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इतेफाक से वो मुझे पार्क में नहीं मिलता तो मेरी जिंदगी कुछ और ही होती..
मेरी लाइफ में सबकुछ सही चल रहा था जब तक मैंने एक बेवकूफी नहीं की होती। एक गलत क्रश ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी थी। बात तब की है जब मैं हाईस्कूल में पढ़ती थी। वो लड़का मुझसे एक साल सीनियर था। असम्बेली में हमेशा हमारी नजरें मिल जाया करती थी। एग्जाम में हम दोनों की सीट्स आसपास ही थी। एग्जाम में उससे सवाल करना मेरी आदत सी बन गई थी और इस तरह हमारी बातें शुरु हुई।
शुरुआत में वो बहुत ही सभ्य लगा मुझे, उसके फ्रैंड और उसे मालूम था कि मुझे उस पर क्रश है। मैंने कभी उसे नहीं मालूम होने दिया कि कैफेटेरिया में मैं जानबूझकर उसके पास बैठने के लिए टेबल चुना करती थी।
हम दोस्त बन गए
मैंने उसके लिए फेसबुक पर अपना अकाउंट बनाया और उसके हर पोस्ट पर कमेंट करना शुरु कर दिया। उसके बाद उसने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी और हम दोनों दोस्त बन गए। मैंने उसे ये भी बताया कि मुझे कविताएं लिखने का बहुत शौक है। मुझे लगने लगा कि अब ये चीजें करने से शायद हम दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त बन जाए।
एक दिन ..
मैं रोजाना ऑनलाइन उसका इंतजार किया करती थी ताकि हम घंटो चैट कर सकें। वो स्टूपिड चैट मुझे अच्छे लगने लगे थे। जब भी वो मुझे पिंग करता था मेरा चेहरा 1000 वॉट की स्माइल के साथ चमक जाता था । एक दिन उसने मुझे चैट में कहा कि वो मुझे स्कूल के एक असाइनमेंट में मदद करना चाहता है इसलिए उसने मुझे स्कूल के प्लेग्राउंड में मिलने को कहा। मैंने न नहीं कहा अफसोस मैंने न कह दिया होता उससे।
वो अकेला नहीं आया..
जब मैं उस जगह पहुंची तो शाम हो रही थी, पूरे प्ले ग्राउंड में धूल ही धूल थी। मैं एक पेड़ के नीचे खड़ी थी, मेरा दिल बहुत जोर जोर से धड़क रहा था। अचानक से वो आया लेकिन वो अकेला नही था, उसके साथ उसके छह दोस्त साथ में आए थे और उसमें से दो लड़कियां भी थी।
मेरे साथ की बदसलूकी
वो सब मेरा मजाक बनाने लगे। उन्होंने मेरे बाल खींचे। उन्होंने मोमबती जलाकर मेरे मुंह पर उसकी गर्मागर्म मोम फेंक दी। एक बार मैंने उसके साथ अपनी कुछ इंटीमेट डिटेल शेयर की थी तो उसने मेरे साथ वैसा ही कुछ ही किया और अपने दोस्तों के सामने कह डाला। उसी समय मैं खुद को बचाते हुए अपने घर की तरफ भाग गई। बीच में एक चर्च पर रुककर मैं जोर जोर से रोई।
पार्क में घंटों गुजार देती..
बाकी के एकडेमिक ईयर में घर में रहने लगी। मैं अब ज्यादा बातें नहीं करती थी। मेरे पैरेंट्स मुझे लेकर चिंतित रहने लगे थे। मैं बस घर के पास एक पार्क में जाया करती थी। वहीं अपना समय गुजारा करती थी। दो महीनें कुछ ऐसे ही निकालें। एक दिन मैंने देखा कि हमारे पड़ोस में एक नया शख्स रहने आया है। वो थैरेपिस्ट की पढ़ाई कर रहा था।
मैं उससे मिली..
वो मेरे पास आकर बैठा करता था और बातें किया करता था। वो मुझे बहुत बोर करने लगा था लेकिन मैं बीच में उठकर नहीं जाती थी न ही कुछ बोलती थी। मैं उसे सुना करती थी जब कि वो अपनी कहानी खत्म न कर लें। कुछ दिनों बाद मेरी मम्मी के कहने पर मैं उसके घर कुछ स्वीट लेकर गई। वो मुझे देखकर एक बार तो आश्चर्यचकित हो गया लेकिन उसने मुझे अपने घर पर बुलाया।
फिर मेरे अंदर की आवाज आई
उसने मुझे अपना स्टडी रुम दिखाया। उसके दिवारों पर बड़े बड़े कॉट्स लिखे हुए थे। मैंने टेबल पर पड़ी एक खाली किताब और पेन देखा। मेरे अंदर जैसे शब्दों का सैलाब उमड़ पड़ा। मेरे उस खाली पड़ी नोटबुक को अपने शब्दों से भर दिया। दो घंटे गुजर गए, मैंने उस नोटबुक को देखा ओर तीन पन्नें भर चुके थे। मैं उस नोटबुक को उस दिन वहीं छोड़ आई। अगले दिन जब वो पार्क में आया तो उसी नोटबुक के साथ आया। लेकिन इस समय वो खामोश था और मुझे लिखने के लिए प्रेरित कर रहा था।
लिखने लगी..
मैं कभी उस डायरी को अपने साथ नहीं ले गई और उसने मुझे कभी नहीं कहा इस बारे में बात करने के लिए। डेढ़ साल के बाद जब मेरी 10 वीं का एग्जाम खत्म हुआ। मैंने उस नोटबुक में उस पूरे घटना के बारे में लिखा। तब तक तीन नोटबुक भर चुकी थी और एक मेरे हाथ में थी। इसे में अपने साथ घर ले आई।
फिर अगले दिन ..
इस दिन मैं पार्क में जाने की जगह उसके घर गई। मैंने उसे अपनी नोटबुक थमा दी। मैं टीवी पर फुटबॉल मैच देख रही थी। वो किचन में उस नोटबुक को पढ़ रहा था। 20 मिनट बाद वो दो कप कॉफी के साथ पहुंचा। जैसे ही मैंने पहला घूंट पिया मैं रोने लगी।
इसलिए नहीं कि चाय बहुत गर्म थी। इसलिए कि मैं अपने अंदर छिपा गुस्सा और उदासी को निकालना चाहती थी। उस चीज को 9 साल गुजर चुकें है लेकिन आज में यह कहानी लिख रही हूं। आज भी मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते है और मेरे लिए कॉफी बनाकर लाते हैं।
हम दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे..
हालांकि हमारी उम्र में 8 साल का फासला था लेकिन कभी भी ये चीज हमें खटकी नहीं। मुझे याद है मेरे 18 वें जन्मदिन पर उसने मुझे एक पिज्जा डेट के लिए कहा। वैसे देखा जाए तो यह कोई डेट नहीं थी। हम दोनों बस पिज्जा कैफे में बैठकर मानव व्यवहार के बारे में बात कर रहे थे। धीरे धीरे में उसे पसंद करने लगी थी।
जब पहला किस हुआ..
मुझे आज भी याद है जब हमनें एक दूसरे को पहली बार किस किया था। उसके तीन सैकेंड के बाद मुझे मालूम चला कि मेरा चश्मा हम दोनों के बीच आ रहा है। मैं उसकी सबसे पहली मरीज थी जिसकी फीस मैंने आज तक नहीं दी। मेरे पैरेंट्स को आज तक उस स्कूल की घटना के बारे में मालूम नहीं है, कोई भी जानता है उस दिन क्या हुआ था। सिर्फ मेरे पति के अलावा।
आज हम खुशी खुशी शादीशुदा लाइफ गुजार रहें है
वो आज 32 का है और मैं 24 की। उसका अपना क्लिनिक है साइक्लॉजिस्ट है और मानव व्यवहार में अपनी प्रैक्टिस कर रहा है। मैं एमबीए करके एक एमएनसी में काम कर रही हूं। मेरे पैरेंट्स को शुरुआत में थोड़ी समस्या हुई थी लेकिन बाद में वो मान गए।