ की हड्डी सही ढंग से मुड़ती है और ब्‍लड सर्कुलेशन भी अच्‍छी तरह होता है। इस तरह बैठकर खाने से पाचन क्रिया भी दुरूस्‍त रहती है।

6) घी का भरपूर उपयोग :

6) घी का भरपूर उपयोग :

घी एक प्रकार का संतृप्‍त वसा है। साधारण भाषा में कहा जाएं तो घी में किसी भी प्रकार के हानिकारक पदार्थ नहीं होते है। घी खाने से शरीर का कोलेस्‍ट्रॉल कम होता है क्‍योंकि इसमें पेरॉक्‍साइड और फ्री रेडिकल्‍स नहीं होते है तो शरीर को बदहाल कर देते है। घी के भरपूर सेवन से कैंसर होने की संभावनाएं कम हो जाती है और इसमें कई प्रकार के आयुर्वेदिक गुण भी होते है

7) उपवास का महत्‍व :

7) उपवास का महत्‍व :

भारत में हर दिन कुछ खास होता है। हर दिन का एक अलग धार्मिक महत्‍व होता है। भारतीय संस्‍कृति में भरथाली भोजन करने की परम्‍परा इसलिए है कि लोग सभी प्रकार के पौष्टिक आहार का सेवन करें, वहीं साल में कुछ दिन उपवास रखकर शरीर में पैदा होने वाले असंतुलन और विषाक्‍त पदार्थो को दूर करना। सावन के महीने में मांस खाना मना होता है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि सावन का महीना मानसून के बाद आता है, इस दौरान मांस में और समुद्र के जीवों में सबसे ज्‍यादा बीमारियां फैलती हैं। ऐसे में उपवास रखने से इन बीमारियों से दूर रहा जा सकता है। ये सभी परम्‍पराएं हमारे भले के लिए बनी थी, लेकिन इनके पीछे का कारण समझे बिना हम इन्‍हे गलत मान बैठे और नकार दिया।

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