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उच्च रक्तचाप सामान्य करे शवासन
शव का अर्थ होता है मृत अर्थात अपने शरीर को शव के समान बना लेने के कारण ही इस आसन को शवासन कहा जाता है। यह दो शब्दों के योग से बना है, शव + आसन = शव आसन या शवासन। इस आसन को रोज 20 मिनट तक करने से दिमाग शांत हो जाता है, सारी चिंताए मिट जाती हैं और उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है। यह एक शिथिल करने वाला आसन है और शरीर, मन, और आत्मा को नवस्फूर्ति प्रदान करता है। ध्यान लगाने के लिए इसका सुझाव नहीं दिया जाता क्योंकि इससे नींद आ सकती है।
शवासन एक मात्र ऐसा आसन है, जिसे हर आयुवर्ग के लोग कर सकते हैं। यह सरल भी है। आइये और जानते हैं कि यह आसन किस विधि से किया जाता है और इसके क्या क्या लाभ होते हैं।
विधि-
1. पीठ के बल लेट जाएँ और दोनों पैरों में डेढ़ फुट का अंतर रखें। दोनों हाथों को शरीर से ६ इंच(१५ सेमी) की दूरी पर रखें। हथेली की दिशा ऊपर की ओर होगी। सिर को सहारा देने के लिए तौलिया या किसी कपड़े को दोहरा कर सिर के नीचे रख सकते हैं। इस दौरान यह ध्यान रखें कि सिर सीधा रहे।
2.
शरीर
के
सभी
अंगों
को
ढीला
छोड़
दें।
आँखों
को
कोमलता
से
बंद
कर
लें।
शवासन
करने
के
दौरान
किसी
भी
अंग
को
हिलाना-डुलाना
नहीं
है।
आप
अपनी
सजगता
(ध्यान)
को
साँस
की
ओर
लगाएँ
और
उसे
अधिक
से
अधिक
लयबद्ध
करने
का
प्रयास
करें।
गहरी
साँसें
भरें
और
साँस
छोड़ते
हुए
ऐसा
अनुभव
करें
कि
पूरा
शरीर
शिथिल
होता
जा
रहा
है।
शरीर
के
सभी
अंग
शांत
हो
गए
हैं।
3.
कुछ
देर
साँस
की
सजगता
को
बनाए
रखें,
आँखें
बंद
ही
रखें
और
भू-मध्य
(भौहों
के
मध्य
स्थान
पर)
में
एक
ज्योति
का
प्रकाश
देखने
का
प्रयास
करें।
4. यदि कोई विचार मन में आए तो उसे साक्षी भाव से देखें, उससे जुड़िए नहीं, उसे देखते जाएँ और उसे जाने दें। कुछ ही पल में आप मानसिक रूप से भी शांत और तनावरहित हो जाएँगे।
5.
आँखे
बंद
रखते
हुए
इसी
अवस्था
में
आप
१०
से
१
(या
२५
से
१)
तक
उल्टी
गिनती
गिनें।
उदाहरण
के
तौर
पर
"मैं
साँस
ले
रहा
हूँ
१०,
मैं
साँस
छोड़
रहा
हूँ
१०,
मैं
साँस
ले
रहा
हूँ
९,
मैं
साँस
छोड़
रहा
हूँ
९"।
इस
प्रकार
शून्य
तक
गिनती
को
मन
ही
मन
गिनें।
6.
यदि
आपका
मन
भटक
जाए
और
आप
गिनती
भूल
जाएँ
तो
दोबारा
उल्टी
गिनती
आरंभ
करें।
साँस
की
सजगता
के
साथ
गिनती
करने
से
आपका
मन
थोड़ी
देर
में
शांत
हो
जाएगा।
लाभ
अगर
शवासन
पूरी
सजगता
के
साथ
किया
जाए
तो
तनाव
दूर
होता
है,
उच्च
रक्तचाप
सामान्य
होता
है,
अनिद्रा
को
दूर
किया
जा
सकता
है।
श्वास
की
स्थिति
में
हमारा
मन
शरीर
से
जुड़ा
हुआ
रहता
है,
जिससे
कि
शरीर
में
किसी
प्रकार
के
बाहरी
विचार
उत्पन्न
नहीं
होते।
इस
कारण
से
हमारा
मन
पूर्णत:
आरामदायक
स्थिति
में
होता
हैं,
तब
शरीर
स्वत:
ही
शांति
का
अनुभव
करता
है।
आंतरिक
अंग
सभी
तनाव
से
मुक्त
हो
जाते
हैं,
जिससे
कि
रक्त
संचार
सुचारु
रूप
से
प्रवाहित
होने
लगता
है।